-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की प्रदेश चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने एक ट्वीट कर
अपनी आंतरिक वेदना व्यक्त की है। उन्होंने लिखा है कि मुझे चुनाव के महासागर में तैरने के लिए उतारा गया है।
उस महासागर में जहां मगरमच्छ घूम रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य से जिन्होंने मुझे इस महासागर में तैरने के लिए कहा
है, उन्हीं के लोग मेरे हाथ-पैर बांध रहे हैं और मुझे डुबोने की कोशिश कर रहे हैं। रावत कहते हैं कि मैं निराश हूं
और सोचता हूं कि सब छोड़छाड़ कर घर बैठ जाऊं। बहुत तैर लिए, अब विश्राम का समय आ गया है। फिर मन के
एक कोने से आवाज़ उठती है, न दैन्यम् न पलायनम्। बड़ी ऊहापोह की स्थिति में हूं। नया वर्ष शायद रास्ता दिखा
दे। भगवान केदारनाथ मेरा मार्गदर्शन करेंगे। ज़ाहिर है रावत पुनः उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। चुनाव
अभियान समिति के अध्यक्ष घोषित किए जाने पर उन्होंने मान लिया था कि सोनिया परिवार उन्हें ही भावी
मुख्यमंत्री घोषित करेगा। लेकिन सोनिया परिवार इस प्रकार के काम इतनी आसानी से नहीं करता। यह उनकी
रणनीति का ही हिस्सा है कि कांग्रेसी आपस में लड़ते-झगड़ते रहें ताकि उनका वर्चस्व बना रहे।
यदि पार्टी के भीतर लड़ाई-झगड़े समाप्त हो गए तो क्षेत्रीय क्षत्रप उभर आएंगे और सोनिया परिवार का रुआब और
नागपाश दोनों समाप्त हो जाएंगे। लेकिन हरीश रावत को लगता है कि संकट की इस घड़ी में भगवान केदारनाथ
उनका मार्गदर्शन कर सकते हैं या फिर उनका उद्धार कर सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से जिस सोनिया परिवार ने
उनके हाथ-पैर बांधकर उन्हें चुनाव के समुद्र में उतार दिया है, उनका भगवान केदारनाथ पर कोई विश्वास नहीं है।
उनके पास इटली के मैकियावली की पोथी है, जो कहती है कि दोनों पक्षों को आपस में लड़ाते रहो, यदि आपका
नियंत्रण बना रहेगा। यदि सभी पक्ष एक साथ हो जाएंगे तो आपका सिंहासन हिल जाएगा। इसीलिए पार्टी के भीतरी
लड़ाई-झगड़े में सोनिया परिवार एक कांग्रेसी को दूसरे कांग्रेसी के खिलाफ प्रयोग करता है और स्वयं तमाशा देखता
रह कर निर्णय की रस्सियां अपने हाथों में पकड़े रहता है। इससे पहले सोनिया परिवार ने कुछ समय के लिए हरीश
रावत का सदुपयोग पंजाब में कांग्रेस के भीतर कैप्टन अमरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ करने के लिए
किया था। तब हरीश रावत को सोनिया परिवार में सब हरा ही हरा दिखाई देता था। लेकिन अब हरीश रावत को
नियंत्रण में रखने के लिए उनके विरोधी धड़े को ऑक्सीजन दी जा रही है।
यही कारण है कि रावत के पास भगवान केदारनाथ की शरण में जाने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा। शायद
इसीलिए कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने हरीश रावत के ट्वीट पर चुटकी लेते हुए कहा कि जैसा बोएंगे वैसा ही तो काटना
पड़ेगा। कैप्टन ने यह भी कहा कि यदि आपके भविष्य के लिए कोई प्रयास हैं तो उसके लिए मेरी शुभकामना।
सोनिया परिवार ने कैप्टन को हरीश रावत के माध्यम से ही ठिकाने लगवाया था। तब शायद सोनिया परिवार के
इस खेल में शामिल होने के लिए भगवान केदारनाथ से मार्गदर्शन नहीं लिया होगा। उस समय उनको इसकी जरूरत
भी नहीं थी। उस समय यदि भगवान केदारनाथ रावत को मार्गदर्शन देते भी, तब वे उसे स्वीकार न करते क्योंकि
उस समय वे सोनिया परिवार के सैक्युलर मार्गदर्शन में चल रहे थे। लेकिन मैकियावली राजनीति में भी
उपयोगितावाद के हामी हैं। राजनीति में जब किसी की उपयोगिता समाप्त हो जाए तो या तो उसे कूड़े के ढेर पर
फेंक दो या फिर हाथ-पैर बांधकर समुद्र में फेंक दो। कहीं ऐसा तो नहीं कि सोनिया परिवार के लिए हरीश रावत की
उपयोगिता समाप्त हो गई हो, इसलिए उन्होंने उसे बकौल रावत समुद्र में फेंक दिया। इटली का मैकियावली यह भी
कहता है कि इस प्रकार के घृणित काम ख़ुद नहीं करने चाहिए, उससे बदनामी होती है और नाम को धब्बे लगते
हैं। इसलिए ऐसे काम अपने विश्वस्त साथियों से ही करवाने चाहिए। यही कारण है कि सोनिया परिवार ने तो रावत
को चुनाव के सागर में कप्तान बनाकर उतारकर उनका सम्मान ही किया, लेकिन बकौल रावत अपने ही नुमाइंदों से
उनके हाथ-पैर भी बंधवा दिए। अब जब डूबने लगे तो हरीश रावत को भगवान केदारनाथ याद आए। लेकिन इस
पर भी विचार करना जरूरी है कि क्या हरीश रावत सचमुच भगवान केदारनाथ का दिया हुआ मार्गदर्शन स्वीकार
कर भी लेंगे? वैसे उन्हें यह कैसे पता चलेगा कि भगवान केदारनाथ ने उन्हें क्या मार्गदर्शन दिया है? हिमाचल
प्रदेश में तो देवता का मार्गदर्शन गूर के माध्यम से मिलता है।
हरीश रावत को यह मार्गदर्शन कैसे मिलता है, यह वही बेहतर जानते होंगे। लेकिन जब सोनिया कांग्रेस की
सरकार ने न्यायालय में शपथपत्र देकर कहा था कि राम का कोई अस्तित्व नहीं है, तो रावत को राम से कोई
मार्गदर्शन मिला था या नहीं? सोनिया परिवार और भगवान केदारनाथ के मार्गदर्शन में कोई टकराव हुआ तो रावत
जी किसका मार्गदर्शन स्वीकार करेंगे? वैसे उत्तराखंड में रावत के विरोधियों, जिन पर रावत हाथ-पैर बांधने का
आरोप लगाते हैं, का कहना है कि वे यह सारी नौटंकी सोनिया परिवार पर दबाव डालने के लिए कर रहे हैं ताकि
परिवार उनको मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दे। कांग्रेस परिवार के लड़ाई-झगड़े अब आम हो गए हैं।
असंतुष्टों का एक गुट अलग से सक्रिय है। वह गुट सोनिया परिवार पर बदलाव के लिए दबाव भी बना रहा है।
परंतु सोनिया परिवार उनकी बात मानने के बजाय उन्हें भी सबक सिखाने की नीति पर चल रहा है। इस तरह
कांग्रेस में बिखराव की स्थिति है। टूटी-फूटी कांग्रेस एनडीए का मुकाबला करने में भी सक्षम नहीं लग रही है।
कांग्रेस के लिए बेहतर यही होगा कि वह पार्टी में लोकतंत्र को बहाल करे। पार्टी में अगर लोकतंत्र बहाल होता है तो
आम जन का विश्वास भी पार्टी पर बढ़ सकता है। तभी वह शासक दल को चुनौती देने में सफल रहेगी। पुराने
कांग्रेसियों को खुड्डे लाइन लगाने की नीति के कारण पार्टी को ही नुकसान होगा। पार्टी नेताओं तथा वर्करों का
सम्मान करना जरूरी है। कांग्रेस का भविष्य तभी उज्ज्वल होगा।