अखिलेश यादव के गठबंधन में शामिल दल आपस में ही एक दूसरे को ठगने में माहिर हैं

asiakhabar.com | December 10, 2021 | 5:34 pm IST
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-अशोक मधुप-
कुछ माह बाद उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव का देखकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा
लेकर भानमती का कुनबा जोड़ना तो शुरू कर दिया है किंतु ये मेंढक की फौज उनके साथ कब तक बैठी रहेगी, ये
नहीं कहा जा सकता। अखिलेश यादव बड़े जतन से आगामी विधानसभा के लिए चुनावी मैदान सजा रहे हैं। वे प्रदेश
के छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों को जोड़कर राजनीति में गठजोड़ की नई इबारत लिखने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी
कोशिश है कि विपक्ष के वोटों को बंटवारा न हो। हालांकि पिछली बार लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के बीच
गठबंधन हुआ था। चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती को लगा कि उनका वोट तो सपा को गया, पर सपा का वोट
उनके प्रत्याशी को नहीं मिला। इसीलिए उन्होंने घोषणा की कि अब उनका दल अकेले चुनाव लड़ेगा।

पिछले चुनाव और बाद में भी सपा व अखिलेश यादव के सबसे बड़े आलोचक सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के
ओमप्रकाश राजभर रहे। इन्हें अखिलेश यादव अपने से जोड़ने में कामयाब रहे। हालांकि इससे पहले राजभर ने
एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से गठबंधन किया था। उनके साथ काफी घूमे भी थे। ओवैसी से
दोस्ती के दौरान ये भाजपा के संपर्क में भी रहे। अखिलेश यादव से भी दोस्ती की पींगे बढ़ाने में लगे रहे। अब
अखिलेश यादव के साथ गठबंधन की घोषणा कर दी। अभी चुनाव में समय है, कब तक ये घोषणा पर टिके रहते
हैं, ये समय ही बताएगा।
राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी से भी सपा का गठबंधन हो गया। अभी तक सीटों के बंटवारे पर बात नहीं बन
रही थी। इसी दौरान अखिलेश यादव को सूचना मिली कि जयंत चौधरी से कांग्रेस भी गठबंधन के प्रयास में है।
माना जा रहा है कि इसी सूचना पर अखिलेश यादव ने ज्यादा सीट देकर गठबंधन कर लिया। मंगलवार को सपा
प्रमुख अखिलेश यादव और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी की मेरठ के सरधना क्षेत्र में हुई संयुक्त रैली में दोनों दलों
के गठबंधन की घोषणा हुई। मिलकर भाजपा को हराने के दावे किये गए।
भाजपा को चुनौती देने के लिए अखिलेश यादव ने अपने साथ बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर, पूर्व
विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा समेत मायावती की पार्टी के आधा दर्जन से अधिक विधायक और काफी
नेताओं को जोड़ा है। ये छोटी-छोटी पार्टियों को भी जोड़ने में लगे हैं। अखिलेश यादव डॉ. संजय सिंह की जनवादी
(सोशलिस्ट) पार्टी, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल (लोक), पश्चिमी उत्तर प्रदेश, रुहेलखंड
में प्रभाव रखने वाले महान दल, कृष्णा पटेल के अपना दल (कमेरावादी), पॉलिटिकल जस्टिस पार्टी के राजेश
सिद्धार्थ, लेबर एस पार्टी के राम प्रकाश बघेल, अखिल भारतीय किसान संघ के रामराज सिंह पटेल जैसे तमाम
नेताओं और संगठनों के साथ गठबंधन में लगे हैं। वे उत्तर प्रदेश में अपना दल से भी गठबंधन की बात कर रहे हैं।
उनका मानना है कि भाजपा को हराना है तो विपक्ष के वोट के बंटवारे को रोकना होगा। राष्ट्रीय जनता दल के
अध्यक्ष तेजस्वी यादव ने उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी और उसके नेता अखिलेश यादव को बिना शर्त समर्थन
देने की घोषणा कर दी है।
इतना सब होने के बाद भी ये अपने चाचा शिवपाल यादव से दूरी बनाए हैं। ये अपने चाचा शिवपाल यादव पर
यकीन करने को तैयार नहीं। वैसे ये गठबंधन विचारधारा का न होकर स्वार्थ का होता है। स्वार्थ का गठबंधन तब
तक ही चलता है, जब तक उसका स्वार्थ है। मतलब निकलते ही रास्ते अलग हो जाते हैं। आज जो दल साथ−साथ
हैं, चुनाव के बाद जिस दल से इन्हें फायदा लगेगा, उससे गठबंधन कर सकते हैं। एक बात और है कि ये दल
मिलकर तो बैठ रहे हैं किंतु लोग सोच सकते हैं कि जो अपने चाचा का यकीन नहीं कर रहा, वह तुम्हारा क्या
यकीन करेगा? अखिलेश भी इनकी पैंतरेबाजी से आखिर तक आशंकित ही रहेंगे। अखिलेश यादव जोड़−तोड़ कर
गठबंधन के माध्यम से भाजपा को परास्त करने की नई इबारत लिखने का प्रयास कर रहे हैं। मेंढकों की फौज बना
रहे हैं। ये मेंढक कब तक शांत रहेंगे, कब तक इनके साथ खड़े रहेंगे, यह नहीं कहा जा सकता। इसका दावा कोई
बड़ा ज्योतिषी भी नहीं कर सकता।


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