-सिद्वार्थ शंकर-
अफगानिस्तान में अब नई सरकार का गठन हो गया है। 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद से
ही चीन और पाकिस्तान का तालिबान प्रेम नजर आ रहा था। यह अनायास ही नहीं था। दरअसल, अफगानिस्तान
के रास्ते भारत को घेरने के लिए रास्ता तैयार किया जा रहा था। सोमवार को तालिबान ने चीन-पाकिस्तान
इकोनॉमिक कॉरिडोर में अपनी दिलचस्पी दिखाकर इस मंशा को भी अब साफ कर दिया है। ड्रैगन के बिछाए गए
चाल में तालिबान फंसने लगा है और अफगानिस्तान में भारत के खिलाफ जमीन तैयार करके उसे मोहरे की तरह
इस्तेमाल किया जा रहा है। बीते सोमवार को तालिबान के प्रवक्ता जबिउल्लाह मुजाहिद ने बयान दिया था कि
उनका संगठन चीन और पाकिस्तान के महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में शामिल होना चाहता है। उसने यह भी बताया कि
इस प्रोजेक्ट को लेकर आने वाले दिनों में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई चीफ फैज हमीद और तालिबानी
नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के बीच एक बैठक भी होने वाली है। हालांकि, बाद में तालिबान इससे पलट भी
गया।
कहा जा रहा है कि अभी तालिबान एकदम से भारत के खिलाफ जाने वाला नहीं है, लेकिन जानकारों का कहना है
कि तालिबान एक दिन चीन और पाक के साथ खड़ा जरूर दिखाई देगा। बात दें कि पाकिस्तान-चीन इकोनॉमिक
कॉरिडोर चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना है। यह कॉरिडोर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। इसके जरिए
चीन का काशगर प्रांत पाकिस्तान के ग्वारदर पोर्ट से जुड़ेगा। परियोजना के तहत पाकिस्तान में बंदरगाह, हाइवे,
मोटरवे, एयरपोर्ट और पावर प्लांटस को विकसित किया जाएगा। साथ ही इस यह कॉरिडोर यूरोप और एशिया के
बाजार में चीन का रास्ता भी खोलेगा। चीन अपनी इस परियोजना का विस्तार अफगानिस्तान तक करना चाहता
था। क्योंकि, अफगानिस्तान और पाक के जरिए वह भारत को आसानी से घेर सकता था। इसके मद्देनजर पिछले
दिनों वह अफगानिस्तान के साथ बैठक कर चुका था, लेकिन तालिबान ने सत्ता पर काबिज होते ही इस परियोजना
में खुद से शामिल होने की इच्छा जाहिर कर दी है। इकोनॉमिक कॉरिडोर का भारत विरोध कर रहा है।
दरअसल, यह कॉरिडोर पाक अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन से होकर गुजरने वाला है। भारत कश्मीर के इन
दोनों हिस्सों को अपना बताता है। इसलिए इसको लेकर भारत ने आपत्ति भी जताई है। अगर यह कॉरिडोर बन गया
तो पाकिस्तान और चीन को विवादित क्षेत्र से सीधा रास्ता मिल जाएगा। चीन की ओर से साल 2015 में इस
परियोजना का एलान किया गया था। इसकी लागत लगभग 4.6 अरब डॉलर है। चीन की मंशा प्रोजेक्ट के जरिए
दक्षिण एशियाई देशों में भारत और अमेरिका के प्रभाव को कम करना और अपने वर्चस्व को बढ़ाना है। हालांकि,
पाकिस्तान में परियोजना की धीमी गति को लेकर चीन नाराज भी है।