-आशीष बहल-
कहते हैं कि कर्मचारी सरकारी व्यवस्था की रीढ़, दिल, दिमाग सब कुछ होते हैं क्योंकि ये इस व्यवस्था के स्थायी
प्रतिनिधि हैं। सरकारें कोई भी आए, कर्मचारी वर्ग निरंतर देश के निर्माण में अपनी भागीदारी निभा रहा है। आज
कर्मचारी वर्ग पूरे भारत में सिर्फ एक ही मांग पर संगठित होकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है और वो है
पुरानी पेंशन योजना की बहाली। पुरानी पेंशन और नई पेंशन के बीच में कर्मचारियों का विभाजन 2003 में हुआ
था, जब न्यू पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारियों को ठगा गया। उस समय इस योजना को इस तरह पेश किया गया
कि बस यही एक योजना है जो आपको जीते जी स्वर्ग दिखा देगी, परंतु हुआ यह कि जब कर्मचारी रिटायर होना
शुरू हुए तो जीते जी नरक में पहुंच गए। जो कर्मचारी 15 से 20 साल नौकरी करके सेवानिवृत्त हो रहे हैं, उनको
नई पेंशन के तहत 1000 से 1500 पेंशन मिल रही है। और तो और, विडंबना यह है कि वो बीपीएल में भी नहीं
आ सकते और बुढ़ापा पेंशन भी नहीं ले सकते। ये कैसा न्याय है? एक कर्मचारी अपनी पूरी जि़ंदगी मे सिर्फ नौकरी
करता है। उसे मिलने वाली एक-एक पाई का उसके पास हिसाब रहता है। उससे ज्यादा वो कभी कमा नहीं सकता
और उस पर भी टैक्स देता है।
अपनी मेनहत की कमाई का पैसा उससे जबरदस्ती शेयर मार्केट में लगवाया जाता है। उस पैसे के ऊपर किसी
प्रकार की कोई गारंटी नहीं दी जाती। अपने पैसे पर भी उसका कोई मालिकाना हक नहीं है। किसी प्रकार की जरूरत
पर वो उसे निकलवा नहीं सकता, अगर निकलवाना चाहे तो उसके लिए भी न जाने क्या क्या औपचारिकताएं
निभानी पड़ती हैं। किसी प्रकार की दुर्घटना होने पर परिवार को कुछ नहीं मिलता। कई परिवार सड़कों पर आ गए,
कई अपने बुढ़ापे को रो रहे हैं, परंतु हमारी सरकार है कि देख कर भी देखना नही चाहती। चलो यह भी बर्दाश्त कर
लिया हमने, परंतु इस नई पेंशन का रोना बस यहीं तक नहीं है। न्यू पेंशन स्कीम में कोई भी कर्मचारी सेवानिवृत्त
होने पर अपनी कुल बचत का सिर्फ 60 प्रतिशत ही निकालने का अधिकार रखता है। उस पर भी शेयर मार्केट का
ऊपर-नीचे सब देखा जाएगा जो टैक्स बनेगा वो भी कटेगा। बाकी के बचे 40 प्रतिशत की आपको पेंशन लग जाएगी
और वो भी फिक्स यानी उस 40 प्रतिशत के ब्याज को ही पेंशन माना जाए। किसी भी प्रकार का कोई महंगाई भत्ता
या अन्य लाभ कर्मचारियों को नहीं दिया जाता। अब ये कैसे एक बूढ़े कर्मचारी के हित में हो सकता है।
ये गणित समझ से बाहर है और यदि ये फायदे की योजना है तो नेताओं और मंत्रियों को इनसे वंचित क्यों रखा
है। उन्हें भी इसी योजना में शामिल किया जाए। परंतु हमारी सरकारें कर्मचारी की पेंशन को सरकारी खजाने पर
भार समझती हैं, जबकि पुरानी पेंशन कर्मचारी का अधिकार है। अभी न्यू पेंशन का प्रदेश संगठन हिमाचल सरकार
से 2009 की नोटिफिकेशन जिसके तहत कर्मचारी की मृत्यु पर कर्मचारी के परिवार को पुरानी पेंशन योजना का
लाभ दिया जाना है, उसे लेकर दिन-रात मांग कर रहे हैं और सरकार के प्रतिनिधियों के दरवाजे पर दस्तक दे रहे
हैं। क्योंकि इस कोरोना काल में कई कर्मचारी असमय मृत्यु का ग्रास बने हैं जिससे उनके परिवार की स्थिति अब
दयनीय बनी हुई है। एक कर्मचारी इतना सक्षम नहीं हो पाता कि अपनी आजीविका के अतिरिक्त कुछ कमा सके।
इसलिए जब बुढ़ापे में 30 से 35 साल की नौकरी के बाद वो सेवानिवृत्त होता है तो उसके पास एक ही सहारा होता
था, वो थी पेंशन। ये पेंशन सिर्फ उसे आर्थिक रूप से ही मजबूत नहीं बनाती, बल्कि परिवार में उस बुजुर्ग का
सम्मान भी बनाए रखती थी। जब बुढ़ापे में इनसान अपने हाथ-पांव से भी अक्षम हो जाता है तो ये पेंशन उसकी
बुढ़ापे की लाठी बन जाती है। परंतु आज सेवानिवृत्त हुआ कर्मचारी क्या कर रहा है, मजदूरी, कबाड़ी का काम, रेहड़ी
लगा रहा है। ऐसा नहीं है कि इन कामों में कोई बुराई है, परंतु कर्मचारी वर्ग को सेवानिवृत्त होने के बाद सिर्फ
मजबूर होकर ये काम करने पड़ रहे हैं। आज जगह-जगह से कई ऐसे लोगों की दुःख भरी कहानियां सामने आ रही
हैं जिसमें उनकी बदतर होती जिंदगी के बारे में सुनकर आंखें नम हो जाती हैं। जब 2003 में नई पेंशन योजना की
शुरुआत हुई थी तो भोले भाले कर्मचारियों को इसका थोड़ा भी अंदाजा नहीं था कि उन्हें ये स्कीम बेची जा रही है
और इसकी कीमत पूरी जि़ंदगी होगी। आज हाथ मसलने और गुहार लगाने के सिवा कोई चारा नहीं, परंतु अब ये
चिंगारी भयानक आग का रूप ले रही है।
अब अधिकतर कर्मचारी वही हैं जो नई पेंशन से जुड़े हैं और अब हमारे देश की सरकारों पर ये प्रश्नचिन्ह लग
गया है कि आखिर कौन इस पर फैसला लेगा और कर्मचारियों को उनका हक पुरानी पेंशन लौटाएगा। आज की
सरकारें भी भली-भांति जानती हैं कि पुरानी पेंशन आने वाले हर चुनाव में न सिर्फ मुख्य मुद्दा होने वाला है, बल्कि
इसके लिए जो प्रश्न जनता इनके सामने खड़े करेगी, उससे भी बचा नहीं जा सकता। दरअसल पेंशन मिलने से
सिर्फ पेंशन भोगी को ही फायदा नहीं होता। अगर इसे दूरदर्शी तरीके से सोचा जाए तो इसका लाभ व्यापार से लेकर
सारी अर्थव्यवस्था पर रहता है। इसको इस तरीके से समझिए, एक कर्मचारी जो रिटायर होकर पेंशन पर जीवन-
यापन कर रहा है, वो क्या करता है? वो पेंशन के पैसे को बाजार में खर्च करता है अपनी हर प्रकार की जरूरत के
लिए, जिससे बाजार के व्यापारी वर्ग को फायदा मिलता है। अब जिसको पेंशन नहीं है, वो क्या करेगा, वो खर्च तो
कर ही नहीं सकता, उल्टा वो भी बाजार में कमाने वालों की जमात में आ जाएगा और जमा का तो मतलब ही
नहीं। अब समय आ गया है कि पुरानी पेंशन की इस लड़ाई को जीत कर ही दम लिया जाए और सरकार को भी
इस ओर सकारात्मक कदम उठाने का अभी सही मौका है क्योंकि सत्ता का रास्ता कर्मचारी हित से होकर गुजरता
है। अब उस रास्ते को पुरानी पेंशन योजना से पक्का किया जाता है या नई पेंशन योजना से कर्मचारियों के लिए
गड्ढे ही खोदे जाते हैं, ये तो देश की विभिन्न सरकारों को तय करना है।