-सिद्वार्थ शंकर-
मानसून के विदा होने के बाद देश के कई राज्यों में लगातार हो रही बारिश से बाढ़ के हालात बन गए हैं। उत्तराखंड
और केरल में भारी बारिश से आई बाढ़ ने काफी तबाही मचाई है। उत्तराखंड में दर्जनों लोगों की मौत हो गई।
ज्यादातर मौतें बादल फटने और लैंडस्लाइड की वजह से हुई हैं। कई लोग अब भी मलबे में दबे हुए हैं। बारिश से
अब तक राज्य में 47 लोग जान गंवा चुके हैं। राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चारधाम यात्रियों से अपील
की है कि वे जहां हैं वहीं रहें। मौसम में सुधार होने से पहले अपनी यात्रा फिर से शुरू न करें। केरल के भी कई
जिलों में मूसलाधार बारिश हुई है, जिसके चलते बाढ़ के हालात पैदा हो गए हैं। राज्य के अलग-अलग इलाकों में
बाढ़ और लैंडस्लाइड की घटनाओं में 27 लोगों की मौत हुई है। कुछ लोगों के लापता होने की भी खबर है। भारतीय
मौसम विभाग ने बताया कि इस दक्षिणी राज्य में 1 से 19 अक्टूबर के बीच 135 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है।
सामान्य तौर पर इस अवधि में 192.7 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस साल 453.5 मिमी वर्षा दर्ज की गई।
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं जिस तेजी से बढ़ी हैं, वह खतरे की घंटी है। बिजली गिरने
की घटनाएं भी बढ़ी हैं। हर साल कई लोग इसके शिकार होते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम इन कुदरती घटनाओं को
हादसे से ज्यादा सबक के रूप में लें, तभी इनसे पार पा पाएंगे। गौरतलब है कि धरती का पर्यावरण बेहद खराब हो
चुका है। धरती को बचाने के लिए पर्यावरण विज्ञानी चेतावनियां जारी कर रहे हैं। वनों के घटते क्षेत्रफल से लेकर
समुद्रों के पिघलने की दर सबको डरा रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि हम प्राकृतिक आपदाओं से निजात कैसे
पाएं? यह सही है कि प्राकृतिक आपदाओं की रफ्तार और तीव्रता बढ़ी है। लेकिन इससे भी ज्यादा गंभीर संकट यह
खड़ा हो गया है कि मानव जनित समस्याएं इन्हें और उग्र बना दे रही हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी
राज्यों में जिस तरह से निर्माण गतिविधियां बढ़ी हैं, उससे भी संकट बढ़ा है। पहाड़ों में खनन और कटाई से लेकर
दूसरी मशीनी गतिविधियां घातक ही साबित हुई हैं। केरल और उत्तराखंड सहित देश के कई राज्यों से कुदरती कहर
की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वे रोंगटे खड़े कर देती हैं। भारी बारिश से बाढ़, नदी-नालों में उफान और जमीन
धंसने जैसी घटनाएं हो रही हैं। मकान और गाडिय़ां डिब्बियों की तरह बह जा रहे हैं। अरबों की संपत्ति का नुकसान
हुआ, सो अलग। ऐसा भी नहीं है कि इस तरह की प्राकृतिक आपदा का सामना हमें पहली बार करना पड़ रहा है।
लगातार बारिश से जान-माल के नुकसान की घटनाएं होती ही रही हैं। फर्क अब सिर्फ यह आया है कि पहले के
मुकाबले ऐसी आपदाओं की तीव्रता कई गुना बढ़ गई है। इसलिए ये ज्यादा घातक साबित हो रही हैं। चिंता की बात
तो यह है कि जब हमारे पास मौसम की चेतावनी देने वाला संपूर्ण और पुख्ता वैज्ञानिक तंत्र है, तब भी हम तबाही
का मंजर देखने को मजबूर हैं। इस तबाही का एक बड़ा कारण यह है कि हम पिछली आपदाओं से कोई सबक नहीं
ले रहे। पहाड़ी इलाकों में बाढ़ और नदियों के उफान की घटनाओं के पीछे बड़ा कारण नदियों का प्रवाह रुक जाना
है। पहाड़ों पर बहुमंजिला इमारतें बनाना कितना खतरनाक सिद्ध हुआ है, यह हमने देख ही लिया। केरल जैसे
तटीय राज्यों में तटों के किनारे बढ़ता अतिक्रमण संकट का कारण बनता जा रहा है। सवाल यह है कि आखिर
लोगों को नदियों के किनारे बड़े-बड़े निर्माण करने ही क्यों दिए जाते हैं। ऐसी आपदाओं का समाधान सिर्फ मुआवजा
बांटने से नहीं होता, यह तो एक फौरी मदद भर होती है। कुदरत के कहर से मुक्ति पाने के लिए ऐसी ठोस नीतियों
पर काम होना चाहिए जो लोगों को मरने से बचा सकें।