विकास गुप्ता
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) सस्ती कीमतों पर खाद्यान्न के वितरण और प्रबंधन की एक प्रणाली के रूप
में विकसित हुई। हम देखते ही कि पिछले कुछ वर्षों में, पीडीएस देश में खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए
सरकार की नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। यह समाज के जरूरतमंद वर्गों को बहुत सस्ते दामों पर
बुनियादी खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं को वितरित करने की दिशा में काम करता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली
द्वारा वितरित की जाने वाली कुछ प्रमुख वस्तुएं गेहूं, चावल, दालें आदि हैं।
समय-समय पर भोजन के सार्वजनिक वितरण के क्षेत्र में सरकार द्वारा किए गए प्रौद्योगिकी आधारित सुधार
शामिल हुए है, वर्तमान में दिल्ली के मुख्यम्नत्री द्वारा घर-घर राशन वितरण की बात को लेकर ये फिर से चर्चा में
है. उचित मूल्य की दुकानों का स्वचालन तीव्र करने हेतु खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने एफपीएस पर
पीओएस के उपयोग के लिए दिशानिर्देश और विनिर्देश निर्धारित किए। वर्तमान में ५,२६,३७७ में से २,०४,१६२
एफपीएस के पास पीओएस है। इससे वितरण में लगने वाला समय कम हो जाता है और कदाचार से भी बचा जा
सकता है। इसके अलावा यह इन्वेंट्री की बेहतर ट्रैकिंग की ओर जाता है।
प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (नकद) के तहत खाद्य सब्सिडी सीधे लाभार्थियों के खाते में जमा की जाती है। इससे
भ्रष्टाचार में कमी आई है और बड़े पैमाने पर वितरण किया गया है। इसके अलावा इसने बिचौलियों की भूमिका को
कम किया है और नागरिकों को सशक्त बनाया है। पीडीएस में आधार सीडिंग के जरिये डुप्लीकेट/अयोग्य/फर्जी
राशन कार्डों को हटाने के लिए और 77.56 फीसदी यानी लगभग 17.99 करोड़ राशन कार्डों को सही लक्ष्य के साथ
आधार से जोड़ा गया है। जिस से वित्तीय संसाधन जिन्हें अन्य सामाजिक योजनाओं की ओर मोड़ा जा सकता है।
डिपो ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से एफसीआई गोदामों के सभी कार्यों को ऑनलाइन लाने और रिसाव की जांच
करने और डिपो स्तर पर संचालन को स्वचालित करने के लिए, एक "डिपो ऑनलाइन" प्रणाली शुरू की गई थी।
राशन कार्डों को स्मार्ट कार्ड से बदला जा रहा है जो पीडीएस प्रणाली के माध्यम से वितरित भोजन को ट्रैक कर
सकते हैं। इससे डिजिटल रिकॉर्ड सुनिश्चित करने के साथ पूरी वितरण प्रक्रिया का डिजिटलीकरण होता है। जीपीएस
ट्रैकिंग जिसे छत्तीसगढ़ सरकार ने शुरू में इसे शुरू किया था जिसे कई राज्यों ने अपनाया है। इससे लाभार्थियों से
खाद्यान्न के डायवर्जन से बचा जा सकता है। एक राष्ट्र एक राशन कार्डप्रणाली एक महत्वपूर्ण नागरिक केंद्रित
सुधार है। इसका कार्यान्वयन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं,
विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों को देश भर में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (एफपीएस) पर
राशन की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में क्रांति की और संभावनाएं भी है जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली का एकीकृत प्रबंधन
(आईएम-पीडीएस) योजना का मुख्य उद्देश्य राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के मौजूदा पीडीएस सिस्टम/पोर्टल को केंद्रीय
सिस्टम/पोर्टल के साथ एकीकृत करना, देश भर में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (एफपीएस) से खाद्यान्न उठाने
के लिए राशन कार्ड धारकों की राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी की शुरुआत करना है और राशन कार्डों/लाभार्थियों का राष्ट्रीय
स्तर पर डी-डुप्लीकेशन भी।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के डिजिटलीकरण के लिए एंड-टू-एंड प्रौद्योगिकी समाधान डिजिटलीकरण के जरिये
भ्रष्टाचार की संभावनाओं को रोकता है; मोबाइल प्लेटफॉर्म सरकार को उचित मूल्य की दुकान के मालिकों को
अतिरिक्त कार्यों के संचालन के लिए लचीली प्रणाली का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने का अवसर
प्रदान करता है। सोशल ऑडिट कर लाभार्थियों को बाहर निकालने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए
प्रौद्योगिकी का उपयोग करके किया जा सकता है। यह इंटरनेट के माध्यम से साक्षात्कार और सीसीटीवी कैमरों के
उपयोग से साइटों पर निरीक्षण के साथ किया जा सकता है।
कार्ड सिस्टम, मशीन रीडेबल कार्ड्स, बायोमेट्रिक कार्ड्स, विजुअल क्रिप्टो कार्ड्स (ग्रिड कार्ड्स), आइरिस टेक्नोलॉजी।
लाभार्थियों की सहायता के लिए इनका उपयोग आगे प्रमाणीकरण के लिए किया जा सकता है। आईसीटी का उपयोग
करके राशन कार्ड प्रबंधन, आपूर्ति-श्रृंखला प्रबंधन, पारदर्शिता और शिकायत निवारण, कम्प्यूटरीकरण को शामिल
किया जा सकता है। भारतीय खाद्य निगम, केंद्रीय भंडारण निगम और राज्य भंडारण निगम खाद्यान्न की खरीद
के समय से लेकर उसके वितरण तक सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकते हैं, जिससे संपूर्ण की समग्र दक्षता
बढ़ाने में मदद मिलेगी।
जरूरतमंदों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने और किसानों को उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक
वितरण प्रणाली एक आवश्यक तरीका है। इस प्रकार फर्जी लाभार्थियों को बाहर निकालने और राज्य को आर्थिक
नुकसान से बचने और सभी इच्छित लाभार्थियों तक पहुंचने के लिए तकनीकी प्रगति आवश्यक है। लेकिन
प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करने से डिजिटल और तकनीकी साक्षरता की कमी के कारण पात्र लाभार्थियों की
उपेक्षा नहीं होनी चाहिए।