अर्पित गुप्ता
अपने बिहार प्रवास के दौरान पिछले दिनों मुझे नालंदा व राजगीर जैसे पर्यटक स्थलों पर दूसरी बार जाने का
अवसर मिला। परन्तु इस बार मेरा सपरिवार आने का मक़सद नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों की विश्वप्रसिद्ध
भारतीय धरोहर के दर्शन करना कम और उत्तर भारत का बहु प्रचारित पहला शीशे का पुल देखना अधिक था। जैसा
कि प्रचार माध्यमों के चित्रों में दिखाया गया था उससे यही प्रतीत हो रहा था कि शीशे का यह पुल संभवतः
राजगीर स्थित विश्व शांति स्तूप के आसपास रत्नागिरी पहाड़ियों पर होगा। स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 250
फुट की ऊंचाई पर बने इसी पारदर्शी शीशे के पुल पर खड़े होकर फ़ोटो शूट कराया था और मुख्यमंत्री की वही फ़ोटो
देश के तमाम अख़बारों ने प्रकाशित भी की थी। उस समय मुख्यमंत्री इस योजना का निरीक्षण करने राजगीर पधारे
थे और यह वादा किया था कि मार्च तक यह तथा पर्यटन संबंधी अन्य नई योजनाएं पर्यटकों के लिए खोल दी
जाएंगी। बताया गया था कि 85 फीट लंबा व 5 फीट चौड़ा कांच का यह पुल 250 फीट की ऊंचाई पर बन रहा है
तथा यह विश्व का तीसरा, देश का दूसरा और बिहार का पहला स्काई वॉक ग्लास फ्लोर ब्रिज है। इसी पुल को
देखने व इसपर चलने का रोमांच हासिल करने लिए देश के दूर दराज़ के क्षेत्रों से आने वाले तमाम पर्यटक राजगीर
व नालंदा के खंडहरों में मिले जो बता रहे थे कि इसबार उनका भी यहां आने का मक़सद केवल ग्लास ब्रिज देखना
था। परन्तु मेरी तरह अनेकानेक पर्यटक वहां पहुँचने के बाद यह सुनकर स्वयं को ठगा हुआ सा महसूस करने लगे
कि अभी यह योजना शुरू ही नहीं हुई है। कई अति उत्साही समाचारपत्रों व सोशल मीडिया ने तो नितीश कुमार के
ग्लास ब्रिज के निरीक्षण फ़ोटो शूट को शीशे के पुल के उद्घाटन की फ़ोटो बता कर ही प्रचारित कर दिया था।
बहरहाल इन्हीं प्रचारतंत्र के चलते पर्यटक ठगे जा रहे हैं। दूरदराज़ से परेशानियां उठाकर व पैसे बर्बाद कर नालंदा व
राजगीर के इसी ग्लास पुल को देखने व इसपर चलने की तमन्ना लेकर पर्यटक भटक रहे हैं।
इसी तरह रो-रो पैक्स फेरी सेवा के नाम से सूरत के हजीरा बंदरगाह से एक योजना शुरू की गयी थी। स्वयं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही अपने गृह राज्य में इस फेरी सेवा का शुभारंभ किया था। इस सेवा के उद्घाटन समारोह
को देश की किसी अति महत्वपूर्ण योजना के तौर पर मीडिया द्वारा प्रचारित किया गया था। जिस विकास को देश
आज चिराग़ लेकर ढूंढ रहा है शायद यह योजना भी उसी 'विकास परिवार' की सदस्य थी तभी रो-रो फेरी योजना
का आज कहीं भी अता पता नहीं है। परन्तु इसके नाम पर लोकप्रियता हासिल की जा चुकी है। शायद उसी तर्ज़ पर
जैसे 2014 में देश में 100 स्मार्ट सिटी बनाने की जो घोषणा की गयी थी उसमें से एक भी आज तक ढूंढने से भी
नहीं मिल पा रहा है। अक्टूबर 2020 में इसी तरह देश की पहली सी प्लेन सेवा का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
द्वारा किया गया था। मोदी स्वयं केवडिया से अहमदाबाद के लिए उड़ान भरने वाले पहले यात्री बने थे। बताया गया
था कि सी प्लेन द्वारा केवड़िया से अहमदाबाद की लगभग 200 किलोमीटर की दूरी तय करने में क़रीब 45 मिनट
का समय लगेगा. जबकि इस फ़ासले को तय करने में लगभग 4-5 घंटे लग जाते थे। ग़ौर तलब है केवड़िया वही
स्थान है जहाँ सरदार बल्लभ भाई पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टेच्यू ऑफ यूनिटी मौजूद है। केवड़िया से
अहमदाबाद की यात्रा सी प्लेन से करने के लिए 1500 रुपये किराया निर्धारित किया गया था। इस विमान में 19
लोगों को लाने लेजाने की क्षमता थी। परन्तु इस सी प्लेन सेवा का भी आज कोई पता नहीं। इसी तरह लोकप्रियता
हासिल करने नहीं बल्कि 'लोकप्रियता ठगने के और भी अनेक उदाहरण मिल जाएंगे।
देश को याद होगा कि जब नितीश कुमार ने भाजपा से गलबहियां नहीं की थीं उस समय बिहार के 'हित चिंतक'
बनने का इनपर इतना नशा सवार था कि मोदी सरकार से यह बिहार के लिए विशेष पैकेज से कम की तो मांग ही
नहीं किया करते थे। परन्तु अब विधान सभा में कम विधायक होने के बावजूद भाजपा ने इन्हें मुख्यमंत्री पद पर
बने रहने की कृपा कर दी तो समझिये यही 'पूरे बिहार के लिए विशेष पैकेज' के समान है। और जब वह विशेष
पैकेज की बात करते थे वह दरअसल विशेष पैकेज का नहीं बल्कि लोकप्रियता 'ठगने ' का खेल था। लोककप्रियता
ठगने के मक़सद से ही जाने कितने विज्ञापन ऐसे जारी किये जाते हैं जो पूरी तरह झूठ पर आधारित होते हैं। कई
बार इस झूठ का भंडाफोड़ भी हो चुका है परन्तु चिकने घड़े के समान बन चुके इन शातिर राजनीतिज्ञों को कोई
फ़र्क़ नहीं पड़ता। बंगाल चुनाव के मद्देनज़र गत 14 और 25 फ़रवरी को विभिन्न राष्ट्रीय व क्षेत्रीय समाचारपत्रों में
प्रधानमंत्री आवास योजना का एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ़ोटो के साथ ही एक
महिला की तस्वीर छपी थी. ‘आत्मनिर्भर भारत, आत्मनिर्भर बंगाल’ के नारे के साथ प्रकाशित इस विज्ञापन में
लिखा था -' प्रधानमंत्री आवास योजना में मुझे मिला अपना घर. सर के ऊपर छत मिलने से क़रीब 24 लाख
परिवार हुए आत्मनिर्भर। इसमें लक्ष्मी नामक महिला की फोटो के साथ लिखा है-'प्रधानमंत्री आवास योजान के तहत
मुझे मिला अपना घर'। परन्तु हक़ीक़त यह है कि लक्ष्मी देवी के पास अभी भी अपना घर तक नहीं है. अपने
परिवार के पांच सदस्यों के साथ लक्ष्मी 500 रुपए किराए की एक खोलाबाड़ी अर्थात झुग्गी में रहती हैं। विज्ञापन
प्रकाशित होने के बाद स्वयं लक्ष्मी ने बताया कि उसके पास अपना घर नहीं है और उसका सारा जीवन फुटपाथ पर
रहते गुज़र गया. 500 रुपया भाड़ा के झोपड़ी में रहती है। याद कीजिये इसी तरह किसान आंदोलन की शुरुआत में
भाजपा सरकार ने एक विज्ञापन जारी किया था जिसमें बताने की कोशिश की गई कि पंजाब के किसान सरकार
द्वारा एमएसपी पर की जा रही ख़रीददारी से ख़ुश हैं. जिस 'किसान ' के चित्र के माध्यम से यह बताने की कोशिश
की गई थी थी वो पंजाब के फिल्म अभिनेता और निर्देशक हरप्रीत सिंह का चित्र था और वे स्वयं उन दिनों सिंघु
बॉर्डर पर धरने पर बैठ किसानों को अपना समर्थन दे रहे थे। आंखों में धूल झोंकते हुए 'लोकप्रियता ठगने' का हुनर
इन राजनीतिज्ञों बेहतर भला कौन जानता है ?