वाशिंगटन। अमेरिका का जो बाइडन प्रशासन भारत सरकार और इंटरनेट प्रदाता कंपनियों के
साथ काम करने और यह सुनिश्चित करने का इच्छुक है कि गलत सूचनाओं पर लगाम लगाने के दौरान
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं हो। एक वरिष्ठ अधिकारी ने सांसदों को यह जानकारी दी। विदेश मंत्रालय
में लोकतंत्र, मानवाधिकार और श्रम पर कार्यवाहक प्रधान उप सहायक स्कॉट बसबी ने एशिया, प्रशांत, मध्य एशिया
और अप्रसार पर सदन में विदेश मामलों की उपसमिति में बुधवार को एक सुनवाई के दौरान कहा कि अमेरिका का
मानना है कि गलत सूचनाओं का सबसे सही जवाब है सही सूचना। उन्होंने कहा, ‘‘गलत सूचनाओं तथा निष्पक्ष
सूचनाओं तक पहुंच नहीं होने से भारत में कई लोगों की जानें गई हैं। वैश्विक महामारी के पहले कई ऐसी घटनाएं
हुई हैं, जहां सोशल मीडिया पर सूचना मिलने के बाद लोगों ने गोवंश को नुकसान पहुंचाने के संदेह में लोगों की
पीट-पीट कर हत्या कर दी।’’ उन्होंने कहा कि भारत में वैश्विक महामारी की शुरुआत के दौरान कुछ लोगों ने सोशल
मीडिया का इस्तेमाल संक्रमण फैलाने के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराने में किया। अधिकारी ने कहा कि पूरे
दक्षिण एशिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सहयोग जैसी आजादी पर अंकुश लगे हैं। उन्होंने कहा,‘‘ भारत में
अधिकारी अमेरिकी कारोबारों को सोशल मीडिया की विषय वस्तु को ब्लॉक करने के लिए कहते हैं, इनमें जन
स्वास्थ्य से जुड़े लेख शामिल हैं, और इसके लिए पत्रकारों को आरोपित करते हैं अथवा गिरफ्तार करते हैं वह भी
ऐसे वक्त में जब देश में संक्रमण के मामलों में वृद्धि हो रही हो और एक दम ताजा जानकारी की सबसे ज्यादा
जरूरत हो।’’ बसबी ने दावा किया कि भारत में विदेशी अनुदान (विनियमन) अधिनियम के तहत 1,500 से अधिक
नागरिक समाज संगठनों का पंजीकरण रद्द कर दिया गया और एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया जैसे प्रमुख संगठनों
को बंद कर दिया गया। उन्होंने कहा,‘‘ बड़े लोकतंत्र होने के नाते अमेरिका और भारत पर अधिकारों का सम्मान
करने की सोच के साथ गलत सूचनाओं से निपटने की विशेष जिम्मेदारी है। हम भारत सरकार और इंटरनेट प्रदाता
कंपनियों के साथ काम करने और यह सुनिश्चित करने के इच्छुक हैं कि गलत सूचनाओं पर लगाम लगाने के
दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं हो।’’ उन्होंने कहा कि सूचनाओं को मन मुताबिक बनाना, फिर चाहे
वह मीडिया पर अंकुश लगा कर हो, या गलत सूचना देने का अभियान चला कर, यह वैश्विक समस्या बन गई है।
उन्होंने आरोप लगाया कि चीन झूठे प्रचार के माध्यम से, आलोचना वाली आवाजों को दबा करके राजनीतिक,
आर्थिक और रणनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करता है। अमेरिकी अधिकारी के अनुसार, ‘‘हिंद प्रशांत क्षेत्र में लोग
कैसे मतदान करते हैं, उन्हें कैसी स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त हो रही हैं या अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के साथ
किस प्रकार का वर्ताव हो रहा है, इस पर सही सूचनाएं नहीं मिल रही हैं। जिम्मेदार सरकारों को तथ्यात्मक
जानकारियां दबानी नहीं चाहिए और अपने अधिकारियों को गलत सूचनाएं फैलाने में साथ देने से रोकना चाहिए।’’
सुनवाई के दौरान उन्होंने बांग्लादेश, नेपाल और भूटान के कई कानूनों का भी जिक्र किया।