कश्मीर पर अमेरिका का ताजा रवैया

asiakhabar.com | March 7, 2021 | 3:16 pm IST

राजीव गोयल

अमेरिका के बाइडन-प्रशासन ने दो-टूक शब्दों में घोषणा की है कि वह कश्मीर पर ट्रंप-प्रशासन की नीति को
जारी रखेगा। अपनी घोषणा में वह ट्रंप का नाम नहीं लेता तो बेहतर रहता, क्योंकि ट्रंप का कुछ भरोसा नहीं
था कि वह कब क्या बोल पड़ेंगे और अपनी ही नीति को कब उलट देंगे। ट्रंप ने कई बार पाकिस्तान की तगड़ी
खिंचाई की और उसके साथ-साथ कश्मीर पर मध्यस्थता की बांग भी लगा दी, जिसे भारत और पाकिस्तान,
दोनों देशों ने दरकिनार कर दिया।
ट्रंप तो अफगानिस्तान से अपना पिंड छुड़ाने पर आमादा थे। इसीलिए वे कभी पाकिस्तान पर बरस पड़ते थे
और कभी उसकी चिरौरी करने पर उतर आते थे लेकिन बाइडन-प्रशासन काफी संयम और संतुलन के साथ पेश

आ रहा है, हालांकि उनकी 'रिपब्लिकन पार्टी' के कुछ भारतवंशी नेताओं ने कश्मीर को लेकर भारत के विरुद्ध
काफी आक्रामक रवैया अपनाया था। उस समय रिपब्लिकन पार्टी विपक्ष में थी। उसे वैसा करना उस वक्त
जरूरी लग रहा था लेकिन बाइडन-प्रशासन चाहे तो कश्मीर-समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण रोल अदा कर
सकता है। उसने अपने अधिकारिक बयान में कश्मीर के आंतरिक हालात पर वर्तमान भारतीय नीति का समर्थन
किया है लेकिन साथ में यह भी कहा है कि दोनों देशों को आपसी बातचीत के द्वारा इस समस्या को हल
करना चाहिए। गृहमंत्री अमित शाह ने स्वयं संसद में कहा है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दुबारा
शीघ्र ही मिल सकता है, बशर्ते कि वहां से आतंकवाद खत्म हो।
बाइडन-प्रशासन से मैं उम्मीद करता था कि वह कश्मीर में चल रही आतंकी गतिविधियों के विरुद्ध ज़रा कड़ा
रूख अपनाएगा। इस समय पाकिस्तान की आर्थिक हालत काफी खस्ता है और उसकी राजनीति भी डांवाडोल हो
रही है। इस हालत का फायदा चीन को यदि नहीं उठाने देना है तो बाइडन-प्रशासन को आगे आना होगा और
पाकिस्तान को भारत से बातचीत के लिए प्रेरित करना होगा।
चीन के प्रति अमेरिका की कठोरता तभी सफल होगी, जब वह प्रशांत-क्षेत्र के अलावा दक्षिण एशिया में भी चीन
पर लगाम लगाने की कोशिश करेगा। बाइडन चाहें तो आज दक्षिण एशिया में वही रोल अदा कर सकते हैं, जो
75-80 साल पहले यूरोपीय 'दुश्मन-राष्ट्रों' को 'नाटो' में बदलने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमेन और
आइजनहावर ने अदा किया था।


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