मनीष गुप्ता
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए)
को राहत के न्यूनतम मानक प्रदान करने के लिए वैधानिक रूप से बाध्य किया गया है, जिसमें उन लोगों के
परिवार के लिए अनुग्रह राशि शामिल होनी चाहिए, जिन्होंने कोविड के कारण अपनी जान गंवाई है। न्यायमूर्ति
अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अनुग्रह राशि प्रदान नहीं करके, एनडीएमए अपने वैधानिक
कर्तव्य का निर्वहन करने में विफल रहा है। न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने एनडीएमए को राहत के न्यूनतम
मानकों के अनुसार कोविड के कारण मरने वाले व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों के लिए मुआवजे के लिए दिशा-
निर्देश बनाने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि दिशानिर्देशों को छह महीने के भीतर लागू किया जाना
चाहिए। पीठ ने कहा, क्या उचित राशि प्रदान की जानी है, यह राष्ट्रीय प्राधिकरण के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
यह कहते हुए कि अदालत के लिए मुआवजे की एक विशेष राशि का निर्देश देना उचित नहीं है। पीठ ने कहा कि
आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 12 में इस्तेमाल किया गया शब्द होगा(शैल) है, जो अनिवार्य है, और होगा शब्द
को हो सकता है(मे) के रूप में जोड़ा गया है, जो प्रावधान के उद्देश्य को समाप्त कर देगा। पीठ ने कहा कि कोविड
रोगियों के लिए जारी किए गए मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु की तारीख और कारण सहित सरल दिशानिर्देश होने
चाहिए। पीठ ने कहा, परिवार के संतुष्ट नहीं होने पर मौत के कारणों को ठीक करने की भी सुविधा होगी। शीर्ष
अदालत का आदेश उन जनहित याचिकाओं पर आया, जो अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल और रीपक कंसल द्वारा
दायर की गई थीं, जिसमें कोविड पीड़ितों के परिवारों को चार लाख रुपये की अनुग्रह राशि के भुगतान के लिए
अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई थी। बंसल ने आपदा प्रबंधन अधिनियम (डीएमए) की धारा 12 (3) का
हवाला दिया, जिसमें अधिसूचित आपदा के दौरान मारे गए लोगों के परिवारों के लिए अनुग्रह राशि का प्रावधान है।