-तनवीर जाफ़री-
बारूद के ढेर पर बैठी,क्रूरता का नित्य नया इतिहास लिखने वाली और मानवता के बजाये अतिवाद की सभी सीमाएं
पार कर रही यह दुनिया क्या पुरुष प्रधान अहंकार पूर्ण राजनीति के चलते रसातल की ओर जा रही है ?क्या अब
एक करुणामयी विश्व के निर्माण के लिये महिलाओं की राजनीति में बराबर की भागीदारी वक़्त की सबसे बड़ी
ज़रुरत बन चुकी है ? कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महामंत्री प्रियंका गांधी ने पिछले दिनों लखनऊ में यह घोषणा कर
राजनीति में महिला सशक्तिकरण के संबंध नई बहस छेड़ दी कि कांग्रेस पार्टी 2022 में उत्तर प्रदेश में होने वाले
आगामी विधानसभा चुनाव में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देगी। कांग्रेस देश का पहला राजनैतिक दल है
जिसने भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में महिलाओं को इतनी बड़ी संख्या में पार्टी प्रत्याशी बनाए जाने की
घोषणा की है। इस घोषणा के अनुसार उत्तर प्रदेश विधान सभा की कुल 403 विधानसभा सीट में से कांग्रेस लगभग
162 सीट पर महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारेगी। प्रियंका गाँधी की इस घोषणा के बाद हालांकि देश के
विभिन्न राजनैतिक दलों ने अपने अपने नफ़े-नुक़्सान के अनुसार अपनी सधी हुई प्रतिक्रियाएं दी हैं। परन्तु भारत ही
नहीं बल्कि इस समय पूरी दुनिया के जो 'विस्फ़ोटक' हालात बने हुए हैं उन्हें देखते हुए यह सोचना ज़रूरी हो गया
है कि क्यों न क्रूर,निर्दयी,अहंकारी व बेलगाम सी होती जा रही विश्व की इस पुरुष प्रधान राजनीति पर नकेल डालने
लिये विश्व की 'आधी आबादी ' को विश्व राजनीति में भी बराबर की भूमिका अदा करने का अवसर दिया जाये?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में महिलाओं को चालीस प्रतिशत टिकट देने का विचार प्रियंका गाँधी के मन में
इसीलिये आया क्योंकि वे एक कोमल ह्रदय रखने वाली महिला हैं।वे स्वयं उच्चकोटि की परवरिश व रहन सहन के
बावजूद गत पांच वर्षों से पूरी सक्रियता से जिस प्रकार देश की आम महिलाओं से मिलती रही हैं तथा उनकी दुःख
तकलीफ़ व ज़रूरतों को समझती रही हैं,यह फ़ैसला निश्चित रूप से उसी ज़मीनी अध्ययन का परिणाम है। अन्यथा
देश की पुरुष प्रधान लोकसभा ने तो अभी तक महिलाओं को वह 33 प्रतिशत आरक्षण भी नहीं दिया जिसका वादा
देश की महिलाओं से किया गया था। ऐसे में प्रियंका के इस 'मास्टर स्ट्रोक' को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर
केवल महिला सशक्तिकरण के नज़रिये से ही देखने की ज़रुरत है। और यदि प्रियंका गांधी के प्रयासों को लंगड़ी
मारने या इसमें किन्तु परन्तु ढूंढने की कोशिश की जाती है तो इसका अर्थ यही होगा कि ऐसा वर्ग महिलाओं को
पुरुषों की बराबरी करते नहीं देखना चाहता।
आज विश्व राजनीति में महिलाओं का अग्रणी होना क्यों ज़रूरी है इसे चंद उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है।
अफ़ग़ानिस्तान का तालिबान राज इस समय पुरुष प्रधान सत्ता का एक वीभत्स उदाहरण है। इनके शासन में
राजनीति में महिलाओं की भागीदारी तो दूर उन्हें पढ़ने व बे पर्दा रहने तक की इजाज़त नहीं। महिलाओं की शिक्षा
के तो यह इतने बड़े दुश्मन हैं कि मलाला यूसुफ़ ज़ई पर केवल इसलिये जान लेवा हमला किया क्योंकि वह
लड़कियों को शिक्षा हेतु प्रेरित करती थी। दर्जनों स्कूल इसी 'पुरुष वर्चस्ववादी ' व महिला विरोधी सोच ने ध्वस्त
कर दिये। और तो और यह लोग महिला को केवल बच्चा पैदा करने का माध्यम मात्र समझते हैं। इनकी क्रूरता के
तमाम क़िस्से आए दिन सुर्ख़ियां बनते रहते हैं। धार्मिक कट्टरवाद,हिंसा,अतिवाद और बहुसंखयवाद की राजनीति कर
जाहिल व बेरोज़गार लोगों की फ़ौज अपने पीछे खड़ी करना इनकी राजनैतिक कार्यशैली का अहम हिस्सा है।
परन्तु ठीक इसके विपरीत यूरोपीय देश न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न की राजनैतिक शैली है। न्यूज़ीलैंड
दुनिया का ऐसा पहला देश बना जो प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न के कुशल नेतृत्व में सबसे पहले कोरोना वायरस से
मुक्त हुआ। इस सफलता के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने जेसिंडा अर्डर्न की कार्यशैली की भरपूर प्रशंसा की। यहाँ
तक कि अर्डर्न के नेतृत्व क्षमता की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा जैसे सफल राजनीतिज्ञों से की
जाती है। इससे पहले जब 15 मार्च, 2019 को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर में जिस समय एक के बाद एक कर
दो मस्जिदों में भारी हथियारों से लैस एक ईसाई आतंकी ने नमाज़ पढ़ने वाले मुसलमानों पर गोलियां चलाई थीं।
और इस हमले में 51 लोगों की मौत हो गई थी उस समय भी प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न की भूमिका ने केवल
न्यूज़ीलैंड के मुसलमानों का नहीं बल्कि पूरे मुस्लिम जगत का दिल जीत लिया था। इस हमले के बाद न्यूजीलैंड में
सेमी ऑटोमेटिक बंदूकों की बिक्री प्रतिबंधित कर दी गई थी। उस समय अर्डर्न ने अस्पतालों में जाकर घायलों से
मुलाक़ात की थी। पूरे न्यूज़ीलैंड की मस्जिदों की सुरक्षा बढ़ा दी गयी थी। स्वयं घटना स्थल पर पहुंचकर पीड़ित
परिवारों से गले मिलकर उन्होंने मुसलमानों को सुरक्षा का भरोसा दिलाया था। उनकी शोकसभाओं में ख़ुद काले
लिबास में पहुंचकर उनके दुःख व शोक सांझे किये। यहाँ तक कि उस ईसाई आतंकवादी कृत्य के लिये ख़ुद मुआफ़ी
मांगी। उनके व्यवहार का कारण केवल यही था कि वे एक महिला हैं और कोमल व करुणा पूर्ण ह्रदय रखती हैं।
इसी घटना के बाद उनकी प्रतिक्रिया व उनके सकारात्मक व्यवहार के चलते टाइम मैगज़ीन ने जेसिंडा अर्डर्न को
पर्सन ऑफ़ द ईयर के लिये नामित किया था। उसी समय न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न की हिजाब पहने
हुए तस्वीर दुबई स्थित दुनिया की सबसे ऊँची इमारत बुर्ज ख़लीफ़ा पर प्रदर्शित की गयी। क्राइस्टचर्च पर हुए हमले
के बाद पीड़ितों के प्रति दिखाए गए अर्डन के स्नेह व समर्थन पर आभार व्यक्त करने के लिए दुबई के शासक
द्वारा यह किया गया था। जेसिंडा भी यदि उस समय चाहतीं तो ओछी,हल्की व शार्ट कट लोकप्रियता हासिल करने
के लिये वे भी बहुसंख्यकवाद की राजनीति कर सकती थीं।
पिछले दिनों बांग्लादेश में कट्टरपंथी तालिबानी मानसिकता के लोगों ने वहां के अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय के कई
दुर्गा पूजा पंडाल व मंदिरों पर हमला करने जैसा घोर निंदनीय कार्य किया। इन्हीं उपद्रवियों द्वारा हिन्दू समुदाय के
कई लोगों की हत्या भी कर दी गयी। परन्तु वहां की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने भी बहुसंख्य मुस्लिम समाज की
नाराज़गी की फ़िक्र किये बिना दोषियों के विरुद्ध तत्काल सख़्त कार्रवाई के निर्देश दिये। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री
हसीना की कार्रवाई इन कट्टरपंथियों को नागवार गुज़री और उन्होंने शेख़ हसीना के विरुद्ध कई शहरों में प्रदर्शन
भी किये। परन्तु प्रधानमंत्री हसीना के मानवीय रवैय्ये के चलते बंगला देश के मुसलमानों का भी एक बड़ा वर्ग
कट्टरपंथी आक्रमणकारियों के दुष्कृत्य की निंदा व प्रदर्शन करने तथा उनके विरुद्ध सख़्त कार्रवाई किये जाने की
मांग करते हुए सड़कों पर उतरा। हमारे देश में भी इंदिरा गांधी से लेकर ममता बनर्जी तक कई ऐसी महिला
राजनीतिज्ञ रही हैं जिन्होंने प्रेम व करुणा के साथ साथ अपने सख़्त फ़ैसलों व हिम्मत से भी पूरी दुनिया में अपनी
राजनैतिक क़ाबलियत का परचम लहराया है। लिहाज़ा आज के हिंसापूर्ण व बहुसंख्यकवाद की राजनीति के दौर में
महिला सशक्तिकरणकेवल हमारे ही देश की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की भी ज़रुरत है।