विकास गुप्ता
पिछले साल-सवा साल से कोविड-19 संक्रमण दुनियाभर को हलकान किए है, लेकिन क्या इसके चलते दूसरी
बीमारियों की तरफ से मुंह फेरा जा सकता है? क्या आमतौर पर होने वाली बीमारियां कोविड-19 की अफरातफरी
में इलाज न मिलने के कारण अपना असर नहीं दिखाएंगी? इस विषय की पड़ताल करना जरूरी हो गया है। इस
समय विश्व स्वास्थ्य व्यवस्था का ध्यान कोविड-19 से लोगों को बचाने पर केन्द्रित है। इस स्थिति में एक
महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि इस दौर में क्या स्वास्थ्य व्यवस्थाएं अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति पर्याप्त
ध्यान दे पाएंगी? यदि ऐसा नहीं हो सका तो उन करोड़ों मरीजों पर क्या प्रभाव पड़ेगा जिन्हें अन्य गंभीर स्वास्थ्य
समस्याओं, बीमारियों या दुर्घटनाओं के कारण तुरंत इलाज की बहुत जरूरत है। इस संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन
(डब्ल्यूएचओ) ने विशेष दिशा-निर्देश जारी किए थे कि कोविड-19 महामारी का सामना करते हुए विभिन्न देशों को
अन्य जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं देना जारी रखना चाहिए। ये दिशा-निर्देश सुनने में जितने भी सरल लगें, उनका
क्रियान्वयन उतना ही सरल नहीं है, विशेषकर उन स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में जो पहले से कमजोर हैं। डब्ल्यूएचओ ने
इस दस्तावेज में खुद इंगित किया है कि कोविड-19 महामारी के कारण विश्व स्तर पर अन्य स्वास्थ्य सेवाएं
प्रतिकूल प्रभावित हुई हैं।
कोविड-19 के लिए जरूरी स्वास्थ्य सुविधाओं और स्वास्थ्यकर्मियों की बढ़ती मांग के कारण अन्य स्वास्थ्य
समस्याओं की व्यवस्था पर बहुत मार पड़ी है और इनका संचालन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। डब्ल्यूएचओ ने
संक्रामक रोगों के संदर्भ में कहा है कि जब स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर बोझ पड़ता है तो वैक्सीन से रोकी जा सकने
वाली एवं अन्य शोधनीय स्थिति से होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बहुत बढ़ सकता है। डब्ल्यूएचओ ने इस संदर्भ
में एक विशिष्ट उदाहरण पश्चिम-अफ्रीका के तीन देशों में ‘इबोला’ संक्रामक रोग के असर का दिया है। वर्ष 2014-
15 में इबोला प्रकोप के दौरान जब स्वास्थ्य सेवाएं लगभग पूरी तरह इस संक्रामक रोग पर केंद्रित हो गईं तो
खसरा, मलेरिया, एड्स और तपेदिक से जो अतिरिक्त (सामान्य से अधिक) मौतें हुईं, वे इबोला रोग से होने वाली
मौतों से अधिक थीं।
यह उदाहरण एक डरावनी संभावना को उजागर करता है और कोविड-19 का सामना करने के दौर में कुछ
सावधानियों की जरूरत के लिए चेतावनी भी देता है। विश्व में प्रतिवर्ष कुल 5 करोड़ 70 लाख (570 लाख) मौतें
होती हैं। यदि स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर पड़ने वाले कोविड-19 के बोझ के कारण अन्य कारणों से होने वाली इन
मौतों की संख्या में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है तो इसका मतलब है कुल 28 लाख मौतें। यह आंकड़ा कोविड-19
से होने वाली अनुमानित मौतों से बहुत ज्यादा है। जब हम विश्व स्तर पर मौतों के प्रमुख कारणों पर नजर डालते
हैं तो यह और स्पष्ट हो जाता है। ‘इस्केमिक हृदयरोग’ एवं ‘स्ट्रोक’ के कारण वर्ष 2016 में 152 लाख मृत्यु दर्ज
की गईं। सभी प्रकार के कैंसर से 96 लाख मौतें हुईं। फेफड़ों के कैंसर (‘ट्रेकिया’ और ‘ब्रोंकस कैंसर’ के साथ) के
कारण 17 लाख मौतें हुईं। ‘लोअर श्वसन संक्रमण’ के कारण 30 लाख मौतें हुईं। डायबिटीज के कारण 16 लाख
मौतें हुईं। एड्स के कारण 10 लाख मौतें हुईं। (यह समस्त आंकडे़ दुनियाभर के 2016 के हैं।) ये सभी बीमारियां
ऐसी हैं जिनमें मरीज को अस्पताल में भर्ती करने, पूरी देखभाल करने एवं नियत समय पर दवा देने जैसे नियमों
के सख्त पालन की आवश्यकता होती है। इन बीमारियों में या अन्य कई बीमारियों में तत्काल एवं आपातकालीन
उपचार आवश्यकताओं से इंकार किए जाने पर मृत्यु की एवं अपंगता की संभावना बढ़ जाती है। इसी प्रकार कई
प्रकार की गंभीर चोटों की स्थिति में भी स्वास्थ्य सेवाओं का न मिलना मृत्यु और अपंगता का कारण बन सकता
है। कोविड-19 संकट की गंभीरता के बीच मानसिक रोगियों की देखभाल करने की आवश्यकता और बढ़ गई है।
शोधकर्ता आत्महत्या में वृद्धि की आशंका जता रहे हैं। इसके अतिरिक्त एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था
मातृत्व एवं जच्चा-बच्चा है जिसे पूर्व स्तर पर बनाए रखने की आवश्यकता है अन्यथा मातृ एवं बाल मृत्यु दर का
आंकड़ा भी बढ़ सकता है।
कोविड-19 की चुनौतियों के लिए नीतियां बनाते समय विभिन्न सरकारों को इन सभी तथ्यों व कारकों का भी
ध्यान रखना होगा व सभी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज की व्यवस्था को बनाए रखना होगा। जहां तक
भारत का सवाल है, अभी कोविड की वैक्सीन को लेकर ही रार चल रही है। पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन न मिलने के
आरोप कई राज्यों ने लगाए हैं। इस स्थिति में जब कोरोना का ही इलाज संभव नहीं हो पा रहा है, जिसकी ओर
सबसे ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, तो अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोगों का इलाज किस तरह संभव हो पाएगा।
भारत में आम लोगों के लिए कई स्वास्थ्य योजनाएं जरूर चल रही हैं। उन पर पर्याप्त मात्रा में धन भी खर्च किया
जा रहा है। सरकारी व निजी अस्पतालों को सुदृढ़ बनाने की पहल की जा रही है। इसके बावजूद स्वास्थ्य के क्षेत्र में
कोरोना काल में भी घोटाले सामने आ रहे हैं। इस तरह के भ्रष्टाचार के कारण स्वास्थ्य सेवाओं को लकवा मार
गया लगता है। निम्न आय वर्ग वाले लोगों को इलाज करवाना मुश्किल हो गया है। भरपूर प्रयासों के बावजूद
सरकारी योजनाएं नाकाफी साबित हो रही हैं। अतः स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार की सख्त जरूरत है। डाक्टर भी अगर
अपना फर्ज समझकर रोगियों का ठीक उपचार करेंगे, तभी आम जन तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंच पाएंगी।