अर्पित गुप्ता
जिला पंचायत चुनाव को उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था। जिसमें सदस्य संख्या में
पिछडऩे के बाद जिलों पर भाजपा का दबदबा बन गया। इस लिहाज से यह नहीं कहा जा सकता कि जीता कौन।
क्योंकि सपा और भाजपा दोनों ने ही दमदारी से खेल दिखाया है। अब अगले साल फाइनल कौन जीतेगा, यह पता
चलने में समय है, लेकिन टीम तैयार करने की कवायद अभी से शुरू हो गई है। भाजपा की तैयारी पूरी है। अगर
कुछ बड़ा नहीं हुआ तो पार्टी योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर चुनाव में जाएगी। वहीं विपक्षी खेमा अपनी टीम को
धार देने में जुटा है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय
सिंह से मुलाकात कर चुके हैं। असदुद्दीन ओवैसी के साथ ओमप्रकाश राजभर की लगातार बैठकें हो रही हैं। पश्चिम
बंगाल में ममता की पार्टी टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) उत्तर प्रदेश में अपने संगठन को मजबूत कर रही है। इसके
साथ ही निषाद पार्टी समेत बिहार में अति पिछड़ों की विकासशील इंसान पार्टी भी उत्तर प्रदेश में इस समुदाय की
राजनीति करने वालों के लिए थोड़ी असहजता पैदा कर रही है। कुल मिलाकर राज्य में इस तरह की राजनीतिक
उठापटक इस बात का संकेत है कि आने वाले विधानसभा के चुनाव बहुत दिलचस्प होने वाले हैं। यूपी में भाजपा
को सत्ता से हटाने के लिए आस-पास के राज्यों की पार्टियों ने अपनी जड़ों को जमाने के लिए पूरी ताकत लगानी
शुरू कर दी है। कुल मिलाकर कोशिश यही है कि इस बार कैसे भी कर के भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से हटाया
जाए। इसके लिए कई दलों ने एक साथ मिलकर गठबंधन की घोषणा भी कर दी है।
उत्तर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं की जो मुलाकातें हो रही
हैं उससे यहां नए गठबंधन के रास्ते खुलने की संभावनाएं नजर आ रही हैं। दोनों नेताओं की यह पहली मुलाकात
नहीं थी इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि मामला गठबंधन की राह पर चल निकला है। हालांकि आप सांसद
संजय सिंह ने इस मुलाकात को महज आपसी सौहार्द की मुलाकात तक रखने की बात की है, लेकिन राजनीतिक
गलियारों में इसके अलग मायने निकाले जाने लगे हैं।
कहा जा रहा है कि जिस तरह सपा और आप, ममता बनर्जी की टीएमसी के साथ खड़े होते हैं उससे यह अंदाजा
लगाया जा सकता है कि टीएमसी भी इस गठबंधन में शामिल हो सकती है। विश्लेषकों के मुताबिक तीनों का
गठबंधन यूपी की मुस्लिम बाहुल्य आबादी को बहुत बेहतर तरीके से साथ जोडऩे की ताकत रखता है। छोटे-छोटे
राजनीतिक दलों के आपस में गठबंधन के साथ प्रदेश की बड़ी राजनीतिक पार्टियां पूरी तरह अकेले ही चुनाव लडऩे
के मूड में हैं। कांग्रेस ने जिस तरीके से राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी को मैदान में उतारा है उससे इस बात का
अंदाजा लगाया जा रहा है कि वह आक्रामक रूप से ही चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है। चूंकि कुछ अहम दलों की
राजनीतिक बिसात बिछ चुकी है लेकिन उसमें कांग्रेस की कोई संभावना नहीं दिख रही। बसपा ने एलान कर दिया
है कि वह कोई गठबंधन नहीं करेगी तो, कांग्रेस उससे भी नहीं जुड़ सकती। सपा और कांग्रेस का पिछला अनुभव
कुछ अच्छा नहीं रहा इसलिए इसकी संभावना भी न के बराबर ही है। इस बार भी उत्तर प्रदेश में जातिगत वोटों के
आधार पर ज्यादा बंटवारे की संभावनाएं नजर आ रही हैं। यही वजह है कि ज्यादा से ज्यादा छोटे-छोटे समुदायों में
अपनी पकड़ रखने वाली राजनीतिक पार्टियां इस बार प्रमुख दलों के साथ मिलकर चुनाव की रंगत को बदलना
चाहती हैं।