मोनी चौहान
नन्हे मुन्ने बच्चों को हम जब खिलौने दिलाते है। उन खिलौनों से बच्चे मन वहलाने लिये खेलते है। हम जब
बाजार खरीदी के लिए जाते है अगर साथ में छोटे बच्चे हैं तो वे दुकान पर रखे खिलौनों को देखते ही जिद करके
वह खिलौना खरीदने हमे मजबूर कर देते है या पास पड़ोस के बच्चे का नया खिलौना देख आते है तो वही खिलौना
लेने की जिद करते है और खरीदकर ही दम लेते है।
हाल में यह तथ्य उजागर हुआ है बच्चे जिन खिलौनों से खेलते है वह जाँच में स्वास्थ्य के लिये हानिकारक निकले
है।भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यू सी आई) ने कहा है भारत में आयात होने बाले 66.90 प्रतिशत खिलौने बच्चों के
लिये खतरनाक होते हैं। क्यू सी आई ने गोपनीय तरीक़े से कराये गये अध्ययन एवं जाँच में यह पाया कि अनेक
खिलौने मेकेनिकल, केमिकल और अन्य तरह की सूक्ष्म जाँच में अमानक या कसौटी पर खरे नहीं उतर पाये है।
क्यू सी आई ने कहा है विदेशों से आयात किये गये खिलौनों एवं यहाँ के खिलौनों में केमिकल निर्धारित मात्रा से
ज्यादा पाया गया। जिससे बच्चों में अनेक प्रकार की बीमारियां हो सकती है। लेकिन आम लोग एवं माता पिता इस
स्थिति से अनभिज्ञ हैं। भोपाल की सुषमा हो या इंदौर की हेमलता उनका कहना है मेरे बच्चों को जो खिलौना पसंद
आता है जिस खिलौने को लेने की जिद करते है हम खरीद लेते है। हमे नहीं लगता कि खिलौनों से कोई नुकसान
होता है। मेरे गृह नगर राघौगढ़ की सपना कहती है बच्चों के खिलौने में जेली का ध्यान रखती हूँ। बच्चे उससे
खेलकर हाथ धो लें। भोपाल की सुषमा हो, इंदौर की हेमलता या ग्वालियर की कल्पना उनकी तरह कई और माँ
बाप भी यहीं सोचते है कि खिलौनों से बच्चों को कोई नुकसान नहीं हो सकता। वे तो बच्चों की पसंद और क्वालिटी
देखकर उसे खरीद लेते है। उनके पास कुछ और तरीका जाँच करने का तरीका भी नहीं होता।
मेरे गृह नगर राघौगढ़ के खिलौना बेचने बाले एक दुकानदार का कहना है छोटे बच्चों के कुछ खिलौनों पर टाँक्सिक
और नाँन-टाँक्सिक लिखा होता है लेकिन सभी ग्राहकों को यह पता नहीं होता। दुकानदार ने बताया कि अधिकतर
लोग वह खिलौना खरीद लेते है जो उन्हें पसंद आता है या जिसकी जिद बच्चे करते हैं। उस खिलौने की कीमत
और चलाने के तरीक़े के अलावा वो कुछ और नहीं पूछते। विगत दिनों भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यू आई सी) के
तत्कालीन महासचिव डॉक्टर आर पी सिंह ने जानकारी दी थी भारत में विदेशों से आने बाले वहुत से खिलौनों की
जाँच एक सेंपल के आधार पर की जा रही है और उनकी कोई वैधता अवधि नहीं है, जिससे यह पता नही चल रहा
था कि उस टेस्ट रिपोर्ट के साथ आ रहे खिलौनों के बंडल की जाँच की गई है या नही। इस बात को लेकर मंथन
हुआ और फिर क्यू आई सी को बाजार में बिक रहे खिलौनों की जाँच के लिये कहा गया। क्यू आई सी ने दिल्ली
और एन सी आर,मुंबई, भोपाल से खिलौने लिये। ये खिलौने कोई भी दुकान से एक खिलौना लेकर जाँच के लिये
सेंपल चुने गये। इनकी जाँच एनएबील की मान्यता प्राप्त लैब में किया गया। अलग-अलग प्रकार के 121 तरह के
खिलौनों की जाँच की गई।
क्यू सी आई ने खिलौनों की मेकेनिकल और जाँच की, उसके बाद पेंट्स, लैड और हैवी मेटल की जाँच भी की गई।
इस जाँच में मात्र 33 प्रतिशत खिलौने ही सही निकले। टाँक्सिक खिलौनों से होने बाले नुकसान पर डाँ आर पी सिंह
ने कहा था, वहुत सारे खिलौने मेकेनिकल जाँच में फैल हो गये। मेकेनिकल जाँच का अर्थ है कि जैसे मेटल के
खिलौने से बच्चे को त्वचा पर खरोंच आ सकती है, उसे कट लग सकता है। मूँह में डालने पर गले में फसना नही
चाहिए। इन सब चीजों की जाँच की जाती है।
केमिकल जाँच में देखा जाता है कि किस तरह के केमिकल का उपयोग हो रहा है और उनकी मात्रा क्या है, जैसे
कि साफ्ट टाँयज में एक केमिकल होता है थैलेट, जिससे कैंसर का खतरा भी हो सकता है। उससे निकलने बाले
रेशों से बच्चों को नुकसान नही पहुंचना चाहिए। खिलौनों में इस्तेमाल होने बाले केमिकल से त्वचा संबंधी बीमारियां
हो सकती है। मूँह में लेने पर इंफेक्शन हो सकता है। इसके अलावा लेड, मर्करी और आरसैनिक जैसे हैवी मेटल भी
नहीं होने चाहिए। बच्चों के टेंट हाउस और काँस्ट्यूम्स जैसे खिलौनों को ज्वलनशील पाया गया। ये जल्दी आग
पकड़ सकते हैं। जिन खिलौनों को जाँच के लिए चुना गया उनमें मुख्य है प्लास्टिक से बने खिलौने, साफ्ट टाँय/
स्टफ्ड टाँय,इलेक्ट्रिक खिलौने, लकड़ी के बने खिलौने, मेटल से बने खिलौने, जिन खिलौनों के अंदर बच्चे जा सकते
है जैसे टाँय टेंट, काँस्ट्यूम्स। क्यू आर सी द्वारा करायी गयी जाँच के परिणाम चौकाने बाले आये है। 41.3
प्रतिशत सैंपल मेकेनिकल जाँच में फैल हुए। 3.3 प्रतिशत सैंपल फैलाइट केमिकल जाँच में फैल हुए। 12.4 प्रतिशत
सैंपल फैलाइट और मेकेनिकल जाँच में फैल हुए। 7.4 प्रतिशत सैंपल ज्वलनशीलता जाँच में फैल हुए। 2.5 प्रतिशत
सैंपल मेकेनिकल और ज्वलनशीलता में फैल हुए। भारत में सबसे ज्यादा खिलौने चीन से आते है। इसके अलावा
श्रीलंका, मलेशिया, जर्मनी, हांगकांग और अमेरिका से भी खिलौने आते है।