विकास गुप्ता
कोरोना की तीसरी लहर को लेकर जताई जा रही आशंका अब संभावना में बदलती दिख रही है। न सिर्फ पहाड़ों पर
गए सैलानियों बल्कि बाजारों में बेखौफ घूम रहे लोगों के चलते देश में संकट दस्तक दे रहा है। क्या कारण है कि
लोग कोरोना की घातक दूसरी लहर को आसानी से भूल गए। सड़कों पर दम तोड़ते लोगों की तस्वीरें आज भी जेहन
में ताजा हैं। चिंताओं की लाइन, श्मशान के बाहर शवों को लेकर घंटों इंतजार करते परिजनों का दुख सभी ने देखा।
फिर हम इन तस्वीरों से सबक क्यों नहीं ले रहे हैं। जब हमें पता है कि हमारा स्वास्थ्य ढांचा इस काबिल नहीं है
कि आपदा के समय हर किसी को राहत मिल सके, तो फिर लापरवाही बनती नहीं है। पहाड़ों पर घूमने गए लोग
सुपर स्प्रेडर बनकर लौटे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मसूरी में ही तीन लोग संक्रमित मिले हैं। यह वह आंकड़ा है,
जिनका टेस्ट किया गया है। ऐसे और लोग भी होंगे, जो संक्रमित होंगे। सिर्फ मसूरी ही नहीं दूसरे स्थलों पर भी
संक्रमितों के मिलने की खबर है। ऐसे में खतरा बढ़ेगा नहीं तो क्या होगा। इन दिनों जिस तरह की तस्वीरें देखने
को मिल रही हैं, वे हैरान करने वाली हैं। पर्यटन स्थलों पर भीड़ उमड़ रही है। हालत यह है कि होटलों में जगह ही
नहीं है। फिर भी लोग पहुंच रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी तक इस लापरवाही पर चिंता जता चुके हैं। मगर लोगों में
इस बात का भय ही नहीं है कि जरा-सी भी लापरवाही फिर से बड़े जोखिम में धकेल सकती है। पिछले एक महीने
के दौरान दूसरी लहर का असर कम पड़ते देख देश के ज्यादातर हिस्सों में प्रतिबंधों में ढील दी जा चुकी है। बाजार,
मॉल, रेस्टोरेंट, सिनेमाघर आदि खुल गए हैं। दिल्ली में तो शराबखाने भी देर रात तक खोल दिए गए हैं। जैसे ही
बाजार खुले, सामान्य दिनों की तरह भीड़ बढऩे लगी। यह स्थिति फिर से एक और लहर का कारण बन जाए तो
ताज्जुब की बात नहीं। क्योंकि हम खुद ही फिर से संकट न्योता दे रहे हैं। हकीकत तो यह है कि दूसरी लहर अभी
खत्म नहीं हुई है। सिर्फ असर कम पड़ा है। संक्रमण के रोजाना मामले उतार पर हैं। मौतों का आंकड़ा भी कम हुआ
है। लेकिन अब ज्यादा बड़ा खतरा डेल्टा प्लस जैसे विषाणु का खड़ा हो गया है। विशेषज्ञ इस बात का अंदेशा पहले
ही जता चुके हैं कि डेल्टा प्लस तीसरी लहर का कारण बन सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि तीसरी लहर
अगस्त-सितंबर में आ सकती है तो कुछ इसका वक्त अक्टूबर-नवंबर बता रहे हैं। लेकिन तीसरी लहर का अंदेशा
जरूर बना हुआ है। और अगर तीसरी लहर आई तो इसकी सबसे बड़ी वजह बाजारों और पर्यटनों पर बढ़ती भीड़ ही
कही जाएगी। पहले तो हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड ने दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों की लिए आरटीपीसीआर
जांच अनिवार्य कर रखी थी। लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया। इसी का नतीजा है कि लोग तेजी से पहाड़ी
ठिकानों की ओर सैर के लिए निकल पड़े। सवाल है कि हम सब कुछ जानते-बूझते भी आखिर ऐसा जोखिम क्यों
उठा रहे हैं? इसमें कोई दो राय नहीं कि लंबे समय से घरों में बंद रहने से लोगों की मानसिक स्थिति पर गहरा
असर पड़ा है। इसलिए अब वे बाहर निकलना चाह रहे हैं। पर अभी जान बचाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
महामारी से बचाव के लिए मास्क, बार-बार हाथ धोने और सुरक्षित दूरी बनाए रखना सबसे जरूरी उपाय माना गया
था। लेकिन पर्यटन स्थलों से लेकर बाजारों में इन नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं। इस खतरे को देखते हुए ही
दिल्ली में दो दिन के लिए एक बड़े बाजार को बंद करना पड़ा। भीड़ में कौन व्यक्ति संक्रमित है या कौन बिना
लक्षणों वाला संक्रमित, किसको पता है? अब तक हमने देखा है कि जब-जब और जहां-जहां भीड़ बढ़ी है, वहां
संक्रमण तेजी से फैला है। ऐसे में बेहतर है कि अभी हम बचाव पर ध्यान दें। वरना महामारी पर अब तक जितना
भी काबू पाया है, उस पानी फिरने में देर नहीं लगेगी। दूसरी लहर कम पडऩे के बाद भी अगर पूर्वोत्तर राज्यों,
महाराष्ट्र और केरल में मामले बढ़ रहे हैं तो यह बड़े खतरे का संकेत है। तीसरी लहर सामने है। विश्व स्वास्थ्य
संगठन भी डेल्टा और डेल्टा प्लस रूप के खतरे को लेकर चेता रहा है। इस हकीकत पर भी गौर किया जाना चाहिए
कि इस वक्त एक सौ चार देश डेल्टा की चपेट में हैं। भारत में दूसरी लहर का कारण भी इसे ही माना गया था।
चिंता इसलिए और बढ़ जाती है कि कुछ दक्षिणी राज्यों में डेल्टा प्लस के मामले भी मिल चुके हैं। अगर ब्रिटेन,
रूस, इंडोनेशिया जैसे देशों पर गौर करें तो इन देशों में प्रतिबंधों में ढील के बाद लोग एकदम बेपरवाह हो गए थे।
इसका नतीजा फिर से संक्रमण फैलने के रूप में देखने को मिला। इसलिए सवाल है कि हम ऐसी नौबत ही क्यों
आने दें। अभी खतरा इसलिए भी ज्यादा है कि अपने देश में बड़ी आबादी को टीका नहीं लगा है। टीकाकरण की मंद
रफ्तार के लिए तो सरकारों को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं, पर भीड़ बढऩे से महामारी फैली तो इसके लिए दोषी कौन
होगा?