-ललित गर्ग-
आजादी के अमृत महोत्सव को मनाते हुए हमारे देश, समाज और मनुष्यता तीनों के सामने ही प्रश्नचिन्ह खड़े हैं।
किसी भी समाज और राष्ट्र के विकास में विचार एवं सृजनात्मक लेखन की महत्वपूर्ण भूमिका है। विचार एवं लेखन
ही वह सेतु है, जो व्यक्ति-चेतना और समूह चेतना को वैश्विक, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से
अनुप्राणित करती है। भारत के सामने जो समस्याएं सिर उठाए खड़ी हैं, उनमें मूल्यहीन विचार एक बड़ा कारण है।
विचार एवं लेखन ही जब मूल्यहीन हो जाए, विकृत हो जाये तो देश एवं दुनिया में मूल्यों की संस्कृति कैसे फलेगी?
एक बड़ा प्रश्न यह भी है कि क्या आजादी की लड़ाई इसीलिए लड़ी थी? जो शहीद हुए हैं उन्हें क्या मिला है।
लोकतंत्र को बच्चों के खेल में परिवर्तित करने वाली अदृश्य शक्तियां कौन हैं जो इस विशाल देश की सांस्कृतिक
संरचना को भेदकर अपने उद्देश्य में सफल हो रहे हैं। इन्हीं प्रश्नों को लेकर अणुव्रत आंदोलन के अंतर्गत व्यापक
प्रयत्न होते रहे हैं।
नये युग के निर्माण और जनचेतना के उद्बोधन में विचार एवं आचार क्रांति के विशिष्ट उपक्रम अणुव्रत आंदोलन ने
अनूठा योगदान दिया है। अणुव्रत आंदोलन की सात दशक की यह युग यात्रा नैतिक प्रतिष्ठा का एक अभियान है।
आज जिन माध्यमों से नैतिकता मुखर हो रही है वह बहुत सीमित है, प्रभावक्षीण है और चेतना पैदा करने में काफी
असमर्थ है। हम देखते हैं कि माध्यमों की अभिव्यक्ति, लेखन और भाषा में हल्कापन आया है। ऐसे में एक गंभीर,
मूल्यचेतना से जुड़े सार्थक लेखन की अपेक्षा है। हम यह भी महसूस कर रहे हैं कि प्रकाशन एवं प्रसारण के क्षेत्र में
ताकतवर संस्थान युग की नैतिक विचारधारा को किस तरह धूमिल कर रहे हैं। आवश्यकता है कि जब-जब नैतिक
क्षरण हो, तब-तब अभिव्यक्ति का माध्यम और ज्यादा ताकतवर, नैतिक और ईमानदार हो।
मनुष्य की प्रगति में कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब जीवन के मूल्य धूमिल हो जाते हैं। सारा विश्वास टूट जाता
है एवं कुछ विजातीय तत्व अनचाहे जीवनशैली में घुस आते हैं। पर नियति की यह परम्परा रही है कि वे इसे सदैव
के लिए स्वीकार नहीं करती। स्थायी नहीं बनने देती। टूटना और बनना शुरू हो जाता है। नये विचार उगते हैं। नई
व्यवस्थाएं जन्म लेती हैं एवं नई शैलियां, नई अपेक्षाएं पैदा हो जाती हैं। इन झंझावातों के बीच में आचार्य श्री
महाश्रमणजी के सान्निध्य में नैतिक मूल्यों की स्थापना एवं मूल्यपरक विचारों के दीप जलाने के लिए प्रयास होते
रहे हैं, हो रहे हैं, अणुव्रत से जुड़े लेखकों के विचार मेरी दृष्टि में दीप बनते रहे हैं, रोशनी बन अंधेरों को दूर किया
है। अणुव्रत लेखक मंच इसी प्रयास का एक उपक्रम है। 17-18 अक्टूबर 2021 करे राजस्थान के भीलवाड़ा में मंच
के द्वारा राष्ट्रीय अणुव्रत लेखक संगोष्ठी आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में आयोजित हुई, जिसमें प्रख्यात
पत्रकार एवं लेखक डॉ. वेदप्रताप वैदिक एवं कवि एवं साहित्यकार फारुक आफरीदी को अणुव्रत लेखक पुरस्कार से
सम्मानित किया गया तथा इस कार्यक्रम में देशभर के लेखकों, पत्रकारों एवं साहित्यकारों ने भाग लिया।
आज क्रांतिकारी विचारों का सैलाब धर्म, सम्प्रदाय, राजनीति, समाज सभी संदर्भों में उमड़ता है पर जीने का ईनाम
खोने लगा है। मंच से वक्ताओं के प्रभावी वायदे जनता के हाथों में सपने थमा देते हैं पर जीवन का सच नहीं
पकड़ा पाते। आज सर्वोच्च सत्ता के गलियारों में भी अपने झूठे पड़ रहे हैं और परायों में अपनत्व का प्रलोभन दीख
रहा है। कोई झूठ को सच बनाने के दाव-पेंच खेल रहा है तो कोई झूठ का पर्दाफाश करने का साहसी, नाटक रच
रहा है। मगर चिंतनीय प्रश्न है कि क्या दोनों का यह बौद्धिक संघर्ष भारत के आदर्शों की साख और सुरक्षा रख
सकेगा?
भारत के राष्ट्रचिन्ह में एक आदर्श वाक्य है- ‘सत्यमेव जयते।’ मगर सत्य की सीढ़ियों पर चढ़ते लोगों के पैर कितने
मजबूत रहते हैं, उनमें कितना आत्मविश्वास रहता है, इसे कौन नहीं जानता? विचारों की अस्थिरता और
अपरिपक्वता लोभ और स्वार्थ को जन्म देती है। राष्ट्र में आम नागरिक के ही नहीं, कर्णधारों के पैर भी असत्य की
फिसलन भरी राह की ओर आसानी से बढ़ जाते हैं और तब हमारा यह आदर्श वाक्य मखौल बन जाता है। इसलिए
विचारों का विधायक बदलाव जरूरी है अन्यथा निर्माण की निर्णायक भूमिका प्रस्तुत हो नहीं सकती। बलात थोपे
गये विचार और विवशता या भयवश स्वीकृत नियम-कानून फलदायी नहीं बन सकते। कानून सत्य का सबूत मांगे
और गवाह झूठे लाये जायें तब निर्दोष को फांसी पर चढ़ने से कौन बचा सकता है?
शेक्सपियर ने कहा था- ‘दुनिया में कोई चीज अच्छी या बुरी नहीं होती। अच्छा या बुरा सिर्फ विचार होता है।’ हम
कैसे हैं? इसकी पहचान हमारे विचार हैं, क्योंकि विचारों की बुनियाद पर ही खड़ी होती है हमारे कर्तृत्व की इमारत
और यही हमारे अच्छे या बुरे चरित्र की व्याख्या है। विचार वह आग है जो जला भी सकती है और अलौकिक भी
कर सकती है। यह सुई-धागा बनकर सबको सबसे जोड़ भी सकती है और कैंची बनकर अलगाव भी करा सकती है।
यद्यपि मनुष्य के पास न तेज नाखून हैं और न नुकीले दांत। न वह तलवारधारी है और न ए.के. 47 का धारक,
फिर भी आज का सबसे बड़ा क्रूर भयावह हिंसक प्राणी मनुष्य माना जाता है। क्योंकि वह विचारों को शस्त्र बनाकर
स्वार्थी खेल खेलता है जबकि इन्हीं विचारों के बल पर वह अहिंसक, करुणावान और परोपकार का जीवन भी जी
सकता है। श्रेष्ठ विचारों से अर्जुन माली जैसे हत्यारे का हृदय बदल गया। रत्नाकर जैसा लुटेरा भी महर्षि वाल्मीकि
बन गया। इतिहास की ये प्रसिद्ध घटनाएं इस बात का संकेत कर रही हैं कि व्यक्ति के विचारों का स्वच्छ निर्झर
अनगिन भटके चरणों को सही दिशा देने में सक्षम है। क्रांतिकारी विचारों के बल पर ही धर्म, संप्रदाय, राजनीति,
समाज सभी संदर्भों में अनेक बड़े-बड़े परिवर्तन घटित हुए हैं।
भगवान महावीर ने कहा है कि विचार ही व्यक्ति को बांधता और विचार ही व्यक्ति को मुक्ति देता है। सचमुच
विचारों में प्राणवत्ता होती है, इसी से हर संवाद जीवन का संदेश बन जाता है। विचारों के आईने में व्यक्ति का चेहरा
चरित्र की पहचान देता है। इसीलिए आज विचार क्रांति की ज्यादा जरूरत है इसी से समाज में व्यापक परिवर्तन
घटित किया जा सकता है और यही सशक्त राष्ट्र-निर्माण का आधार है। अगर विचारों के साथ विवेक और सुलझी
हुई समझ न हो तो विचार बिना किसी वजह के अनेक समस्याएं भी खड़ी कर देता है तब हमारे बीच मतभेद ही
नहीं, मनभेद की भी ऐसी दरारें पड़ जाती हैं कि जिनको पीढ़ी-दर-पीढ़ी पाटा नहीं जा सकता। एक ही पल में सारे
रिश्तों का गणित बदल जाता है।
बहुत सारे लोग जितनी मेहनत से नरक में जीते हैं, उससे आधे में वे स्वर्ग में जी सकते हैं। यही नैतिकता का
दर्शन है, यही अणुव्रत का दर्शन है। इतिहास के दो प्रमुख राजा हुए हैं। दृढ़ मनोबल के अभाव में एक ने पहले ही
संघर्ष में घुटने टेक दिये और साला कहलाया। दूसरे ने दृढ़ मनोबल से संकल्पित होकर, घास की रोटी खाकर,
जमीन पर सोकर संघर्ष किया और महाराणा प्रताप कहलाया। हमें साला नहीं प्रताप बनना है तभी राष्ट्रीय चरित्र में
नैतिकता आयेगी।
नैतिक मूल्यों का ह्रास और चरित्र का पतन अनेक समस्याओं का कारण है। हमें राष्ट्रीय जीवन में नैतिकता को
स्थापित करने के लिए समस्या के मूल को पकड़ना होगा। हम पत्तों और फूलों के सींचन पर ज्यादा विश्वास करते
हैं, जड़ के अभिसिंचन की ओर कम ध्यान देते हैं इसलिए पत्र और पुष्प मुरझा जाते हैं। अणुव्रत आंदोलन समस्या
की जड़ को पकड़ने का उपक्रम है। यह देश और दुनिया का पहला नैतिक आंदोलन है जिसने धार्मिकता के साथ
नैतिकता की नई सोच देकर एक नया दर्शन प्रस्तुत किया है। आज के संदर्भ में हमें उच्च आदर्शों को लेकर चलने
वाले इस आंदोलन और इससे जुड़े अणुव्रत लेखक मंच को व्यापक बनाने की अपेक्षा है, ताकि हम नये भारत का
निर्माण नैतिक मूल्यों की बुनियाद पर कर सके।