एमएसएमई संकटग्रस्त

asiakhabar.com | September 11, 2021 | 4:27 pm IST
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-सिद्वार्थ शंकर-
कुछ महीने पहले तक एमएसएमई के संकटग्रस्त होने के अनुमान लगाए जाते रहे हैं। लेकिन अब अनुमानों के कुछ
आंकड़े आने के बाद इस क्षेत्र की तस्वीर साफ होने लगी है। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में एमएसएमई से
कर्ज किस्त चूक के मामलों में तीव्र उछाल आया है। यानी इस क्षेत्र के उद्यमों को पहली तिमाही के दौरान जो
रकम बैंकों को लौटानी थी, वे नहीं लौटा पाए। यह बात सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रथम तिमाही के बहीखाते से
सामने आई है। हालांकि इसका एक कारण अधिक कर्ज का वितरण भी रहा। लेकिन इससे भी बड़ा कारण है
कारोबार और बाजार की खस्ता हालत। यानी जिस काम में कर्ज का पैसा खर्चा गया, वहां से या तो वह समय पर
लौटा नहीं, या खर्च करने और लौटने की प्रक्रिया में पैसा बर्बाद हो गया। ये दोनों स्थितियां किसी के लिए अच्छी
नहीं कही जा सकतीं। एमएसएमई की हालत पहले से ठीक नहीं थी और फिर महामारी ने तो भट्ठा बैठा दिया।
नीतिगत सीमाओं के कारण एमएसएमई क्षेत्र को वे सुविधाएं नहीं मिल पातीं जो बड़े उद्यमों को सुलभ हैं। पूंजी की
कमी इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या है। आसान कर्ज मिल पाना हमेशा से कठिन रहा है। महामारी के दौरान
सरकार ने इस क्षेत्र को राहत देने के लिए आसान ऋण के कुछ प्रावधान किए। इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम
यानी ईसीएलजीएस के कारण 2020-21 में एमएसएमई को कुल साढ़े नौ लाख करोड़ के कर्ज दिए गए, जो 2019-
20 के 6.8 लाख करोड़ रुपए से काफी अधिक है। लेकिन लगता है इस कर्ज से ऋण होने की एक नई चुनौती इस
क्षेत्र के सामने आ खड़ी हुई है। इस क्षेत्र के उद्यम अपनी देनदारी नहीं चुका पा रहे हैं। वित्त वर्ष 2021-22 की
पहली तिमाही में भारतीय स्टेट बैंक के नए बकाए का आकार चार गुना बढ़ कर 15,666 करोड़ हो गया, जो साल
भर पहले की समान तिमाही में 3637 करोड़ रुपए था, यानी पांच गुने के आसपास। और इस बकाए का 40 फीसद
से अधिक हिस्सा या 6416 करोड़ अकेले एमएसएमई क्षेत्र से है। इसी तरह इंडियन बैंक के नए बकाए का उनसठ
फीसद हिस्सा या 4204 करोड़ रुपए और केनरा बैंक के नए बकाए का 58 फीसद या 4253 करोड़ रुपए
एमएसएमई क्षेत्र से है। इन आंकड़ों से साफ है कि बैंकों का हजारों करोड़ रुपया एमएसएमई क्षेत्र के कर्ज में फंस
गया है। अगर ये उद्योग कर्ज की किस्तें लौटा पाने में सक्षम नहीं होंगे तो इसका सीधा असर बैंकों की सेहत पर
दिखेगा जो पहले ही से एनपीए के बोझ तले दबे पड़े हैं। ऐसा भी नहीं है कि सरकार या सरकारी बैंकों को
एमएसएमई क्षेत्र की हालत के बारे में पता नहीं है। रिजर्व बैंक ने हालांकि जुलाई की अपनी वित्तीय स्थिरता रपट में
कहा था कि बैंकों के एनपीए का आकार बढ़ सकता है, खासतौर से एमएसएमई और खुदरा क्षेत्र के मद में। जबकि
बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के एमएसएमई मद का संकट सुलझाने के लिए आरबीआई कई पुनर्गठन
योजनाएं पहले ही पेश कर चुका है। आरबीआई ने 2019 से लेकर तीन ऐसी योजनाएं पेश कीं, जिसके तहत
एमएसएमई क्षेत्र के 25 करोड़ रुपए तक के संकटग्रस्त कर्ज के पुनर्गठन की अनुमति दी गई। इसके आधार पर
बैंकों ने जनवरी 2019, फरवरी 2020 और अगस्त 2020 की पुनर्गठन योजनाओं के तहत कुल 56,866 करोड़

रुपए ऋण का पुनर्गठन किया। लेकिन यह राहत ऊंट के मुंह में जीरे जैसी थी, जिसके कारण यह क्षेत्र वित्तीय संकट
से बाहर नहीं निकल पाया। सरकार शेयर बाजार में तेजी और पहली तिमाही के जीडीपी के आंकड़े (20.1 फीसद) से
उत्साहित हैं और उसके आधार पर मान रहे हैं कि सब कुछ सही रास्ते पर है। लेकिन सही बात तो यह है कि
एमएसएमई शेयर बाजार से बाहर हैं और जीडीपी के आंकड़े में भी एमएसएमई का असंगठित क्षेत्र शामिल नहीं है।
दूसरी ओर पहली तिमाही के बेरोजगारी के आंकड़े (9.68 फीसद) आईना दिखाते हैं। आंकड़ों का उद्देश्य सच को
जानना और उसके अनुसार कार्रवाई करना होना चाहिए। लेकिन आंकड़े जब चेहरा बचाने का साधन बन जाएं तो
जमीन पर जो बचता है, वह नाउम्मीदी के अलावा कुछ नहीं होता। यही नाउम्मीदी एमएसएमई क्षेत्र में पसरी पड़ी
है। सरकार को इस दिशा में कुछ सोचना चाहिए, क्योंकि श्रमशक्ति का एक बड़ा वर्ग इसी क्षेत्र से आता है और देश
की अर्थव्यवस्था को चलाने में अपना योगदान भी देता है।


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