विनय गुप्ता
जब खुद में हिम्मत, विश्वास और हौसला हो तो रास्ते भी खुद-ब-खुद बन जाते हैं। वास्तव में कोई भी रास्ता
छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि हर रास्ता मंज़िल तक पंहुचाने वाला होता है। यह केवल इस बात पर निर्भर
करता है कि आप में उस पर चलने का हौसला कितना है। यह कहना है जयपुर से 60 किमी दूर टोंक ज़िला
के मालपुरा ब्लॉक स्थित सोड़ा पंचायत की सरंपच छवि राजावत का, जो देश की पहली एम.बी.ए शिक्षा प्राप्त
सरपंच है। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और पुणे स्थित इंडियन
इंस्टीट्यूट ऑफ माडर्न मैनेजमेंट से एम.बी.ए करने के पश्चात कॉर्पोरेट क्षेत्र के कार्य को छोड़कर सामाजिक सेवा
को अपना उद्देश्य बनाने वाली छवि आज की युवा पीढ़ी की रोल मॉडल है और उन्हें एक नई दिशा में बढ़ने
का संदेश भी देती है। उन्होंने अपने काम और आत्मविश्वास से ऐसी छवि बनाई है, जिससे हर किशोरी बालिका
प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहती है।
कुछ ऐसी ही है टोंक जिला के निवाड़ी ब्लॉक स्थित ललवाडी गांव की रहने वाली राधा राजावत की। जो छवि
को अपना गुरू और आदर्श मानती है और अब उन्हीं की राह पर चलते हुए गांव में शिक्षा और जागरूकता का
अलख जगा रही है। इस संबंध में राधा के पिता लक्ष्मण सिंह तथा माता भंवर कंवर का कहना है कि पहले
हमारी मानसिकता राधा की पढ़ाई को लेकर नकारात्मक थी, हम इसे पढ़ाना नही चाहते थे। परन्तु इसकी
ज़िद्द के आगे हमे झुकना पड़ा और इसे गांव के बाहर 8 वीं के बाद पढ़ने भेजा, परन्तु राजपूत समुदाय के
लोग व परिवार के अन्य लोगों के विरोध करने पर रोक दिया। लेकिन इसने हिम्मत नहीं हारी और सारे विरोध
झेलते हुये 12वीं तक की पढ़ाई स्वयं मज़दूरी करके पूरी की। इतने संघर्षों के बाद भी इसने 12वीं बोर्ड में 70
प्रतिशत प्राप्त किये, जिसके बाद फिर हमने इसको कभी भी पढ़ने से नही रोका।
इस संबंध में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता भरत मीणा का कहना है कि राधा ने 8वीं कक्षा से ही साक्षर भारत
मिशन के तहत बाल संवाददाता के रूप में चयनित होकर अपने गांव व पंचायत की समस्याओं को अखबार के
माध्यम से उठाना शुरू कर दिया था। जो इस गांव के लिए एक मिसाल है। वहीं किशोरी मंच की सदस्या पूनम
राजावत के अनुसार 2013 में राधा ने पूरी पंचायत की बालिकाओं व महिलाओं का नेतृत्व करते हुए पंचायत
स्तर पर विकास कार्यों में हो रही लापरवाही और भ्रष्टाचार तथा अन्य समस्याओं के समाधान के लिए न केवल
टोंक के जिला कलेक्टर बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री को भी रूबरू करवाते हुये ज्ञापन दिया था। उसने उच्च
शिक्षा के लिए लड़कियों को दूर जाने और इससे उनकी शिक्षा में आ रही रुकावटों को भी ज़ोरदार तरीके से
उठाया। जिसका काफी प्रभाव पड़ा था। इसका परिणाम यह रहा कि लालवाड़ी पंचायत में 12वीं तक विद्यालय
हुआ। जिससे पंचायत की बालिकाओं को शिक्षा ग्रहण करने में आ रही रुकावटें दूर हो गईं और अभिभावक भी
उन्हें स्कूल भेजने लगे। राधा के आत्मविश्वास और युवा नेतृत्व की क्षमता को देखते हुए स्थानीय राजनीतिक
दलों ने उसे पार्टी में शामिल होने और बड़ा पद देने का प्रस्ताव भी दिया था, लेकिन उसने राजनीति से ऊपर
उठकर समाज के सभी वर्गों के लिए काम करने की इच्छा जताते हुए उसे विनम्रता से अस्वीकार कर दिया।
राधा द्वारा शुरू किये गए जागरूकता का परिणाम है कि अब ललवाडी गांव में केवल राधा ही नही, राधा जैसी
अन्य बालिकाएं भी अपने अधिकारों के लिए बोलने लगी हैं। पंचायत सहायक हेमराज सिंह ने बताया कि वर्ष
2014 में पंचायत प्रेरक के रूप में सभी के सहयोग से राधा ने न केवल बालिकाओं की शिक्षा को आगे बढ़ाने
के लिए सक्रिय रूप से कार्य किया अपितु गांव के निरक्षर 1800 लोगो को साक्षर किया तथा उनकी परीक्षा
दिलवाकर प्रमाण पत्र भी बंटवाये। राधा के पास पढ़कर साक्षर हुई शशि कंवर ने बताया कि पहले गांव में एक
भी महिला पढ़ी लिखी नही थी, परन्तु राधा और इसके साथ जुड़ी अन्य किशोरी बालिकाओं के प्रयासों से आज
गांव की लगभग सभी बालिकाएं पढ़ रही हैं तथा 70 प्रतिशत महिलाएं भी साक्षर हो चुकी हैं। एक अन्य
पंचायत सहायक मुकेश मीणा ने भी राधा के प्रयासों को सराहनीय बताते हुये कहा कि उसके सहयोग से नरेगा
में करीब 1000 लोगों को रोज़गार से जोड़ा गया तथा सभी प्रकार की पेंशन योजनाओं से 1200 महिला एवं
पुरूषों को लाभ मिलना संभव हो सका। इसके अतिरिक्त गांव के 2000 परिवारों को राधा के सहयोग से
शौचालय निमार्ण की सरकारी योजना से जुड़वाकर लाभ दिलवाया गया।
वर्ष 2013 से पहले यदि बालिका शिक्षा की बात करें तो यह आंकड़ा 30 प्रतिशत से अधिक नहीं था। जबकि
वर्तमान में 80 प्रतिशत से अधिक बालिकाएं शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ चुकी हैं। वहीं 2013 से पहले
सरकारी योजनाओं से लोगो के जुड़ने का प्रतिशत मात्र 40 था, जबकि आज 80 प्रतिशत लोग सामाजिक
सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं से लाभांवित हो रहे हैं। पहले अभिभावक बालिकाओं को गांव से बाहर नही भेजते थे,
परन्तु अब 30 से 40 प्रतिशत बालिकाएं गांव से बाहर जाकर भी अपनी पढ़ाई कर पा रही हैं। राधा की साथी
मैना राणा कहती हैं कि उसकी सामाजिक सेवा की लगन व मेहनत को देखकर पंचायत की महिलाओं व
किशोरी बालिकाओं तथा जागरूक लोगों ने राधा से पंचायत चुनाव लड़ने की गुज़ारिश की। ताकि पंचायत में
विकास की गति तेज़ हो सके। राधा ने स्वयं के साथ साथ अपने एक साथी कार्यकर्ता देवालाल गुर्जर को भी
सरपंच पद के चुनाव में खड़ा किया और योजना बनाई कि यदि हम दोनो में से जो जितेगा वह सरपंच पद पर
पूर्ण ईमानदारी से कार्य करते हुये लोगो की सेवा करेगा। राधा तो जीत नहीं सकी, परन्तु साथी कार्यकर्ता की
जीत भी उसी की जीत थी क्योंकि वह अब तक पंचायत में चल रही तानाशाही और भ्रष्टाचार के तंत्र पर चोट
करने में सफल रही। स्थानीय शिक्षक बाबूलाल शर्मा और एक सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता दयाराम गुर्जर ने
बताया कि राधा ने सामाजिक मुद्दों, समस्याओं और चुनौतियों को न केवल पंचायत स्तर पर बल्कि समय
समय पर जिला और राज्य स्तर पर भी उठाने का प्रयास किया है। समाज के प्रति उसकी लगन का ही
परिणाम है कि उसे तत्कालीन उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। राधा और
उसकी साथी बालिकाएं अब बिना झिझक, हर मंच पर अपनी बात रखने में सक्षम हैं तथा अन्य बालिकाओं को
भी अपने जैसा जागरूक बनाने की मुहिम छेड़ रखी है।
हालांकि सामाजिक ज़िम्मेदारियों के साथ साथ कम उम्र में ही राधा को परिवार की ज़िम्मेदारियां भी उठानी पड़
रही है। राधा के पिता लक्ष्मण सिंह ने दुखी स्वर में बताया कि वह कैंसर पीड़ित हैं। बड़ा बेटा पत्नी और बच्चों
के साथ अलग रहता है। ऐसे में परिवार की बड़ी होने के नाते पूरी ज़िम्मेदारी इस पर ही आ गई है, जिसे यह
प्राइवेट नौकरी करके मेरा ईलाज करवा रही है तथा अपनी पढाई भी कर रही है। परन्तु अब जयपुरिया
हॉस्पिटल के वरिष्ठ डॉक्टर प्रहलाद धाकड़ के सहयोग से मेरा ईलाज निःशुल्क चल रहा है। यह सारी मेहनत
राधा की है, जिसे पहले मैं पढ़ाने के पक्ष में नहीं था। परन्तु अब मुझे मेरी गलती का अहसास है। आज राधा
ने महिला शिक्षा के प्रति मेरी सोच पूरी तरह से बदलकर रख दी है। राधा बताती है कि उसके माता पिता
बचपन में ही उसकी शादी करवाना चाहते थे, लेकिन उसने इसका कड़ा विरोध किया और आज वह अपने
परिवार की आर्थिक स्थिती का एकमात्र माध्यम है। यदि उसकी शादी हो गई होती तो उसके परिवार के सामने
पैसे की किल्लत हो चुकी होती। वह कहती है कि यदि मैंने विरोध न किया होता, तो आज मेरे परिवार की
क्या हालत होती, इसका अंदाज़ा मेरे अभिभावक को भी है। अब मैं जॉब के साथ साथ अपनी जैसी बालिकाओं
को आगे बढ़ाने तथा शिक्षा की मुख्यधारा से उन्हें जोड़ने का प्रयास कर रही हूँ। इसके लिए अध्यापक बनने हेतु
पात्रता परीक्षा रीट की तैयारी कर रही हूँ। शिक्षिका बनने के साथ साथ मैं समाज सेवा का कार्य भी निरंतर
करती रहूंगी।
राधा के संघर्ष और सामाजिक जागरूकता के प्रति उसका ज़ज़्बा महिला सशक्तिकरण का एक बेमिसाल
उदाहरण है। वास्तव में समाज में लड़का और लड़की के बीच अंतर को दूर करना आवश्यक है। केंद्र की बेटी
बचाओ बेटी पढ़ाओ इस दिशा में में महत्वपूर्ण कड़ी है। लेकिन इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण लोगों की सोच में
परिवर्तन लाना है। जिस दिन मां बाप बेटा और बेटी के बीच समान व्यवहार को प्राथमिकता देने लगेंगे, उस
दिन से हर लड़की राधा राजावत जैसी सशक्त बन सकेगी। जो अपने क्षेत्र में परिवर्तन लाने की क्षमता रखती
है।