-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-
भारत और चीन के बीच पहले फौजी मुठभेड़ हुई और फिर सीमा पर इतना तनाव हो गया, जितना 1962 के युद्ध
के बाद कभी नहीं हुआ था। दोनों तरफ के सीमांतों पर दोनों देशों के फौजी अड़े हुए हैं लेकिन दोनों देशों के फौजी
दर्जन भर से ज्यादा बार आपसी संवाद कर चुके हैं।
इस परिदृश्य में आश्चर्यचकित कर देनेवाली खबर यह है कि दोनों राष्ट्रों के आपसी व्यापार में अपूर्व वृद्धि हुई है।
यह वृद्धि तब भी हुई है, जबकि भारत के कई संगठनों ने जनता से अपील की थी कि वह चीनी माल का
बहिष्कार करे। सरकार ने कई चीनी व्यापारिक और तकनीकी संगठनों पर प्रतिबंध भी लगा दिया था लेकिन हुआ
क्या ? प्रतिबंध और बहिष्कार अपनी-अपनी जगह पड़े रहे और भारत-चीन व्यापार ने पिछले साल भर में इतनी
ऊंची छलांग मार दी कि उसने रेकार्ड कायम कर दिया। सिर्फ 11 माह में दोनों देशों के बीच 8.57 लाख करोड़
रुपये का व्यापार हुआ। यह पिछले साल के मुकाबले 46.4 प्रतिशत ज्यादा था, यानी तनाव के बावजूद आपसी
व्यापार लगभग डेढ़गुना बढ़ गया। इस व्यापार में गौर करने लायक बात यह है कि भारत ने चीन को जितना माल
बेचा, उससे तीन गुने से भी ज्यादा खरीदा। भारत ने 6.59 लाख करोड़ का माल खरीदा और चीन ने सिर्फ 1.98
लाख करोड़ रुपये का। इसका अर्थ क्या हुआ? क्या यह नहीं कि भारत की जनता ने सरकार और सत्तारूढ़ संगठनों
की अपीलों को एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया। दूसरे शब्दों में गलवान घाटी में हुई फौजी
मुठभेड़ का और सरकारी अपीलों का आम लोगों पर कोई असर नहीं हुआ। इसका कारण क्या हो सकता है? इसका
पहला कारण तो शायद यही है कि लोगों को यही समझ में नहीं आया कि भारत-चीन सीमांत पर मुठभेड़ क्यों हुई
और उसमें गलती किसकी थी? भारत की या चीन की?
नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कह दिया था कि चीन ने भारत की एक इंच भी जमीन पर कब्जा
नहीं किया है तो लोग सोचने लगे कि फिर, झगड़ा किस बात का है? यदि भारत की जनता को लगता कि चीन का
ही पूरा दोष है तो वह अपने आप वह चीनी चीजों का बहिष्कार कर देती, जैसा कि उसने 1962 में किया था।
जनता आगे होती और सरकार पीछे! लेकिन ऊपर दिए व्यापारिक आकड़े भी यह सिद्ध करते हैं कि इस मुद्दे पर
सरकार का रवैया भी स्पष्ट नहीं था। यदि सरकार का रवैया दो-टूक होता तो दोनों देशों के आपसी व्यापार में क्या
इतना अपूर्व उछाल आ सकता था ? सरकारों की इजाजत के बिना क्या देश में कोई आयात या निर्यात हो सकता
है? दोनों देशों की सरकारें चाहे एक-दूसरे पर आक्रमण का अरोप लगाती रहीं लेकिन दोनों को ही अपना व्यापार
बढ़ाने में कोई झिझक नहीं रही। यह भी अच्छा है कि दोनों तरफ के फौजी लगातार बात जारी किए हुए हैं। यही
प्रक्रिया भारत और पाकिस्तान के बीच भी क्यों नहीं चल सकती? पाकिस्तान के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों से
जब भी मेरी भेंट हुई हैं, मैं उन्हें 1962 के बाद चले भारत-चीन संवाद का उदाहरण देता रहा हूं। मतभेद और
विवाद अपनी जगह रहें लेकिन संवाद बंद क्यों हों? अब किसी भी समस्या का समाधान युद्ध से नहीं, संवाद से ही
निकल सकता है।