पारिस्थितिकीय संतुलन व विकास

asiakhabar.com | June 4, 2021 | 5:16 pm IST

विकास गुप्ता

पर्यावरण की सुरक्षा व संरक्षण के लिए विश्व में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने
वर्ष 1972 में इस दिवस को मनाने की घोषणा की थी ताकि पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और
सामाजिक जागृति लाई जा सके। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। तब से हर साल 5
जून को अलग-अलग शहरों में विभिन्न तरीकों से अंतरराष्ट्रीय उत्सव के तौर पर विश्व पर्यावरण दिवस मनाया
जाता है। लोगों में पर्यावरण जागरूकता को जगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित विश्व पर्यावरण दिवस
दुनिया का शायद सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना
और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को देखना है। इस वर्ष पर्यावरण दिवस की थीम
पारिस्थितिकीय बहाली है। इसलिए पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण की बहाली का संकल्प लेना चाहिए। संपूर्ण
मानवता का अस्तित्व प्रकृति पर निर्भर है। इसलिए एक स्वस्थ एवं सुरक्षित पर्यावरण के बिना मानव समाज की
कल्पना अधूरी है।
प्रकृति को बचाने के लिए हम सब को पौधारोपण कर उनके संरक्षण में सहयोग करना होगा। प्रकृति ने हमें अपार
सौंदर्य प्रदान किया है और यह देश की बहुमूल्य पूंजी और जीवन शैली भी है। हमारी प्राचीन संस्कृतियां प्रकृति को
निहारते हुए बड़ी हुई हैं। पेड़-पौधे, नदियां, पहाड़ और प्रकृति हमारे पूर्वजों को हमेशा प्रिय रहे हैं। भगवान ने उत्तर में
हिमालय, दक्षिण में समुद्र, बीच में घने जंगल, नदियों और भारत की जैव विविधता को बनाया है। वन जैव
विविधता और पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। महान कवि गुरुदेव रवींद्रनाथ
टैगोर ने कहा था, ‘वृक्ष गुरु के समान हैं।’ आज इनसान अपने स्वार्थ के लिए विकास और तकनीक के नाम पर
पेड़ों का अंधाधुंध कटान कर रहा है। हमारे देश में एक पेड़ को काटने से पहले पांच पौधे लगाने की प्रथा थी।
लेकिन आज वह स्थिति बदल गई है। मनुष्य जीवन में कितनी भी ऊंचाइयां हासिल कर ले, लेकिन वह जमीन से
ही जुड़ा रहेगा। क्योंकि मानव का अस्तित्व वायु, जल, आकाश, अग्नि और मिट्टी के पांच तत्वों से संभव हुआ है।
इनमें से किसी के बिना जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। पृथ्वी पर दिन-प्रतिदिन घटती हरियाली और कुछ
प्रजातियों का विलुप्त होना पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में वन
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सघन वन विश्व के लिए फेफड़ों की तरह हैं। हमारे देश में राष्ट्रीय औसत वनावरण
24.06 प्रतिशत है। दक्षिण भारत में उच्चतम केरल में 54.42 प्रतिशत, तमिलनाडु में 20.17 और कर्नाटक में
20.11, तेलंगाना 18.36, आंध्र प्रदेश 17.88 प्रतिशत, पंजाब में करीब 3.78, हरियाणा में 3.61 और हिमाचल प्रदेश
में 27.83 प्रतिशत है। शहरीकरण के नाम पर वन कटान किया जा रहा है। इससे सूखे की स्थिति पैदा हो रही है।
यदि यह स्थिति जारी रही तो इस दशक के अंत तक जलवायु में भारी परिवर्तन देखने को मिलेगा। ऋतुओं का
परिवर्तन और बेमौसम बारिश, तेज धूप, बाढ़, सूखे की स्थिति और भारी क्षति इसके दुष्परिणाम होंगे, जो पूरी
मानव जाति के अस्तित्व को ही खतरे में डाल सकता है। दुनिया को पेरिस जलवायु समझौते का पालन करने की
आवश्यकता है जिसका उद्देश्य इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक
सीमित करना है। यदि हम 2030 तक वार्षिक उत्सर्जन को 44 बिलियन टन तक सीमित कर सकते हैं तो हम यह
सुनिश्चित कर सकते हैं कि तापमान 2 डिग्री से ऊपर न बढ़े। अगर ऐसा करना है तो मनुष्य को अपनी आदतों
और जीवन शैली में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है ताकि वह अब की तुलना में 25 प्रतिशत कम उत्सर्जन कर
सके। क्या यह कोरोना से सीखे सबक से भी संभव है? पर्यावरण संरक्षण में किसानों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।

किसानों को पानी की बचत, रसायन मुक्त खेती आदि के नवीन तरीकों की जानकारी दी जानी चाहिए। किसान बंधु
पर्यावरण के प्रति काफी संजीदा है। लेकिन ज्यादा उर्वरक का उपयोग, फफूंदीनाशक व रसायन के अत्यधिक उपयोग
से इसका पर्यावरण पर विपरीत असर देखने को मिल रहा है। किसानों के लिए मिट्टी को खराब किए बिना
प्राकृतिक और जैविक उर्वरकों का उपयोग करके अपनी फसल की खेती करना बहुत जरूरी है। दूसरी बड़ी समस्या है
पराली जलाने की।
आंकड़ों के अनुसार पिछले साल लगभग 100 मिलियन टन कचरा जलाया गया था और लगभग 140 मिलियन टन
कार्बन डाइआक्साइड वातावरण में छोड़ा गया था। इससे लगभग 50 लाख दिल्लीवासियों को हृदय रोग का खतरा
पैदा हुआ है। यह खुशी की बात है कि हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक कृषि को व्यापक विस्तार दिया गया है और
प्रदेश सरकार की कोशिश है कि वर्ष 2022 तक हिमाचल प्रदेश को देश में पूर्ण रूप से प्राकृतिक कृषि राज्य के रूप
में स्थापित किया जाए। राज्य में 1 लाख 16 हजार 826 किसान प्राकृतिक कृषि को अपना चुके हैं और 1 लाख
23 हजार 550 को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। राज्य में 6377 हैक्टेयर भूमि को प्राकृतिक कृषि के अधीन लाया
गया है। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि मानव सभ्यता की शुरुआत नदी के किनारे ही हुई थी। हमारे देश में कई
पवित्र नदियां और त्रिवेणी संगम हैं। सभी महत्वपूर्ण त्योहारों और परंपराओं में पानी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
है। भारत एक ऐसा देश है जहां नदियों को माता और पृथ्वी को देवी के रूप में पूजा जाता है। प्रकृति को पवित्र
मानने, पूजा करने और सम्मान करने की इस परंपरा को आज के आधुनिक समाज में पुनर्जीवित करने की
आवश्यकता है। नदियों को साफ -सुथरा रखना हम सबकी जिम्मेदारी है ताकि उनके तटों पर अतिक्रमण न हो और
मलबा न पड़े। भारतीयों के लिए पवित्र गंगा तीर्थ है। लेकिन इसके किनारे पर कचरे के ढेर और उद्योगों के
रासायनिक कचरे से यह प्रदूषित हुई है। तालाबों व पोखरों के अतिक्रमण को रोकने की जरूरत है। केंद्र सरकार
पर्यावरण की रक्षा के लिए उचित कदम उठा रही है।
केंद्र सरकार द्वारा ‘नमामि गंगा’ नाम से गंगा की सफाई के लिए 20000 करोड़ रुपए की परियोजना को
कार्यान्वित किया है। साथ ही स्वच्छ भारत अभियान के माध्यम से स्वच्छता के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे
हैं। ‘टायलेट बिफोर टेंपल’ के नाम से देश में अब तक 9 करोड़ नए शौचालयों का निर्माण एक बड़ा कदम है। ‘हरित
कौशल विकास कार्यक्रम’ के माध्यम से देश के युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए भी कदम
उठाए गए हैं। प्रतिपूरक वनरोपण कोष ने पिछले तीन वर्षों में अब तक लगभग 6778 वर्ग किलोमीटर नए वन क्षेत्र
का विकास किया है। साथ ही केंद्र सरकार एलईडी लाइटों के उपयोग को बढ़ावा देकर कार्बन उत्सर्जन को 38
मिलियन टन तक कम करने में सफल रही है। उज्ज्वला योजना के तहत 8 करोड़ परिवारों को धुंआ रहित रसोई
उपलब्ध करा दी गई है। यह विश्व का सबसे बड़ा स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रम है। आज हिमाचल, तेलंगाना जैसे राज्य
हरित आवरण को बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। तेलंगाना के लिए ग्रीन ड्यू के नाम से कृत्रिम वन विकसित किया जा
रहा है। पद्मश्री वनजीवी रमैया जैसे कई लोगों ने आगे आकर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए काम किया है। हिमाचल
प्रदेश का हिमालयी राज्य ‘नगर वन उद्यान’ नाम से सभी शहरों में कृत्रिम पार्क स्थापित करेगा और ‘मॉडल इको
विपेज’ नाम से सर्वश्रेष्ठ इको-गांवों का चयन और प्रचार किया जाएगा।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *