-योगेश कुमार गोयल-
विश्वभर में प्रतिवर्ष 9 अक्तूबर को ‘विश्व डाक दिवस’ मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य हमारे दैनिक जीवन में
डाक के महत्व को दर्शाना तथा इसकी उपयोगिता साबित करना है। 9 अक्तूबर 1874 को स्विट्जरलैंड की राजधानी
बर्न में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके बाद ‘यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’ का गठन किया गया
था। भारत 1 जुलाई 1876 को यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना, जो इसकी सदस्यता लेने वाला पहला
एशियाई देश था।
1874 में हुई ‘यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’ की याद में जापान के टोक्यो में 9 अक्तूबर 1969 को आयोजित विश्व
डाक संघ के सम्मेलन में इसी दिन ‘विश्व डाक दिवस’ मनाए जाने की घोषणा की गई। तभी से प्रतिवर्ष 9 अक्तूबर
को ही अंतरराष्ट्रीय डाक सेवा दिवस मनाया जा रहा है। विश्व डाक दिवस का उद्देश्य ग्राहकों के बीच डाक विभाग
के उत्पादों के बारे में जानकारी देना, उन्हें जागरूक करना और डाकघरों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है।
विश्व में डाक व्यवस्था की शुरुआत करीब चार सौ साल पहले ही हो गई थी। 1516 में ब्रिटेन में डाक विभाग की
स्थापना हुई थी, जिसे रॉयल मेल के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्यालय वहां की राजधानी लंदन में है। फ्रांस
में डाक विभाग की शुरुआत 1576 में ‘ला पोस्ट’ के नाम से की गई थी, जिसका मुख्यालय वहां की राजधानी पेरिस
में है। जून 1600 में जर्मन सरकार द्वारा ‘ड्यूूश्च पोस्ट’ नाम से डाक सेवा की शुरुआत की गई, जिसका मुख्यालय
बॉन में है। अमेरिका में ‘यूएस मेल’ नाम से डाक विभाग की स्थापना 1775 में हुई थी। श्रीलंका में 1882 में
‘श्रीलंका पोस्ट’ के नाम से डाक विभाग की स्थापना हुई, जिसका मुख्यालय कोलंबो में है।
यह तो बात हुई डाक व्यवस्था की शुरुआत की, अब यदि बात करें डाक टिकटों की शुरूआत की तो विश्व में डाक
टिकटों का इतिहास करीब 181 वर्ष पुराना है। आज लगभग हर देश में वहां के डाक टिकटों की एक बेहतरीन
श्रृंखला मिल जाएगी। यही नहीं, कुछ लोग तो ऐसे भी मिलेंगे, जिन पर डाक टिकटों के संग्रह करने का ऐसा जुनून
सवार रहता है कि उनके पास आरंभ से लेकर अबतक के अधिकांश डाक टिकटों की दुर्लभ श्रृंखला मिल जाएगी।
डाक टिकटों के ऐसे शौकीनों की आज दुनिया भर में कोई कमी नहीं है। अमेरिका के जेम्स रूक्सिन नामक व्यक्ति
के पास तो विश्व के प्रथम डाक टिकट से लेकर अबतक के लगभग तमाम दुर्लभ डाक टिकटों का संग्रह है और
उनके संग्रह में 40 हजार से भी अधिक डाक टिकट शामिल हैं। डाक टिकट जितना पुराना और दुर्लभ होता है,
उसकी कीमत भी उतनी ही बढ़ जाती है और डाक टिकटों के संग्रह के शौकीन तो उसे हासिल करने के लिए
मुंहमांगी कीमत देने को भी तैयार रहते हैं।
डाक टिकटों की शुरुआत कब, क्यों और कैसे हुई, इसका भी दिलचस्प इतिहास है। डाक टिकटों की विधिवत
शुरुआत 6 मई 1840 को हुई थी, जब एक पैनी मूल्य का विश्व का पहला डाक टिकट जारी किया गया था, जिसे
‘ब्लैक पैनी’ के नाम से जाना गया क्योंकि यह डाक टिकट काली स्याही से छापा गया था। इस डाक टिकट के
अस्तित्व में आने से पूर्व डाक टिकटों के स्थान पर ‘ठप्पा टिकटों’ का प्रयोग होता था, जो आयताकार, गोलाकार,
त्रिकोणाकार अथवा अंडाकार होते थे और इन ठप्पों पर ‘पोस्ट पेड’ अथवा ‘पोस्ट नोन पेड’ इत्यादि लिखा होता था।
प्राचीनकाल में डाक सेवा का उपयोग राजा-महाराजा अथवा शाही घरानों के लोग ही करते थे और उस वक्त पत्रों
अथवा संदेशों को लाने-ले जाने का काम उनके विशेष संदेशवाहक या दूत अथवा कबूतर या अन्य पशु-पक्षी करते थे,
जिन्हें बाकायदा इस काम के प्रशिक्षित किया जाता था। बाद में जब आम लोगों को भी इसकी जरूरत महसूस होने
लगी तो तय किया गया कि पत्रों की आवाजाही के शुल्क का भुगतान या तो पत्र प्रेषक करेगा अथवा प्राप्तकर्ता से
शुल्क लिया जाएगा लेकिन अक्सर होने यह लगा कि प्रेषक पत्रों को अग्रिम भुगतान किए बिना ही भेज देता और
प्राप्तकर्ता उसे लेने के बजाय वापस लौटा देता और तब प्रेषक भी शुल्क के भुगतान से बचने के लिए उसे लेने से
इनकार कर देता। इससे सरकार को अनावश्यक आर्थिक क्षति झेलनी पड़ती थी।
डाक व्यवस्था की खामियों की वजह से लगातार हो रहे आर्थिक नुकसान के मद्देनजर ब्रिटिश सरकार को प्रसिद्ध
आर्थिक सलाहकार रोलेण्ड हिल ने सलाह दी कि वह डाक व्यवस्था में मौजूद दोषों अथवा खामियों को दूर करने के
लिए इसमें कुछ अनिवार्य संशोधन करे और डाक शुल्क के अग्रिम भुगतान के रूप में डाक टिकट तथा शुल्क अंकित
लिफाफे जारी करे ताकि इनके जरिये अग्रिम डाक शुल्क प्राप्त हो जाने पर सरकार को घाटा न झेलना पड़े। अंततः
ब्रिटिश सरकार ने काफी जद्दोजहद के बाद उनका सुझाव स्वीकार कर लिया और तब तक चले आ रहे ठप्पा
टिकटों के बजाय डाक टिकटें जारी करने का फैसला कर लिया गया। इस प्रकार 10 जनवरी 1840 को डाक टिकट
का आविष्कार हो गया, जो एक पैनी मूल्य का था लेकिन इसको विधिवत 6 मई 1840 को ही जारी किया गया।
इस तरह यह विश्व का पहला डाक टिकट बन गया।
आधा औंस वजन तक के पत्रों के लिए डाक टिकट का मूल्य एक पैनी और एक औंस वजन के लिए दो पैनी
निर्धारित किया गया। इसके अलावा जो लोग निजी लिफाफों या रैपरों के बजाय डाक विभाग द्वारा मुद्रित सामग्री
का ही प्रयोग करना चाहते थे, उनके लिए एक पैनी व दो पैनी मूल्य के लिफाफे जारी किए गए। इसके करीब तीन
वर्ष बाद दुनिया के अन्य देशों में भी डाक टिकटों का प्रचलन शुरू हो गया। ब्राजील में 1843 में, अमेरिका में
1847 में, बेल्जियम में 1849 में और भारत में 1854 में पहली बार डाक टिकट जारी किए गए।