कांग्रेस पार्टी में नेताओं की असहमति बढ़ती जा रही है और ऐसा माना जा रहा है कि इस झगड़े का अंत देश
की सबसे पुरानी पार्टी को समाप्त कर देगा लेकिन क्या राहुल गांधी इसे लेकर चिंतित हैं? फिलहाल राहुल
गांधी इस समय तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के दौरे पर हैं और विधान सभा चुनावों के प्रचार में जुटे हुए हैं
परन्तु इस दौरे के बीच कांग्रेस में झगड़ा काफ़ी बढ़ गया है और इस झगड़े से स्पष्ट हो गया है कि लोकतंत्र में
असहमति और सहिष्णुता की बात करने वाली कांग्रेस पार्टी में इन दिनों शब्दों की कोई जगह नहीं बची है और
शायद कांग्रेस का सेकुलरिज्?म भी दिखावटी है। आलम तो ये है कि कांग्रेस पार्टी असल में धर्मनिरपेक्षता को
लेकर बातें तो बड़ी बड़ी करती है लेकिन पश्चिम बंगाल में जो उन्होंने किया उससे यह स्पष्ट हो गया है कि
कांग्रेस पार्टी अपने फायदे के लिए ऐसी पार्टी से हाथ भी मिला लेती है जिनका राजनीतिक ढांचा ही सांप्रदायिक
विचारों से संक्रमित है दरअसल पार्टी ने पश्चिम बंगाल में एक कट्टरपंथी पार्टी इंडियन सेकुलर फ्रंट के साथ
गठबंधन किया है जो पार्टी कुछ ही दिनों पहले बनी थी। गौरतलब तो यह है कि इस लेफ़्ट पार्टियों ने भी इसके
साथ मिल कर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। वहीं वैसे तो लेफ़्ट पार्टियां धर्म के नाम पर राजनीति का
विरोध करती हैं और लोगों को गुमराह करती हैं लेकिन अपने फायदे के लिए सब न्यूनतम है। महत्वपूर्ण बात
ये है कि इस पार्टी ने पहले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ए आई एम आई एम से भी गठबंधन करने का प्रयास
किया था लेकिन ये गठबंधन नहीं हुआ और बाद में इसमें कांग्रेस की एंट्री हो गई जिससे लेफ़्ट पार्टियों और
कांग्रेस का इसके साथ गठबंधन हो गया। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस और इसके गठबंधन का विरोध इसलिए
अधिक हो रहा है, क्योंकि कांग्रेस खुद अपने आप को एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी बताती है और ऐसा दावा करती है
कि उसकी राजनीतिक साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ है परन्तु सच तो ये है कि उसने पश्चिम बंगाल में सिर्फ
चुनावी राजनीति के लिए एक ऐसी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया, जिसका झुकाव खुद कट्टरपंथ की ओर
है।