शिशिर गुप्ता
देश में पेट्रोल 108 रुपए लीटर और डीजल 101 रुपए लीटर पर पहुंच गया है। देश के 6 राज्यों में पेट्रोल 100
रुपए प्रति लीटर पर पहुंच गया है। मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के सभी जिलों में पेट्रोल 100
रुपए पर पहुंच गया है। वहीं बिहार, तेलंगाना, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, उड़ीसा और लद्दाख में भी कई
जगहों पर पेट्रोल 100 रुपए लीटर के पार निकल गया है। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों और मैन्युफैक्चरिंग
लागत बढऩे से थोक महंगाई दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्ट्री के मुताबिक थोक
महंगाई दर मई में 12.94 फीसदी पर पहुंच गई है। यह मई 2020 में -3.37 फीसदी रही थी। अब अमेरिकी
अर्थव्यवस्था लगभग खुल चुकी है। इसके साथ ही यूरोपीय देशों में भी जीवन सामान्य हो रहा है। इससे पेट्रोलियम
पदार्थों की मांग बढ़ रही है। यही वजह है कि इन दिनों कच्चे तेल की कीमतें चढ़ ही रही हैं। अमेरिकी बाजार में
ब्रेंट क्रूड 74 डॉलर प्रति बैरल के पार निकल गया है। लॉकडाउन में पेट्रोल-डीजल से सरकार ने 2.35 लाख करोड़
रुपए कमाए हैं। जो 2019-20 की तुलना में करीब 6 फीसदी ज्यादा है। अब सरकार को अपनी इस कमाई से कुछ
राहत जनता को भी देनी चाहिए, जो महंगाई से बेहाल है। पिछले कुछ समय से लगातार जिस तरह पेट्रोल और
डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है, उसे देखते हुए यह आशंका पहले ही जताई जा रही थी कि इसका असर
बाजार में मौजूद सभी जरूरत के सामान पर पड़ेगा। अब पेट्रोल और डीजल की कीमतें लोगों की पहुंच से धीरे-धीरे
दूर होती जा रही हैं, बल्कि खाने-पीने के सामान की खरीदारी को लेकर भी बहुतों को सोचना पड़ रहा है। गौरतलब
है कि कच्चे तेल और विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में इजाफे की वजह से थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित
महंगाई की दर मई में बढ़ कर रिकार्ड उच्च स्तर 12.94 फीसद पर पहुंच गई। जबकि सिर्फ साल भर पहले
मुद्रास्फीति शून्य से 3.37 फीसद नीचे थी। इसके साथ-साथ खाने-पीने के सामान की कीमतें भी तेजी से बढ़ी हैं।
खासतौर पर रोजमर्रा के खाने-पीने में उपयोग की सबसे जरूरी चीजों के दाम भी बेलगाम होते जा रहे हैं। सच यह
है कि इस साल बीते कुछ महीनों से थोक और खुदरा महंगाई की रफ्तार में जिस तरह की तेजी आई है, उसने
आम लोगों के माथे पर शिकन पैदा कर दी है। सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति की दर दो
फीसद की कमी या वृद्धि के साथ चार फीसद पर कायम रखने की जिम्मेदारी दी हुई है। यह व्यवस्था मुख्य रूप
से देश की आबादी के उस हिस्से की फिक्र में है, जिसकी थाली पर बाजार भाव का सीधा असर पड़ता है। लेकिन
ऐसा लगता है कि चार फीसद का यह आंकड़ा अब महज औपचारिक दस्तावेजों तक सिमट कर रह गया है। अंदाजा
इससे लगाया जा सकता है कि खुदरा महंगाई दर मई में उछल कर 6.3 फीसद पर पहुंच गई। सवाल है कि जिस
दौर में कम से कम रोजमर्रा की सबसे जरूरी चीजों की कीमतों को नियंत्रण में रखने की जरूरत है, वैसे में आखिर
वे कौन-सी नीतियां लागू हो रही हैं, जिनमें महंगाई पर लगाम लगने के बजाय इसमें और ज्यादा इजाफा होता जा
रहा है! एक ओर, पेट्रोल का दाम कई राज्यों में सौ रुपए प्रति लीटर से पार कर चुका है तो डीजल भी इसके करीब
है। वहीं खाने-पीने की लगभग सभी वस्तुओं की कीमतों में बेलगाम बढ़ोतरी ने आम लोगों के सामने ढेरों चुनौती
खड़ी कर दी है। यह किसी से छिपा नहीं है कि पिछले लगभग डेढ़ साल से ज्यादातर लोग गंभीर आर्थिक मुश्किलों
से जूझ रहे हैं। खासतौर पर समाज का वैसा तबका, जो असंगठित क्षेत्र में रोजगार या दिहाड़ी के भरोसे अपनी
रोजी-रोटी चलाता है, उसके सामने जिंदगी के लिए बुनियादी जरूरतें पूरी करना भी एक बड़ी चुनौती हो गई है।