विश्व शांति और स्वामी विवेकानंद के विचारों की प्रासंगिकता

asiakhabar.com | September 28, 2021 | 5:47 pm IST
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-शिव प्रकाश-
हम सभी स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण 11 सितंबर 1893 के संदर्भ में उसकी ऐतिहासिकता एवं
सार्वभौमिकता पर चर्चा करते हैं। हिंदू धर्म के सर्व कल्याणक, सर्व समावेशी एवं वसुधैव कुटुंबकम के अधिष्ठान को
प्रकट करने वाला वह भाषण था। पराधीनता के कालखंड में स्वामी विवेकानंद के भाषण ने भारत एवं भारतीयता को
विश्व में प्रतिष्ठा प्रदान की। भारतीय संस्कृति के गौरव को उच्च स्थान पर अधिष्ठित किया। इसी विश्व धर्मसभा
के समापन के अवसर पर 27 सितंबर 1893 का भाषण भी उद्घाटन के समान ही गौरवपूर्ण एवं ऐतिहासिक
था।जिसने विश्व शांति के मार्ग में लहराते संकटों से बचने एवं विश्व शांति स्थापना के लिए अचूक मार्गदर्शन
किया। समापन के अवसर पर अपने भाषण में आयोजकों को धन्यवाद देते हुए स्वामी जी ने कहा था कि “एकता
किसी एक धर्म के विजय और बाकी धर्मों के विनाश से सिद्ध होगी, तो उनसे मेरा कहना है कि भाई तुम्हारी यह
आशा असंभव है। क्या मैं यह चाहता हूं कि ईसाई लोग हिंदू हो जाएं ? कदापि नहीं। ईश्वर भी ऐसा ना करें ! क्या
मेरी यह इच्छा है कि हिंदू और बौद्ध लोग ईसाई हो जाएं, ईश्वर इस इच्छा से बचाएं।”
9 सितंबर 2021 को केरल के सायरा मालाबार चर्च पाला धर्मप्रांत के बिशप मार जोसेफकल्लारगंट ने केरल में
चलने वाले धर्मान्ध मुस्लिम जेहाद के संबंध में चिंता व्यक्त की। बिशप महोदय का दावा है कि “कैथोलिक
लड़कियां नारकोटिक एवं लव जिहाद का शिकार हो रही हैं।” उनका कहना यह भी है कि उनकी मदद के लिए एक
संगठित समूह है, जो धर्मांतरण एवं जेहाद में आर्थिक सहित सभी प्रकार की मदद करता है। केरल सहित देश के
सभी हिस्सों में हिंदू समाज इस जेहादी मानसिकता से जूझ रहा है। लव, लैंड, नारकोटिक, मतान्तरण इसी जेहाद के
अलग-अलग स्वरूप है। केरल, बंगाल, असम, पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित देश के अनेक हिस्सों में इसका भयावह
स्वरूप प्रकट हो रहा है। देश के अनेक शहरों में हिंदू को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
जिस प्रकार की चिंता बिशप महोदय ने की, वह केरल के संबंध में पुलिस एवं गुप्तचर एजेंसिया पहले भी कर चुकी
हैं। बिशप महोदय की चिंता तभी प्रकट हुई जब कैथोलिक लड़कियां इन जिहादियों का शिकार हुई। ईसाई मिशनरियाँ
भी विश्व में अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए भारत में धर्मांतरण का यह गोरखधंधा लंबे समय से चला रही
हैं। देश के सुदूर वनवासी, जनजाति क्षेत्रों, पर्वतीय क्षेत्रों एवं शहरों की झुग्गी झोपड़ियों में वहां रहने वाले दुर्बल,
गरीब समाज की मजबूरी का फायदा उठाकर धर्मांतरण करती हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तर पूर्वांचल में अनेक प्रकार
के संघर्ष का कारण यह धर्मांतरण ही है। धर्मांतरण के संबंध में स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ” एक हिंदू का
धर्मांतरण केवल एक हिंदू का कम होना नहीं, बल्कि देश के एक शत्रु का बढ़ना है।”
दुनिया के हर हिस्से में आतंक एवं हिंसा की गतिविधियां सक्रिय है। अभी-अभी हम अफगानिस्तान में तालिबानी
गतिविधियां देख रहे हैं। तालिबान का अफगानिस्तान में कब्जा होते समस्त विश्व ने देखा है। आतंक के सहारे एक
देश पर इस प्रकार का कब्जा दुनिया भर की शांति के लिए खतरा एवं आतंकवादी शक्तियों को बढ़ावा देने वाला है।
इस विभीषिका भरी सफलता से दुनिया भर के आतंकी समूह प्रसन्न हो रहे हैं। आतंकवादी संगठनों को लगता है कि
अब हम अन्य स्थानों पर भी इसी प्रकार की सफलता प्राप्त कर सकते हैं। आतंकी संगठनों द्वारा जेहाद पहले तो

दूसरे धर्म के लोगों के साथ होता था, लेकिन अफगानिस्तान में तो अपने ही धर्म के लोगों को मारने का सिलसिला
चल रहा है। शरीयत को लागू करने के नाम पर अपने ही धर्म की महिलाओं पर अत्याचार, शिक्षा विहीन करना, यह
कौन सा जेहाद है ? दुनिया महिला सशक्तिकरण की ओर बढ़ रही है, ऐसे में तालिबान महिला विकास मंत्रालय बंद
करके अपनी ही महिलाओं को निरक्षर, रोजगार विहीन करके शक्तिहीन बना रहा है। यह सब जेहाद के नाम पर ही
हो रहा है।
केरल के बिशप महोदय की चेतावनी हो, अफगानिस्तान की घटनाएं हों, घटनाओं को समर्थन करता पाक हो। विश्व
में चलने वाली ऐसी हिंसक घटनाओं पर विश्व मौन है ! विश्व की महाशक्तियां अपने स्वार्थ के तराजू पर हानि-
लाभ का गणित लगा रही हैं। इन महाशक्तियों ने अनेक देशों में इस आतंक को बढ़ावा देने का कार्य भी किया है।
भारत में भी मानवाधिकारों की बात करने वाले संगठन, महिला अधिकारों के नाम पर छोटी-छोटी घटनाओं को भी
विशाल आकार देने वाले महिला संगठन सभी मौन है। तथाकथित सेकुलर शक्तियों को भी सांप सूंघ गया है। इस
निष्क्रियता के कारण समाज को तोड़ने वाली शक्तियों का मनोबल ही बढ़ता है। यदि विश्व में शांति स्थापित करनी
है तब समाज की बेहतरी, सुरक्षा, सहिष्णुता और सह अस्तित्व का वातावरण आवश्यक है।
स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में चेतावनी देते हुए कहा था कि “इन प्रत्यक्ष प्रमाणों के बावजूद भी कोई ऐसा
स्वप्न देखे कि अन्य धर्म नष्ट हो जायेंगे, और केवल उनका ही धर्म बचेगा, तो उस पर मैं अपने हृदय के अंतराल
से दया करता हूं और उसे स्पष्ट बता देना चाहता हूं कि शीघ्र ही सारे प्रतिरोधों के बावजूद प्रत्येक धर्म की पताका
पर यह लिखा रहेगा- सहायता करो- लड़ो मत, परभाव ग्रहण, न कि परभाव विनाश, समन्वय और शांति न कि
मतभेद और कलह।”
हिंसा एवं आतंक से युक्त इस सारे वातावरण में भारत एवं उसका धर्म ही विश्व को एक दिशा देने में समर्थ है
क्योंकि भारतीय मेधा ने सदैव दूसरे विचारों का सम्मान किया है। अपना विचार थोपने के लिए कोई आक्रमण नहीं
किया। दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिया है। विश्व शांति को स्थापित करने के लिए भारतीय समाज को अपनी
सनातन संस्कृति का गौरव लेकर शक्तिशाली होना होगा। इसी का आह्वान स्वामी जी ने अपने अनेक भाषणों में
किया है। स्वामी विवेकानंद के यह विचार ही विश्व शांति की गारंटी हो सकते हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि “मुझे
गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता एवं सार्वभौमिकता का पाठ पढ़ाया है। हम केवल
सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं करते, बल्कि विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
11 सितंबर 1893 के शिकागो विश्व धर्मसभा के उद्घाटन भाषण की सार्थकता को समझ कर विश्व सक्रिय हो।
जिसमें उन्होंने शिव महिमा स्तोत्र के श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा था कि-
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां।
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।।
जैसे नदियां अलग-अलग स्रोतों से निकलकर आखिर में समुद्र में जाकर मिलती हैं। वैसे ही मनुष्य अपनी इच्छा के
अनुसार अलग-अलग रास्ते चुनता है। एकमात्र यही विश्व शांति का मार्ग है।


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