-रमेश सर्राफ धमोरा-
जापान के टोक्यो शहर में खेले गए ओलंपिक खेलों में भारत के नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण
पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया है। 13 वर्षों के अंतराल के बाद भारत ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत
पाया है। इससे पूर्व 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारत के अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल की व्यक्तिगत
स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। चोपड़ा के स्वर्ण पदक जीतने से पूरा देश खुशी मना रहा है। सभी जगह नीरज
चोपड़ा के खेल की तारीफ हो रही है। चोपड़ा ने भाला फेंक प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए अपने साथी
प्रतियोगियों को मात दी। हालांकि नीरज ओलंपिक खेल में पहली बार भाग ले रहे थे, उसके बावजूद उन्होंने अपने
पर जरा भी हताशा को हावी नहीं होने दिया और अपने बेहतर खेल का प्रदर्शन करते हुए विरोधियों को मात देकर
स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाकर भारत का मान बढ़ाया।
इस बार की ओलंपिक प्रतियोगिता में भारत से गये 127 खिलाड़ियों के दल ने एक स्वर्ण, दो रजत व चार कांस्य
सहित कुल सात पदक जीते हैं, जो भारत का ओलंपिक खेलों में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। 1980 में
मास्को ओलंपिक के बाद भारत ने 41 साल के अंतराल से पुरुष हॉकी प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता है। 1980
के ओलंपिक में भारत ने अंतिम बार हॉकी में स्वर्ण पदक जीता था, हालांकि उस समय दुनिया के कई देशों ने
मास्को ओलंपिक का बहिष्कार किया था। इस कारण भारत को हॉकी में आसानी से स्वर्ण पदक मिला था।
ऐसा भी नहीं है कि 1980 में भारत को हॉकी में संयोगवश ही स्वर्ण पदक मिल गया था। एक जमाने में भारत
दुनिया भर में हाकी का सिरमौर रहा है। उससे पूर्व भारत की हॉकी टीम ने सात बार ओलंपिक प्रतियोगिता में स्वर्ण
पदक जीता है। 1928 से 1956 तक तो भारतीय हॉकी टीम ने लगातार छह बार ओलंपिक प्रतियोगिता में स्वर्ण
पदक जीत कर डबल हैट्रिक लगायी थी। 1960 के रोम ओलंपिक में भारत ने रजत पदक जीता था। उसके बाद
1964 के टोक्यो ओलंपिक में भारत ने फिर से स्वर्ण पदक जीतकर हाकी के खेल में अपनी धाक जमाई थी। मगर
उसके बाद भारत लगातार खेलों में पिछड़ता गया।
इस बार टोक्यो में भारत की पुरुष और महिला दोनों ही हॉकी टीम ने जबरदस्त खेल प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
मगर सेमीफाइनल में पहुंचकर महिला हॉकी टीम चौथे स्थान पर पिछड़ गई। वहीं भारतीय पुरुष हाकी टीम ने तीसरे
स्थान पर रहकर कांस्य पदक पर कब्जा जमाया। हालांकि भारतीय हॉकी टीम ने जिस तरह से इस बार अपने खेल
का प्रदर्शन किया था। उससे उनका लक्ष्य स्वर्ण पदक पर था, मगर अंतिम समय में वह अपनी प्रतिद्वंदी टीम से
पिछड़कर कांस्य पदक ही जीत सके। कांस्य पदक जीतना भी भारतीय हॉकी टीम में एक नवजीवन का संचार
करेगा।
लगातार हारने के कारण भारत के हॉकी खिलाड़ियों का मनोबल काफी कमजोर हो रहा था। इस कारण प्रतिभा
संपन्न होने के बावजूद भी खेल के मैदान में अंतिम क्षणों में वह मायूस होकर मैच हार जाते थे, लेकिन इस बार
कांस्य पदक जीतने से हॉकी खिलाड़ियों का मनोबल बहुत मजबूत हुआ है। आने वाले समय में वह और अधिक
मेहनत कर अपनी बेहतर खेल प्रतिभा का परिचय देंगे।
भारत की आबादी करीबन 135 करोड़ लोगों की है, लेकिन ओलंपिक खेलों की पदक तालिका में भारत का स्थान
48 वां है। प्रथम स्थान पर 39 स्वर्ण सहित कुल 113 पदक जीतकर संयुक्त राज्य अमेरिका है। दूसरे स्थान पर
38 स्वर्ण सहित कुल 88 पदकों के साथ चीन है। तीसरे स्थान पर 27 स्वर्ण सहित कुल 58 पदकों के साथ जापान
है। डेढ़ करोड़ की आबादी वाला क्यूबा 14 वें स्थान पर है। एक करोड़ से कम आबादी वाला देश हंगरी 15 वें स्थान
पर है। 5 करोड़ की आबादी वाला अफ्रीकी देश कीनिया 19 वें स्थान पर है। मात्र 25 लाख की आबादी वाला जेमेका
हम से ऊपर 21वें स्थान पर है। एक करोड़ की जनसंख्या वाला देश स्विटजरलैंड 24वें स्थान पर है। एक करोड़ से
कम जनसंख्या वाला देश डेनमार्क 25 स्थान पर है। वहीं 55 लाख की आबादी वाला नार्वे तीसवें स्थान पर है। 30
लाख की आबादी वाला यूरोपियन देश स्लोवेनिया 31 वें स्थान पर है। 5 करोड़ की आबादी वाला अफ्रीकन देश
युगांडा 36 वें स्थान पर है। हमसे बहुत छोटा मात्र 20 लाख की आबादी वाला कतर ही हम से ऊपर 40 वें स्थान
पर है।
इस तरह से ऊपर वर्णित देशों को आबादी के हिसाब से देखें तो पदक तालिका में हम से ऊपर स्थान बनाने वाले
कई देशों की आबादी तो हमारे देश के एक जिले के बराबर भी नहीं है। जबकि ओलंपिक खेल में पदक जीतने में वो
हमसे कहीं आगे है। भारत में यह विडंबना ही है कि खेलों में भी राजनीति व्याप्त रहती है। इस कारण हमारे देश
में अच्छे प्रतिभा वाले खिलाड़ी आगे नहीं आ पाते हैं। जिन खिलाड़ियों के पास राजनीतिक पहुंच, प्रभाव व पैसा होता
है उनको आसानी से आगे बढ़ने का मौका मिल जाता है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र में बहुत से ऐसे प्रतिभाशाली
खिलाड़ियों की प्रतिभा दबकर रह जाती है। क्योंकि उनको आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं मिलता है। इस बार ओलंपिक
में हम एक स्वर्ण पदक दो रजत पदक व चार कांस्य पदक जीतकर ही खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। जबकि
हमसे बहुत छोटे- छोटे देशों ने कई गुना अधिक पदक जीते हैं।
खेलों में जीतने पर खुशी मनाना अच्छी बात है। इससे खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ता है व दूसरे खिलाड़ी भी अपनी
खेल प्रतिभा दिखाने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। मगर इसके साथ ही हमें हमारे खेलों का स्तर ऊंचा उठाने के लिए
विशेष प्रयास करने चाहिये। गांवों में ही खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए प्रारंभिक सुविधाएं उपलब्ध करानी
चाहिये। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित खेल प्रशिक्षक लगाने होंगे। अच्छे खिलाड़ियों को तराशने के लिए सरकार को पूरा
खर्चा उठाना होगा। इस बार पदक जीतने वाले खिलाड़ियों पर तो इनाम की बौछार होने लग जाती है, लेकिन पदक
के पास पहुंच कर चूक जाने वाले खिलाड़ियों को भी प्रोत्साहित करना होगा। तभी भविष्य में भारत खेलों की दुनिया
में अपनी छाप छोड़ पाएगा तथा भारत द्वारा जीते जाने वाले मेडलों की संख्या बढ़ेगी व रंग बदल कर सुनहरा हो
पायेगा।