लवण्या गुप्ता
शिखा और निशा दो बहनें थीं। शिखा आत्मविश्वासी थी, तो निशा में आत्मविश्वास की बेहद कमी थी।
एक दिन मां ने दोनों को बाजार से कुछ सामान लाने के लिए भेजा। तभी शिखा का पैर साइकिल में
फंस गया। यह देख निशा डर गई। वह सोचने लगी कि शिखा की वह किस तरह मदद कर सकती है।
अभी वह यह सोच-विचार कर ही रही थी कि शिखा ने हिम्मत दिखाते हुए किसी तरह साइकिल रोक कर
अपना पैर निकाला। उसके पैर में चोट लग गई थी और खून भी निकलने लगा था। उसे बहुत दर्द हो रहा
था। यह देख निशा घबरा गई। वह आसपास के लोगों को सहायता के लिए पुकारने लगी। कोई भी उनकी
मदद के लिए आगे नहीं आया।
हालांकि खून निकलते देखकर निशा थोड़ा डर गई थी, लेकिन किसी की मदद नहीं मिलने पर उसने
हिम्मत कर अपना कदम आगे बढ़ाया। उसे लगा जैसे उसके अंदर कोई अदृश्य शक्ति आ गई है। उसने
सबसे पहले अपना सूती कपड़े का दुपट्टा फाड़ लिया और उससे शिखा के पैर के आसपास फैले खून को
पोछा। फिर घाव को कपड़े से बांध दिया। इससे खून बहना बंद हो गया। उसने शिखा को सहारा देकर
खड़ा किया और धीरे-धीरे उसे हॉस्पिटल ले गई। डॉक्टर ने चोट पर दवाई लगाकर मरहम-पट्टी कर दी।
इससे शिखा ने राहत महसूस की। वह मन ही मन निशा के बारे में सोच रही थी। वह उसके
आत्मविश्वास को देख काफी खुश थी। थोड़ी देर बाद जब दोनों बहनें घर पहुंचीं, तो मां शिखा के पैर में
पट्टी बंधी देखकर घबरा गई, लेकिन जब शिखा ने पूरी घटना की जानकारी दी, तो मां निशा के
आत्मविश्वास के बारे में सुनकर बहुत खुश हुई। उन्होंने आगे बढ़कर निशा को गले लगा लिया। मां ने
दोनों बहनों से कहा, मैं हमेशा चाहती थी कि दोनों बहनें आत्वविश्वासी बनें, पर निशा का डर देखकर
मुझे कभी-कभी निराशा होती थी। पर आज इसने मुझे विश्वास दिला दिया है कि जरूरत पड़ने पर वह
किसी भी कार्य को करने का साहस दिखा सकती है। निशा खुश थी। अपनी प्रशंसा सुनकर वह मां से
लिपट गई।