मृत्यु के बाद प्रशिक्षकों के साथ न्याय

asiakhabar.com | February 5, 2021 | 5:38 pm IST

विनय गुप्ता

राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल परिणामों में पिछले कई दशकों से आश्चर्यजनक सुधार होता चला आ रहा
है। इसको प्राप्त करने के लिए राज्य में जहां जिस जिस खेल की सुविधा उपलब्ध है, वहां पर उस खेल का
प्रशिक्षक नियुक्त होना चाहिए तथा खेल ढांचे को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर का करना होता है। इसलिए देश के
विभिन्न राज्यों ने अपने यहां दशकों पहले ही राज्य खेल परिषद, खेल विभाग व खेल प्राधिकरणों की स्थापना
कर दी है। हिमाचल प्रदेश में खेलों के उत्थान के लिए अस्सी के दशक के शुरू में हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं
एवं खेल विभाग का गठन हुआ। इस विभाग में निदेशक, संयुक्त निदेशक, उप निदेशक, जिला युवा सेवाएं एवं
खेल अधिकारियों, प्रशिक्षकों, कनिष्ठ प्रशिक्षकों व युवा संयोजकों के पद सृजित हैं। विभाग का कार्य प्रदेश में
युवा गतिविधियों व खेलों का विकास करना है। हिमाचल प्रदेश में यह विभाग खेल प्रशिक्षण, खेलों के लिए
आधारभूत ढांचा व राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता होने पर नगद पुरस्कार व अवार्ड देने के लिए
बनाया गया है। हिमाचल प्रदेश के इस विभाग का निदेशक प्रशासनिक सेवा से ही अधिकतर नियुक्त होता रहा
है, केवल विशेष परिस्थितियों में ही आज तक दो बार ही विभागीय अधिकारी निदेशक पद तक पहुंच पाए हैं।
उपनिदेशक और कभी-कभी संयुक्त निदेशक पद तक विभाग के प्रशिक्षक व युवा संयोजक पदोन्नत होकर पहुंच
जाते हैं।
उस समय हरियाणा व पंजाब में प्रशिक्षक, जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी व उप निदेशक के भर्ती नियम
व वेतन एक समान था। हिमाचल प्रदेश में भी सात प्रशिक्षकों की भर्ती इन नियमों में हुई। उस समय प्रशिक्षक
का पद हर तरह से काफी अच्छा माना जाता था, मगर साई व कुछ राज्यों में चले दुष्प्रचार से प्रशिक्षक के
पदनाम के साथ बहुत छेड़खानी की गई। बाद में नियुक्ति के समय उसी योग्यता वाले प्रशिक्षक को बहुत कम
वेतनमान पर कनिष्ठ प्रशिक्षक के पद पर नियुक्त किया गया। जो प्रशिक्षक पहले से ही विभाग में नियुक्त थे,
उन्हें भी उनके जायज हकों से महरूम रखा गया। अपने पद की श्रेणी को सिद्ध करने के लिए ईश्वर चौधरी,
जो तत्कालीन कुश्ती प्रशिक्षक थे, उन्हें न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। आज जब दशकों बाद न्यायालय का
फैसला उनके हक में आया, उन्हें 2007 से उप निदेशक माना है तथा उसी के अनुसार उनके वेतन-भत्ते तय
कर उन्हें पैंशन देने को कहा गया है। आज ये सातों प्रशिक्षक सेवानिवृत्त हो चुके हैं तथा राजेंद्र डोगरा व कंवर
सिंह इस संसार को अलविदा कह चुके हैं। जब प्रशिक्षक के साथ इस तरह की बदतमीजी होगी तो फिर कौन
खेल करवाएगा। हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग में नाममात्र के प्रशिक्षक हैं। अधिकतर खेलों में तो
एक भी प्रशिक्षक पूरे जिले के लिए उपलब्ध नहीं है। विभाग में जो प्रशिक्षक नियुक्त हैं, उन्हें कनिष्ठ प्रशिक्षक
के पद पर नियुक्ति मिली है। उसके बाद वे सेवानिवृत्ति तक भी प्रशिक्षक नहीं बन पाए हैं। विभाग में नियुक्त
प्रशिक्षकों को जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी पद पर पदोन्नति के लिए केवल 25 प्रतिशत ही कोटा है।
50 प्रतिशत युवा संयोजक व 25 प्रतिशत पद हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से भरे जाते हैं।
प्रशिक्षक बनने की योग्यता बहुत कठिन है। स्नातक डिग्री के साथ जो प्रतिभागी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हो या
तीन बार वरिष्ठ राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व किया हुआ हो या शारीरिक शिक्षा में स्नातकोत्तर डिग्री के
साथ अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता में खेला हो, उसके बाद राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान में प्रवेश
परीक्षा पास कर एक वर्ष के कठिन प्रशिक्षण व शिक्षण के बाद प्रशिक्षक बनता है। हिमाचल प्रदेश सरकार को
चाहिए कि वह प्रदेश में नियुक्त कनिष्ठ प्रशिक्षकों को पांच साल के बाद प्रशिक्षक के पद पर पदोन्नत कर 50
प्रतिशत कोटा जिला अधिकारी पद पर पदोन्नति के लिए दिया जाए, क्योंकि प्रशिक्षकों की संख्या बहुत अधिक
है। अगर हर खेल में जिला स्तर पर पांच प्रशिक्षक भी हों तो प्रशिक्षकों की संख्या सौ से भी अधिक जा सकती

है। इसके मुकाबले बारह जिलों में बारह ही युवा संयोजक नियुक्त हैं। इस तरह देखा जाए तो यह प्रशिक्षकों के
साथ बहुत अन्याय है। हिमाचल प्रदेश में युवा सेवाएं एवं खेल विभाग के दो खेल छात्रावास बिलासपुर व ऊना
में कुछ चुनिंदा खेलों के लिए आधा-अधूरा प्रशिक्षण दे रहे हैं। उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने वाले प्रशिक्षकों की कमी व
प्रबंधन में अव्यवस्था साफ देखी जा सकती है। उत्कृष्ट खेल परिणाम दिलाने वाले प्रशिक्षक बहुत कम हैं। कई
वर्षों के गहन शिक्षण व प्रशिक्षण के अनुभव वाला प्रशिक्षक ही राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जिताने
की क्षमता रखता है।
इसलिए आज भारत सरकार व कई राज्य अपने यहां नियमित अनुभवी विषेशज्ञ प्रशिक्षक न होने के कारण
अनुभवी विषेशज्ञ प्रशिक्षकों को अपने यहां उच्च खेल परिणाम देने वाले प्रशिक्षण केंद्रों में अनुबंधित कर रहे हैं।
प्रदेश सरकार कब तक ऐसे उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने वाले खेल छात्रावास खोलेगी या जो खेल छात्रावास चल रहे
हैं, उनको उच्च स्तर तक विकसित करके वहां पर प्रतिभाशाली प्रशिक्षकों को अनुबंधित करें। उत्कृष्ट प्रदर्शन
करवाने के लिए प्रशिक्षकों व खिलाडि़यों के लिए एक अच्छी प्रबंधन टीम की अहम भूमिका है। सही प्रबंधन
मिले, इसके लिए नियमित जिला खेल अधिकारियों, उपनिदेशकों व अन्य अधिकारियों की नियुक्ति बेहद जरूरी
है। इसलिए राज्य के इस विभाग में प्रशिक्षकों के साथ न्याय करने के लिए इनके भर्ती व पदोन्नति नियमों में
संख्या अनुपात में संशोधन करना बहुत जरूरी है। भारतीय खेल प्राधिकरण खेलो इंडिया के अंतर्गत प्रदेश में
उच्च खेल परिणाम दिलाने वाली अकादमियां स्थापित कर रहा है। अच्छा होगा, वहां भी अच्छे स्तर वाले
प्रशिक्षकों को सम्मानजनक वेतनमान पर रखा जाए ताकि प्रदेश के खिलाडि़यों को उच्च स्तर के प्रशिक्षक मिल
सकें।


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