-प्रह्लाद सबनानी-
इतिहास गवाह है- भारत में दूध की नदियां बहती थीं, भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, भारत का
आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पूरे विश्व में बोलबाला था, भारतीय सनातन धर्म का पालन
करने वाले लोग सुदूर इंडोनेशिया तक फैले हुए थे। भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग सम्पन्न थे। कृषि
उत्पादकता की दृष्टि से भी भारत का पूरे विश्व में डंका बजता था तथा खाद्य सामग्री एवं कपड़े का निर्यात तो
भारत से पूरे विश्व को होता था। जब भारत का वैभव काल चल रहा था तब भारत के नागरिकों में देश प्रेम की
भावना कूट-कूट कर भरी रहती थी, जिसके चलते ग्रामीण इलाकों में नागरिक आपस में भाईचारे के साथ रहते थे
एवं आपस में सहयोग करते थे। केवल “मैं” ही तरक्की करूं इस प्रकार की भावना का सर्वथा अभाव था एवं “हम”
सभी मिलकर आगे बढ़ें, इस भावना के साथ ग्रामीण इलाकों में नागरिक प्रसन्नता के साथ अपने-अपने कार्य में
व्यस्त एवं मस्त रहते थे।
भारत में आज की सामाजिक स्थिति सर्वथा भिन्न नजर आती है। “हम” की जगह “मैं” ने ले ली है। नागरिकों की
आपस में एक दूसरे के प्रति हमदर्दी कम ही नजर आती है। ऐसे में, भारत को पुनः यदि उसके वैभव काल में ले
जाना है तो देश की धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं को आगे आकर नागरिकों में देश प्रेम की भावना
का संचार करना अब जरूरी हो गया है। दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात जापान में वहां के नागरिकों में देश प्रेम की
भावना का विकास कर ही जापान ने आर्थिक विकास के नए पैमाने गढ़े हैं। जापान ने दूसरे विश्व युद्ध में देश की
बर्बादी के बाद विश्व की सबसे मजबूत आर्थिक शक्ति, अमेरिका से टक्कर लेते हुए आर्थिक क्षेत्र में न केवल अपने
आप को पुनः खड़ा किया है बल्कि अपने आप को विश्व की महान आर्थिक शक्तियों में भी शामिल कर लिया है।
देश के नागरिक यदि देश के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए देश को अपना मानने लगेंगे तो उनमें प्रसन्नता की
भावना बलवती होती जाएगी एवं इससे उनकी उत्पादकता में भी वृद्धि देखने को मिलेगी। अब समय आ गया है
कि इस कार्य में सरकारों के साथ-साथ धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा भी अपनी विशेष भूमिका
अदा की जाये।
भारत में पिछले 96 वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के नागरिकों में देशप्रेम की भावना का संचार करने का
लगातार प्रयास कर रहा है। वर्ष 1925 (27 सितम्बर) में विजयदशमी के दिन संघ के कार्य की शुरुआत ही इस
कल्पना के साथ हुई थी कि देश के नागरिक स्वाभिमानी, संस्कारित, चरित्रवान, शक्तिसंपन्न, विशुद्ध देशभक्ति से
ओत-प्रोत और व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त होने चाहिए। आज संघ, एक विराट रूप धारण करते हुए, विश्व में
सबसे बड़ा स्वयं सेवी संगठन बन गया है। संघ के शून्य से इस स्तर तक पहुंचने के पीछे इसके द्वारा अपनाई गई
विशेषताएं यथा परिवार परंपरा, कर्तव्य पालन, त्याग, सभी के कल्याण विकास की कामना व सामूहिक पहचान
आदि विशेष रूप से जिम्मेदार हैं। संघ के स्वयंसेवकों के स्वभाव में परिवार के हित में अपने हित का सहज त्याग
तथा परिवार के लिये अधिकाधिक देने का स्वभाव व परस्पर आत्मीयता और आपस में विश्वास की भावना आदि
मुख्य आधार रहता है। “वसुधैव कुटुंबकम” की मूल भावना के साथ ही संघ के स्वयंसेवक अपने काम में आगे बढ़ते
हैं।
अभी हाल ही में अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर निर्माण करने हेतु निधि समर्पण अभियान, जो पूरे विश्व में अपने
आप में एक सबसे बड़ा सम्पर्क अभियान सिद्ध हुआ है, के माध्यम से संघ ने पूरे देश के नागरिकों को जोड़ने का
प्रयास किया है। 44 दिनों तक चले इस अभियान के अंतर्गत 5.5 लाख से अधिक नगर-ग्रामों के 12 करोड़ से
अधिक परिवारों से, भव्य मंदिर निर्माण के लिये समर्पण निधि एकत्रित करने के उद्देश्य से, सम्पर्क किया गया है।
समाज के सभी वर्गों और मत-पंथों ने इस अभियान में बढ़चढ़कर सहभागिता की है। ग्रामवासी-नगरवासी से लेकर
वनवासी और गिरिवासी बंधुओं तक, सम्पन्न से सामान्य जनों तक सभी ने इस अभियान को सफल बनाने में
अपना भरपूर योगदान दिया। इस तरह के अभियान देश में सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने में अपनी मुख्य
भूमिका निभाते हैं। देश के नागरिक यदि आपस में कटुता का त्याग कर मेलजोल बढ़ाते हैं तो इससे भी देश की
आर्थिक स्थिति को सशक्त करने में मदद मिलती है।
देश पर अभी हाल ही में आए कोरोना महामारी के संकट की घड़ी में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भी
हमेशा की भांति देश के विभिन्न भागों में सेवा कार्यों के लिए सक्रिय हो गए थे। कई नगरों में तो स्वयंसेवकों की
टोलियां अपने-अपने स्तर पर कोरोना से प्रभावित परिवारों की सहायता करती दिखाई दे रही थीं। चाहे वह कोरोना
से गम्भीर रूप से प्रभावित मरीज के लिए अस्पताल में बिस्तर की व्यवस्था करवाना हो, ऑक्सीजन की व्यवस्था
करना हो, दवाईयों की व्यवस्था करना हो, वेंटीलेटर की व्यवस्था करना हो, मरीज को कवारंटाईन करने के उद्देश्य
से उसे अस्पताल में भर्ती कराना हो, मरीज के घर पर अन्य सदस्यों के लिए भोजन की व्यवस्था करना, आदि
कार्यों में स्वयंसेवकों ने अपने आप को लिप्त कर लिया था। कई स्थानों पर तो संघ ने अन्य सामाजिक एवं
धार्मिक संस्थाओं के साथ मिलकर कवारंटाईन केंद्रों की स्थापना भी की थी। साथ ही, स्वयंसेवकों द्वारा समाज में
लोगों को वैक्सीन लगाने हेतु प्रेरित भी किया जा रहा था एवं वैक्सीन लगाए जाने वाले केंद्रों पर भी अपनी सेवाएं
प्रदान की जा रही थीं। कुल मिलाकर स्वयंसेवक कई प्रकार की टोलियां बनाकर समाज में कोरोना से प्रभावित
परिवारों को व्यवस्थित रूप से अपनी सेवायें प्रदान कर रहे थे। बहुत बड़ी मात्रा में धार्मिक एवं सामाजिक संगठन
भी इस कार्य में आगे आकर विभिन्न प्रकार की सेवायें प्रदान कर रहे थे यथा, कोरोना से प्रभावित हुए गरीब तबके
के घरों में खाद्य सामग्री पहुंचाई गई, मंदिरों, गुरुद्वारों आदि से भोजन की व्यवस्था की गई, आदि। प्रत्येक मानव
को अपना परिजन मानकर उसकी सेवा में लग जाना यह स्वयंसेवकों का विशेष गुण है।
कोरोना महामारी के प्रथम दौर के समय भी स्वयंसेवकों ने सेवा भारती के माध्यम से लगभग 93,000 स्थानों पर
73 लाख राशन के किट का वितरण किया था, 4.5 करोड़ लोगों को भोजन पैकेट वितरित किये थे, 80 लाख मास्क
का वितरण किया था, 20 लाख प्रवासी मजदूरों और 2.5 लाख घुमंतू मजदूरों की सहायता की थी, इस काल में
स्वयंसेवकों ने 60,000 यूनिट रक्तदान करके भी एक कीर्तिमान स्थापित किया था। इस प्रकार सेवा कार्य का एक
उच्च प्रतिमान खड़ा कर दिखाया था जो कि किसी चैरिटी की आड़ में धर्मांतरण करने वालों की तरह का कार्य नहीं
था। यह सब जाती, पाती, संप्रदाय, ऊंच-नीच के भेद से ऊपर उठकर “वसुधैव कुटुंबकम” अर्थात् परिवार की भावना
से किया गया सेवा कार्य था।
संघ की योजना प्रत्येक गांव में, प्रत्येक गली में अच्छे स्वयं सेवक खड़े करना है। अच्छे स्वयं सेवक का मतलब है
जिसका अपना चरित्र विश्वासप्रद है, शुद्ध है। जो सम्पूर्ण समाज को, देश को अपना मानकर काम करता है। किसी
को भेदभाव से शत्रुता के भाव से नहीं देखता और इसके कारण जिसने समाज का स्नेह और विश्वास अर्जित किया
है। संघ सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने के उद्देश्य से आगे बढ़ रहा है। संघ की कार्यपद्धति में पंथ- उप
पंथ, जातीय मतभेद आदि बांते उपस्थित हो ही नहीं सकतीं क्योंकि संघ सम्पूर्ण हिन्दू समाज में एकता लाने की
दृष्टि से कार्य करता है। संघ में छुआछूत की भावना तो कभी की समाप्त हो चुकी है क्योंकि संघ में सभी जातियों
के लोग एक झंडे के नीचे काम करते हैं।
मुट्ठीभर विदेशी आक्रांताओं ने भारत पर कई सैंकड़ों वर्षों तक राज किया क्योंकि हम सब एक नहीं थे। इसलिए
संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ही देश के लिए समाज को एकजुट करना था, है और रहेगा, जिसे पूर्ण करने
हेतु ही परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी और आपने एकशः संपत का मंत्र
दिया था कि उच्च जाति के हो या निम्न जाति के, पहले अपना अहंकार छोड़कर और दूसरे अपनी लाचारी या
हीनता छोड़कर तथा अमीर हो या गरीब, विद्वान हो या अज्ञानी सब एक पंक्ति में खड़े हों, यही संघ का उद्देश्य
है।
समाज और राष्ट्र को प्रथम मानने वाले संघ में व्यक्ति गौण होता है। संघ ने कभी अपना प्रचार नहीं किया और
संघ के प्रचारकों या स्वयं सेवकों ने जो दायित्व प्राप्त किए वे भी प्रचार से दूर रहे, संघ का और स्वयंसेवकों का
कार्य उनकी लगन और त्याग देश के सामने है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस लम्बी यात्रा में वैश्विक स्वीकार्यता
प्राप्त कर चुका है। व्यक्ति निर्माण, त्याग और राष्ट्रभक्ति के संस्कार से ओतप्रोत संघकार्य आज दुनिया के सम्मुख
है। आपदा में अद्वितीय सेवाकार्य और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्धता के संघ के गुणों को विरोधी भी
स्वीकारते हैं।