मीराबाई चानू के पास मल्लेश्वरी की उपलब्धि को दोहराने का स्वर्णिम मौका

asiakhabar.com | July 10, 2021 | 5:19 pm IST

एजेंसी

नई दिल्ली। विश्व और राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता मीराबाई चानू के पास
आगामी तोक्यो खेलों में पदक जीतकर भारोत्तोलन में ओलंपिक पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय खिलाड़ी कर्णम
मल्लेश्वरी की उपलब्धि को दोहराने का सुनहरा मौका होगा।
क्लीन एवं जर्क में विश्व रिकॉर्ड धारक मीराबाई 49 किग्रा वर्ग में चुनौती पेश करेंगी जहां वह पदक की प्रबल
दावेदारों में शामिल हैं। वह इस बार भारोत्तोलन में चुनौती पेश करने वाली एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं।
मल्लेश्वरी ने दो दशक से भी अधिक समय पहले सिडनी खेलों में 19 सितंबर 2000 को महिला 69 किग्रा भार वर्ग
में स्नैच में 110 और क्लीन एवं जर्क में 130 किग्रा वजन उठाकर कांस्य पदक जीता था। वह ओलंपिक पदक
जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी और अकेली भारोत्तोलक हैं। इन खेलों में पहली बार महिला भारोत्तोलन
को शामिल किया गया था।
भारोत्तोलन में 2017 की विश्व चैंपियन मीराबाई ने अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलन महासंघ की रैंकिंग सूची के आधार पर
कोटा हासिल करते हुए तोक्यो खेलों में जगह बनाई। वह इन खेलों की क्वालीफिकेशन रैंकिंग में दूसरे स्थान पर
रही। मीराबाई वैसे रैंकिंग में चीन की हाउ झीहुई और जियांग हुईहुआ तथा उत्तर कोरिया की री सोंग गुम के बाद

चौथे स्थान पर थी लेकिन उत्तर कोरिया ने ओलंपिक में हिस्सा नहीं लेने के फैसला किया। भारोत्तोलन में एक देश
एक खिलाड़ी को उतार सकता है और ऐसे में चीन की झीहुई ने तोक्यो खेलों में जगह बनाई जबकि हुईहुआ बाहर
हो गईं।
महिला 49 किग्रा वर्ग में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली खिलाड़ियों में मीराबाई से अधिक वजन सिर्फ
झीहुई ही उठा पाई हैं और ऐसे में भारतीय खिलाड़ी पदक की प्रबल दावेदार है। झीहुई का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 213
किग्रा है जबकि मीराबाई ने अप्रैल में ताशकंद में एशियाई चैम्पियनशिप में क्लीन एंव जर्क में विश्व रिकॉर्ड 119
किग्रा और स्नैच में 86 किग्रा के साथ कुल 205 किग्रा वजन उठाया था और इस दौरान राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी तोड़ा।
दूसरी बार ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रही मीराबाई अमेरिका में ट्रेनिंग कर रही हैं और पांच साल पहले रियो
ओलंपिक की निराशा को भुलाना चाहेंगी जहां वह 48 किग्रा वर्ग में क्लीन एवं जर्क के तीनों प्रयासों में वजन उठाने
में नाकाम रहने के कारण बाहर हो गई थी।
ओलंपिक में भारोत्तोलन के इतिहास पर गौर करें तो 1896 में आधुनिक ओलंपिक की शुरुआत के बाद से यह
प्रतियोगिता लगभग हर बार खेलों के महासमर का हिस्सा रही लेकिन भारत अब तक इस प्रतियोगिता में सिर्फ एक
कांस्य पदक जीत पाया है। भारोत्तोलन सिर्फ 1900, 1908 और 1912 में ओलंपिक का हिस्सा नहीं रहा।
भारतीय रिकॉर्ड भारोत्तोलन में निराशाजनक है और मल्लेश्वरी के अलावा कोई भारतीय भारोत्तोलक खेलों के महाकुंभ
में पदक नहीं जीत पाया है। कुंजरानी देवी हालांकि 2004 एथेंस ओलंपिक में 48 किग्रा वर्ग में चौथे स्थान रहते हुए
ओलंपिक पदक जीतने के करीब पहुंची थी। इन्हीं खेलों में सनामाचा चानू ने भी चौथा स्थान हासिल किया था
लेकिन प्रतिबंधित पदार्थ के लिए पॉजिटिव पाए जाने के बाद उन्हें अयोग्य कर दिया गया। मल्लेश्वरी ने भी 63
किग्रा वर्ग में चुनौती पेश की लेकिन चोटिल होने के कारण उन्हें स्पर्धा बीच में छोड़नी पड़ी।
भारत को डोपिंग के कारण इन खेलों में शर्मसार भी होना पड़ा जब 2006 में डोपिंग प्रकरण के कारण भारतीय
भारोत्तोलन महासंघ को प्रतिबंधित कर दिया जिसके कारण 2008 बीजिंग खेलों में देश के किसी भारोत्तोलक ने
हिस्सा नहीं लिया।
रियो ओलंपिक 2016 में मीराबाई के अलावा सतीश शिवलिंगम ने भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था लेकिन वह
भी पुरुष 77 किग्रा वर्ग में 11वें स्थान के साथ पदक से काफी दूर रहे।
भारतीय भारोत्तोलन महासंघ का गठन 1935 में किया गया और बिजॉय चंद मेहताब इसके पहले अध्यक्ष थे।
ओलंपिक की भारोत्तोलन स्पर्धा में पहला भारतीय प्रतिनिधित्व बर्मा (म्यांमार) मूल के यू जॉव वीक के रूप में 1936
बर्लिन खेलों में था। ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय मूल के पहले भारोत्तोलक दंदामुंदी
राजगोपाल थे जिन्होंने 1948 लंदन खेलों, 1952 हेलसिंकी खेलों और 1956 मेलबर्न खेलों में हिस्सा लिया।
भारतीय भारोत्तोलक लंदन ओलंपिक 1948, हेलसिंकी ओलंपिक 1952, मेलबर्न ओलंपिक 1956, रोम ओलंपिक
1960, तोक्यो ओलंपिक 1964, मैक्सिको ओलंपिक 1968 और म्यूनिख ओलंपिक 1972 में शीर्ष 10 में भी जगह
नहीं बना पाए।

मांट्रियल ओलंपिक 1976 में एक और मास्को ओलंपिक 1980 में दो भारोत्तोलकों ने भारत का प्रतिनिधित्व किया
और ये सभी अपने प्रयासों में वजन उठाने में नाकाम रहे।
लॉस एंजिलिस 1984 खेलों में पहली बार भारत के भारोत्तोलकों ने शीर्ष 10 में जगह बनाई। महेंद्रन कन्नन पुरुष
52 किग्रा में 10वां जबकि देवेन गोविंदसामी ने भी पुरुष 56 किग्रा वर्ग में 10वां स्थान हासिल किया।
भारत ने सियोल 1988 खेलों में पहली बार एक ही स्पर्धा में दो भारोत्तोलक उतारे। गुरुनाथन मुथुस्वामी और
राघवन चंद्रशेखरन पुरुष 52 किग्रा वर्ग में क्रमश: 11वें और 19वें स्थान पर रहे।
बार्सीलोना 1992 ओलंपिक में बी अधिशेखर पुरुष 52 किग्रा वर्ग में 10वें जबकि पोनुस्वामी पुरुष 56 किग्रा वर्ग में
18वें स्थान पर रहे।
भारत ने अटलांटा 1996 खेलों में पांच पुरुष भारोत्तोलकों के साथ अपना सबसे बड़ा दल उतारा था लेकिन सभी
भारोत्तोलकों ने निराश किया। भारतीयों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन राघवन चंद्रशेखरन का रहा जो पुरुष 59 किग्रा वर्ग में
11वें स्थान पर रहे।
सिडनी ओलंपिक में मल्लेश्वरी के अलावा सनामाचा चानू ने 53 किग्रा और टीएम मुथु ने 56 किग्रा वर्ग में हिस्सा
लिया लेकिन क्रमश: छठे और 16वें स्थान पर रहे।
लंदन 2012 खेलों में पुरुष वर्ग में के रवि कुमार और महिला वर्ग में सोनिया चानू ने भारत की ओर से हिस्सा
लिया और क्रमश: 15वें और सातवें स्थान पर रहे।


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