भिखारी डिजिटल क्यों न हों?

asiakhabar.com | October 24, 2017 | 4:28 pm IST

मैं जरूरी सामान प्रायः अपने मोहल्ले से ही खरीदता हूं। इसके कई लाभ हैं। दुकानदार से राम-राम हो जाती है। माल ठीक मिलता है और पैसे न हों, तो उधार भी चल जाता है; पर पिछले हफ्ते सिन्हा जी मुझे एक मॉल में ले गये। सर्वत्र सुखद और ठंडा माहौल था। टाई वाले लड़के और लड़कियां यहां-वहां दौड़ रहे थे। जो चाहिए, वह टोकरी में रखकर लोग आगे बढ़ रहे थे। सिन्हा जी ने घुसते ही मुझे बता दिया कि यहां सैaकड़ों कैमरे लगे हैं। इसलिए चोरी आसान नहीं है। मैं उदास हो गया।

सिन्हा जी ने कुछ सामान लिया। डिजीटल होने के कारण सिन्हा जी ने भी कार्ड से भुगतान किया; पर असली हैरानी बाहर निकलने पर हुई। वहां कई भिखारी बैठे थे। उनमें से दो तो बाकायदा टाई लगाकर कुर्सी-मेज पर डटे थे। उनके पास कार्ड से भीख लेने के लिए मशीन भी लगी थी। किसी ने ठीक ही कहा है ‘जैसा देश, वेसा भेष।’ जब सब लोग डिजीटल हो रहे हैं, तो भिखारी क्यों न हों ?
लेकिन दो दिन बाद एक दूसरा अनुभव हुआ। इस बार गुप्ता जी मेरे साथ थे। हम किसी काम से शहर से बाहर गये थे। जब थोड़ी फुरसत हुई, तो हमने एक होटल में चाय पी। चलते समय गुप्ता जी ने बाहर बैठे भिखारी को दो रु. दिये, तो उसने वह गुप्ता जी के मुंह पर दे मारे और बोला, ‘‘यहां चाय 10 रु. में आती है। मैं उससे कम नहीं लेता। मेरा भी कुछ स्टैंटर्ड है। न जाने कहां-कहां से आ जाते हैं फटीचर कहीं के।’’
गुप्ता जी का मिजाज गरम है। वे उसका गला पकड़ने लगे; पर दुकानदार ने कहा कि इन भिखारियों का पूरा गैंग है। किसी एक से झगड़ा होते ही सब आ जाते हैं। इनके मोबाइलों में इंटरनेट लगातार चालू रहता है। आप बाहर से आये हैं, इसलिए इनके मुंह न लगें। पुलिस भी इनसे मिली रहती है। बात बढ़ गयी, तो आपको मुसीबत हो जाएगी। गुप्ता जी गुस्से का घूंट पीकर रह गये।
अब परसों की सुनिए। हम मित्रजन पार्क से बाहर निकले, तो एक भिखारी हमसे 500 रु. मांगने लगा। हमें बड़ी हैरानी हुई। रोज तो वह पांच या दस रु. मांगता था; पर आज एकदम 500 रु. पर पहुंच गया। इतना तेज विकास तो वाड्रा, अंबानी या अडानी का भी नहीं हुआ। पूछने पर वह बोला कि आज उसके विवाह की 25वीं वर्षगांठ है। उसकी पत्नी का मन किसी अच्छे होटल में डिनर लेने का है। हमें हंसी तो बहुत आयी; पर फिर हम सबने मिलकर उसे 500 रु. दे ही दिये। सोचा, लोग अपने कुत्ते-बिल्लियों के जन्मदिन पर लाखों रु. खर्च कर देते हैं, तो 500 रु. खर्च करने का उसका भी हक बनता है।
कल सुबह पार्क में ऐसे ही हंसी-मजाक हो रही थी कि शर्मा जी आ टपके। पूरी बात सुनकर वे बोले कि दुनिया भर के भिखारियों का स्टैंटर्ड भले ही उठ रहा हो; पर दिल्ली में केजरी ‘आपा’ ने उसे नीचे गिराने की ठान ली है।
– वह कैसे शर्मा जी ?
– वह ऐसे कि पहले उसने दिल्ली वालों से वोट मांगे। दिल्ली ने बहुमत से कुछ कम दिये। अतः सरकार बनाने के लिए कांग्रेस से हाथ मांगा। कांग्रेस ने हाथ दिया तो; पर कुछ ही दिन बाद वापस ले लिया। बेचारा फिर सड़क पर आ गया। अगले चुनाव में छप्परफाड़ बहुमत मिला, तो दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा मांगने लगा। वह नहीं मिला, तो काशी जाकर मोदी को हराने के लिए वोट मांगने लगा। वहां से कुछ नहीं मिला, तो पंजाब चला गया। वहां मांगने में इतना जोर लगाया कि मतगणना से पहले ही मिठाई खाने-खिलाने की नौबत आ गयी; पर फिर मैदान साफ। यही हाल गोवा में हुआ। इसके बाद बोला कि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं, तो पुलिस ही दे दो। कुछ तो कॉलर ऊंचा हो; पर सब बेकार। अब सरकार ने मैट्रो के दाम बढ़ाये, तो मैट्रो ही मांग बैठा। सरकार ने कह दिया कि 30 हजार करोड़ रु. जेब में हों, तो बताओ। बस, तबसे चुप लगाकर बैठा है।
– यानि ‘झोली में नहीं दाने, और अम्मा चली भुनाने।’
– जी हां। खुद को कम्प्यूटर युग का ‘आम आदमी’ कहता है; पर तरीके वही पुराने। इसलिए हर दिन अपमान तो मिल रहा है; पर भीख नहीं।
– शर्मा जी, आप बुजुर्ग भी हैं और आम आदमी भी। तो आप उसे बुजुर्गों वाली कहावत क्यों नहीं सुना देते।
– कौन सी कहावत वर्मा ?
– वही कि ‘मांगो उसी से, जो दे खुशी से; और कहे न किसी से।’
शर्मा जी मान गये। कल वे उसके घर गये, तो पड़ोसियों ने बताया कि वह अभी-अभी वोट मांगने के लिए हिमाचल गया है। फिर उसका राजस्थान जाने का भी इरादा है। शर्मा जी सिर धुनते हुए अपनी सलाह दरवाजे पर ही चिपका कर लौट आये।

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