बीकानेर। मरूदेश संस्थान द्वारा आयोजित कन्हैयालाल सेठिया वर्चुअल साहित्य संवाद
श्रृंखला में सोमवार को बोलते हुए राजस्थान पर्यटन विकास निगम कोलकाता के प्रभारी अधिकारी हिंगलाजदान रतनू
ने कहा कि महा मनीषी कन्हैयालाल सेठिया की कविताएं आदमी को अपनी माटी, भाषा और संस्कृति से जोड़ती हैं।
मरूदेश संस्थान के अध्यक्ष डॉ घनश्याम नाथ कच्छावा ने बताया कि 'कुछ बातें सेठिया जी की, कुछ रचनाएं सेठिया
जी की' शीर्षक से आयोजित इस कार्यक्रम में हिंगलाजदान रतनू ने कहा कि वे सताइस भाषाओं के जानकार उनके
पितामह स्वामी कृष्णानंद सरस्वती, पिता डींगल के प्रसिद्ध कवि भंवर पृथ्वीराज रतनू और महाकवि कन्हैया लाल
सेठिया को अपना आदर्श मानते हैं। रतनू ने सेठिया को मैथिलीशरण गुप्त व रामधारीसिंह दिनकर के बराबर का
कवि मानते हुए कहा कि उनका रचा गीत 'धरती धोरा री' राजस्थानियों का राज्य गीत बन गया हैं।
उन्होंने कहा कि सेठिया ने जीवन पर्यन्त राजस्थानी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए अनूठा कार्य किया। सेठिया की ही
प्रेरणा से कोलकाता जैसे महानगर में रहने वाले बारह लाख राजस्थानी लोग अपने परिवार में मायड़ भाषा
राजस्थानी ही बोलते हैं। ऐसे प्रयास हमें भी करने चाहिए। भाषा को जीवित रखने के लिए यह सबसे अनुकरणीय
कार्य हैं। रतनू ने अपने एक घंटे के सहज और आत्मीय उद्बोधन में सेठिया साहित्य के नये बिन्दुओं पर प्रकाश
डाला। रतनू ने अपने मामा राजस्थानी के चर्चित विप्लव कवि स्व मनुज देपावत की क्रांतिकारी रचनाओं में भी
सेठिया के काव्य प्रभाव की चर्चा की और मरूदेश के इस आयोजन को एक महत्वपूर्ण कार्य बताया।