विनय गुप्ता
दिल्ली हिंसा के बाद देश में नाराजगी औैर सरकार के कड़े रुख का असर दिखने लगा है। मेरठ के पास बड़ौत
में चल रहे किसानों के आंदोलन पर भी पुलिस प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया और बुधवार रात करीब साढ़े
11 बजे पुलिस धरना स्थल पर पहुंचकर हल्का बल प्रयोग कर धरनास्थल खाली करा लिया। किसानों ने 31
जनवरी को महापंचायत बुलाने का एलान किया था। भगदड़ में कुछ किसानों को चोट आई है। वहीं बीते दो
महीने से जारी किसान आंदोलन के भविष्य के लिए अगले दो-तीन दिन बेहद अहम हैं। गणतंत्र दिवस हिंसा के
बाद जहां किसान नेताओं के बीच दरार पैदा हुई है, वहीं पहली बार दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर डटे
आंदोलनकारियों की संख्या में कमी आई है। अगर अगले एक-दो दिनों में आंदोलनकारियों की संख्या और घटी
तो किसान संगठनों के लिए सरकार पर दबाव बनाना बेहद मुश्किल होगा। गौरतलब है कि आंदोलनकारियों की
संख्या कम होने और नेताओं के बीच मतभेद सामने आने के कारण ही सरकार की ओर से गणतंत्र दिवस हिंसा
पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही। सरकार चाहती है कि आंदोलन अंतर्विरोधों के कारण खुद कमजोर हो जाए।
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान जिस तरह बवाल हुआ और लाल किले पर धार्मिक झंडा
फहराया गया, उससे आंदोलन में दरार पडऩी शुरू हो गई है। हरियाणा के खाप प्रतिनिधि और किसान नेताओं
ने इस पर नाराजगी जता साफ कहा है कि तिरंगे की जगह धार्मिक झंडा किसी भी हालत में मंजूर नहीं है।
वहीं इस घटनाक्रम से नाराज हरियाणा के काफी किसान जहां घर लौट गए हैं, वहीं खाप पंचायतें भी आंदोलन
से सर्मथन वापसी का मन बना रही हैं। इस बीच पंजाब के किसान संगठन सीमा पर किसानों की संख्या पूर्व
की तरह ही बरकरार रखने के लिए नए सिरे से सक्रिय हुए हैं। इन संगठनों की योजना पंजाब से नए सिरे से
भीड़ जुटाने की है। सूत्रों का कहना है कि इस आशय की सूचना मिलने के बाद सरकार ने हरियाणा सरकार को
आगाह किया है। हरियाणा के खाप प्रतिनिधियों ने जल्द ही सर्वखाप पंचायत कर किसान संगठनों को समर्थन
पर फैसला लेने की बात कही है। खाप प्रतिनिधियों ने साफ कहा कि किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेंगे कि
लाल किले पर तिरंगे की जगह कोई धार्मिक झंडा फहराया जाए। देश की एकता और अखंडता को तोडऩे की
इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती है। वहीं हरियाणा के किसानों ने साफ कहा कि उन्हें पहले पता होता कि
आंदोलन की आड़ में ऐसा बवाल हो सकता है तो वह आंदोलन में शामिल ही नहीं होते। वहीं आंदोलन के बीच
विपक्ष भी अपनी रोटी सेंकने की तैयारी कर चुका है। 29 जनवरी से शुरू हो रहे बजट सत्र में सरकार को घेरने
के लिए विपक्ष ने अपनी तैयारी कर ली है। लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष की ओर से नए कृषि कानून,
चीन और कोरोना संकट में गिरती अर्थव्यवस्था को लेकर सवालों की लंबी सूची तैयार की गई, जिनका जवाब
मोदी सरकार को देना होगा। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर घिरी सरकार के लिए ये बजट आसान नहीं होने वाला है,
लेकिन सबसे बड़ी समस्या नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों और सरकार के बीच जारी संग्राम और भारत-
चीन सीमा पर तनाव है। विपक्षी दल तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग करेंगे। विपक्षी
नेताओं ने दावा किया कि गैर-भाजपा दल इस सत्र में एकजुट रहेंगे। मगर अभी तो सरकार पर दबाव बनाने की
किसी भी तैयारी पर पानी फिर चुका है। लाल किले पर जो कुछ हुआ, उसका समर्थन करने का नैतिक साहस
किसी में नहीं है। जो आंदोलन के रहनुुमा हैं, वे बचने के रास्ते तलाश रहे हंै। अगर विपक्ष ने उपद्रवियों की
करतूत पर पर्दा डालने का प्रयास किया, तो वे और भी बुरी हालत का शिकार हो सकते हैं।