जैसलमेर। राज्य पक्षी गोडावण की हलचल व आवागमन पर नज़र रखने के लिए गोडावण
कन्ज़र्वेशन ब्रीडिंग प्रोग्राम के तहत वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की ओर से उनपर सेटेलाइट टैग लगाए जा
रहे है। अब तक आठ मादा गोडावण के टैग लगाए जा चुके है। शुरूआती पायलट प्रोजेक्ट के तहत दस गोडावण पर
यह टैग लगाये जाने है। यदि यह योजना सफल रहती है तो आगामी दिनों में राष्ट्रीय मरू उद्यान इलाके सहित
आस पास के क्षेत्र में जितने भी गोडावण है उन पर सेटेलाइट टैग लगाए जायेंगे।
उपवन संरक्षक राष्ट्रीय मरू उद्यान कपिल चंद्रावल ने बताया कि कन्ज़र्वेशन ब्रीडिंग प्रोग्राम के तहत सेटेलाइट टैग
लगाए जा रहे है। वर्तमान में आठ मादा गोडावण के टैग लगाए जा चुके है। कामयाबी मिलने पर आगामी दिनों में
ज्यादातर गोडावण पर टैग लगा दिए जायेंगे। खासतौर पर गोडावण की हलचल व आवागमन पर सेटेलाइट निगरानी
के लिए ये टैग लगाए जा रहे है। ज्ञात रहे राज्य पक्षी गोडावण शर्मीले स्वभाव का पक्षी है। आस पास किसी की
भनक लगने पर वह अपनी जगह बदल लेता है। सेटेलाइट के माध्यम से सर्दी के मौसम में गोडावण किस इलाके
में ज्यादा रहते है,और वहीं बाकी के मौसम में उनका आवागमन कहां रहता है तथा खास तौर पर ब्रीडिंग टाइम में
किस क्षेत्र में जाते है ताकि इस दौरान गोडावण को पुख्ता सुरक्षा मुहैया करवाई जा सके।
गोडावण संरक्षण के लिए ये अब तक का सबसे सफल प्रयास कहा जा सकता है। इससे पूर्व इनके लिए ब्रीडिंग सेंटर
तैयार किया गया था। बाद में वहां गोडावण के अंडों को ले जाकर वहीं पर चूजों को बड़ा किया जा रहा है। वर्तमान
में अट्ठारह के करीब नन्हे गोडावण ब्रीडिंग सेंटर में पल रहे है। इसी प्रोग्राम के तहत अब गोडावण पर सेटेलाइट
टैग भी लगाए जा रहे है।
वर्तमान में करीब 70 क्लोजर पर गोडावण दिखे है। निगरानी के तहत यदि अब गोडावण अपने विचरण स्थल बदल
लेते है तो क्लोजरों की संख्या बढ़ाई जा सकती है ताकि गोडावण विचरण क्षेत्र में ज्यादा आवागमन ना हो। एक
जानकारी के अनुसार पिछले तीन साल से गोडावण गणना नहीं हो पाई है। जब अधिकांश गोडावण के टैग लग
जायेंगे तो सटीक गणना और अभी आसान हो जाएगी तथा वर्ष के किसी भी मौसम में जब गोडावण माइग्रेट करता
है तो उसकी जानकारी भी आसानी से मिल जाएगी।