-जयंतीलाल भंडारी-
हाल ही में गैर सरकारी संगठन जनस्वास्थ्य अभियान ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका में कहा कि कोरोना काल
में स्वास्थ्य सेवाओं का उपयुक्त प्रबंधन न होने के कारण लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। छोटे
स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज की पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। देश की 70 फीसदी स्वास्थ्य सुविधाएं निजी हाथों में है।
निजी स्वास्थ्य केंद्र मरीजों का शोषण कर रहे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र एवं सभी राज्यों को नोटिस जारी
करके जवाब मांगा है।
इसमें दो मत नहीं हैं कि कोरोना संक्रमण से निर्मित स्वास्थ्य संकट देश के लिए मानवीय, सामाजिक और आर्थिक
संकट में परिवर्तित हो गया है। इसके कारण प्रति व्यक्ति आय और देश की विकास दर में कमी आई है। निस्संदेह
इस समय स्वास्थ्य से जुड़े मानवीय संसाधन, स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी चिंताजनक
रूप में दिखाई दे रही है। हाल ही में सरकार ने लोकसभा में बताया कि देश में 854 लोगों पर एक एलोपैथिक
डॉक्टर और 559 लोगों पर एक नर्स उपलब्ध है। ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट से पता चलता है कि अस्पतालों में
बेड उपलब्धता के लिहाज से 167 देशों में भारत 155वें स्थान पर है और देश में प्रति 10,000 की आबादी पर
करीब पांच बेड हैं।
भारत में वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण स्वास्थ्य ढांचे और स्वास्थ्य सुविधाओं पर यथोचित ध्यान नहीं दिया
जा सका है। पंद्रहवें वित्त आयोग ने पहली बार स्वास्थ्य के लिए उच्च-स्तरीय कमेटी गठित की थी। इस कमेटी ने
स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च को वर्ष 2024 तक सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के करीब 0.95 प्रतिशत के वर्तमान
स्तर को बढ़ाकर 2.5 प्रतिशत तक किए जाने की बात कही है। हालांकि वित्तीय संसाधनों की कमी के बावजूद देश
ने स्वास्थ्य क्षेत्र में कई बुनियादी उपलब्धियां हासिल की हैं। कई महामारियों पर नियंत्रण हुआ है।
देश में 1990 में औसत आयु 59.6 वर्ष थी, जो 2019 में बढ़कर 70.8 वर्ष हो गई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने
गरीबों तक पूर्व उपचार और उपचार बाद देखभाल की पहुंच के रूप में असमानता को दूर करने में अहम भूमिका
निभाई है। ‘आयुष्मान भारत’ योजना स्वास्थ्य सेवा के लिए एक परिवर्तनकारी पहल है। आयुष्मान भारत दुनिया की
सबसे बड़ी स्वास्थ्य आश्वासन योजना है, जिसका उद्देश्य है कि प्रति परिवार प्रति वर्ष पांच लाख रुपये तक का
मुफ्त इलाज माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 10.74 करोड़ से भी अधिक गरीब और वंचित
परिवारों (या लगभग 50 करोड़ लाभार्थियों) को मुहैया कराया जाए।
कोविड-19 की चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत स्वास्थ्य क्षेत्र
को मजबूत बनाने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए गए हैं। वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में स्वास्थ्य और खुशहाली
के लिए 2,23,846 करोड़ रुपये का व्यय सुनिश्चित किया गया है। लेकिन अब भी देश के स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत
करने और सबको कोरोना टीकाकरण के लिए अधिक संसाधनों और रणनीतिक प्रयासों की जरूरत बनी हुई है।
सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों, स्वास्थ्य सुविधाओं, आधारभूत संरचना, दवाइयों, कुशल व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ
एवं अन्य सुविधाओं की भारी कमी है। आम आदमी द्वारा स्वास्थ्य पर किए जाने वाले खर्च में तेजी से वृद्धि हुई
है, जिससे स्वास्थ्य पर खर्च को गरीबी बढ़ाने वाला प्रमुख कारण माना जाने लगा है।
ऐसे में, सुदृढ़ स्वास्थ्य ढांचे के लिए असाधारण प्रभावी निवेश जरूरी है। कोविड की चुनौतियों के बीच यह बेहतर
समय हो सकता है, जब 612.73 अरब डॉलर की सर्वोच्च ऊंचाई पर पहुंच चुके देश के विदेशी मुद्रा भंडार के एक
हिस्से का रणनीतिक उपयोग स्वास्थ्य ढांचे और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती देने में किया जाए। हम उम्मीद करें
कि देश के स्वास्थ्य ढांचे और स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती और कुप्रबंधन दूर करने हेतु केंद्र और राज्य सरकारों
द्वारा समन्वित रूप हरसंभव कदम उठाए जाएंगे।