यूं रचे जाते हैं इतिहास

asiakhabar.com | January 29, 2021 | 11:56 am IST

शिशिर गुप्ता

सन् 2021, तारीख 19 जनवरी, दिन मंगलवार। एक ऐसा दिन जब एक अनूठा इतिहास रचा गया। सीमाओं
और समस्याओं से घिरी भारतीय क्रिकेट टीम के अजनबी खिलाडि़यों ने एक बहुत मजबूत आस्ट्रेलियाई टीम को
उनके ही घर में हरा दिया। स्थानीय दर्शक भारतीय टीम के इस हद तक खिलाफ थे कि वे नस्ली टिप्पणियां
कर रहे थे। पूरी भारतीय टीम इसी टेस्ट के दौरान एक बार 36 रन के स्कोर पर आउट हो चुकी थी। क्रिकेट
के इतिहास में भारतीय टीम का यह निम्नतम स्कोर था। वह टीम जो 36 रन पर ऑल आउट हुई थी, उसी
टीम ने आस्ट्रेलियाई टीम से टेस्ट मैच छीनकर ऐसा इतिहास रचा जिसकी यशोगाथा बार-बार गाई जाएगी।
भारतीय टीम के अनुभवी खिलाड़ी टीम में नहीं थे, जो थे वे अनुभवहीन थे, उन्हें भारत से बाहर खेलने का
अवसर पहले कभी नहीं मिला था। उनमें से अधिकतर साधनहीन थे, किसी के पिता पावरलूम पर दिहाड़ी की
मजदूरी करने वाले, कोई सवेरे तीन, साढ़े तीन बजे घर से निकलकर प्रैक्टिस करने जाने वाला, किसी को
लगातार असफलताएं मिलती रही थीं, किसी को नस्ली टिप्पणियों से जूझना पड़ रहा है। छत्तीस के स्कोर पर
ऑल आउट हो जाने वाली इस टीम के खिलाडि़यों ने हार की कड़वाहट से अपना दिमाग विचलित नहीं होने
दिया, कलुषित नहीं होने दिया, प्रदूषित नहीं होने दिया और अपना संयम, धीरज और साहस बनाए रखा।
जुबान से कुछ कहने के बजाय अपने बल्ले को जवाब देने दिया।
जब हम भारतीय भी अपनी टीम को लगभग तिरस्कारपूर्ण निगाहों से देख रहे थे, तब इस टीम ने सारी दुनिया
को गलत साबित कर दिया। जो सब कहते थे कि यह टीम जीत ही नहीं सकती थी, उन्हें जीत कर दिखा
दिया। यह इतिहास कोई ऐसी टीम ही रच सकती थी जिसके पास अदम्य साहस हो, धीरज हो और जो टीम
पूरी तरह से बहरी हो, किसी की अनादर भरी टिप्पणियों को न सुने और अपनी धुन में लगी रहे। इस टीम ने
वह कर दिखाया। सारी सीमाओं के बावजूद कर दिखाया। और यह कोई पचास-सौ साल पुरानी घटना नहीं है।
यह जीत ऐसी है कि चेहरा खुशी से खिल जाए, यह जीत ऐसी है कि आंखों में आंसू आ जाएं। यह जीत
सचमुच एक अनूठी जीत है और ऐसी जीत किसी ऐसी टीम के हिस्से में ही आती है जिसे सारी दुनिया शक की
निगाहों से देख रही हो। आस्ट्रेलियाई टीम अगर टेस्ट जीत भी जाती तो वह एक साधारण जीत होती, एक
बहुत अनुभवहीन अनाड़ी और कमज़ोर टीम पर जीत होती, पर इस भारतीय टीम की जीत इतिहास रच गई
और यह कई दशकों तक हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगी। आमिर खान की प्रसिद्ध फिल्म लगान में हमें
ऐसी ही कहानी देखने को मिली थी, जिसमें साधनहीन, अनुभवनहीन, अनाड़ी लोगों ने अनुभवी और सशक्त
ब्रिटिश टीम को हराकर लगान माफ करवा ली थी। वह ऐसी बड़ी जीत थी। भारतीय टीम की यह जीत भी ऐसी
एक जीत थी जिसकी कल्पना लगान के स्क्रिप्ट राइटर ने भी नहीं की होगी। जब स्थितियां हर तरह से विपरीत
हों, जब आशा की कोई किरण सामने नज़र न आ रही हो, जब हर कोई आप पर शक कर रहा हो, जब खुद
को खुद पर ही शक होने लगे, तब भी आशा की ज्योति जगाए रखना आसान नहीं होता, पर इस टीम ने वह
कर दिखाया जो असंभव प्रतीत होता है। इतिहास सचमुच यूं ही रचे जाते हैं।

कप्तान रहाणे के नेतृत्व में भारतीय क्रिकेट टीम ने मंगलवार को ब्रिस्बेन के गाबा इंटरनैशनल स्टेडियम में खेले
गए चौथे टेस्ट मैच में आस्ट्रेलियाई टीम को तीन विकेट से हराकर सिर्फ सीरीज ही अपने नाम नहीं की, बल्कि
कई अन्य रिकार्ड अपने नाम कर लिए। ब्रिस्बेन टेस्ट की चौथी पारी में भारत के सामने 328 रन का लक्ष्य था
जो ऑस्ट्रेलिया के मजबूत आक्रमण के लिहाज से मुश्किल माना जा रहा था, लेकिन शुभमन गिल, चेतेश्वर
पुजारा और ऋषभ पंत की शानदार अर्धशतकीय पारियों की बदौलत टीम ने यह टारगेट जो उसने छह विकेट
खोकर हासिल किया। आंकड़ों की बात करें तो ब्रिस्बेन के गाबा इंटरनैशनल स्टेडियम में आस्ट्रेलियाई क्रिकेट
टीम को 32 साल के बाद कोई हार मिली है। साथ ही गाबा पर भारत की यह अब तक की पहली जीत है।
इसके साथ ही भारत गाबा और वाका में टेस्ट जीतने वाला पहला एशियाई देश बन गया है। इससे पहले
2003 में भारत ने आस्ट्रेलिया को इस मैदान में बराबरी पर रोका था। आस्ट्रेलिया को इस मैदान को पिछली
हार नवंबर 1988 में मिली थी, जब वेस्टइंडीज ने उसे नौ विकेटों से शिकस्त दी थी। उस हार के बाद
आस्ट्रेलिया को 32 साल बाद गाबा के मैदान पर एक बार फिर से हार मिली है और इस बार उसे भारत ने
धूल चटाकर बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी अपने नाम की है। आस्ट्रेलिया ने ब्रिस्बेन के गाबा मैदान पर अब तक 56
टेस्ट मैच खेले हैं, जिसमें से उसने 33 जीते हैं, 13 ड्रा रहे हैं जबकि केवल नौ में ही उसे हार का सामना
करना पड़ा है और एक मैच टाई रहा है। भारतीय क्रिकेट टीम ने जिस तरह का खेल दिखाया, उसकी हर कोई
तारीफ कर रहा है।
टीम के कई प्रमुख खिलाड़ी चोट और निजी कारणों से आस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज़ में शामिल नहीं थे। इसके
बावजूद टीम इंडिया ने जुझारू प्रदर्शन किया और लगातार दूसरी बार बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी अपने नाम की है।
भारत के इस जीत के चर्चे अमरीका, इंग्लैंड और पाकिस्तान में भी सुनाई दिए। कई प्रमुख विदेशी अखबारों ने
टीम इंडिया की जमकर तारीफ की है। जो कल तक अनाम और अनजान लोग थे, जो गरीबी और अभावों से
जूझ रहे थे, पर अपनी लगन में पक्के थे, आज विश्व भर में उनका डंका बज रहा है और वे देश के हीरो हो
गए हैं। यह इसलिए संभव हो सका क्योंकि जब-जब लोगों ने उनकी खिल्ली उड़ाई, तब-तब उन्होंने खुद से कहा
कि बोलेंगे नहीं, करके दिखाएंगे। इस ऐतिहासिक जीत का रहस्य इतना-सा ही है। इन नए खिलाडि़यों को अपनी
प्रतिभा दिखाने का मौका सिर्फ इसलिए मिल सका क्योंकि टीम के वरिष्ठ खिलाड़ी मैच के लिए उपलब्ध नहीं
थे। क्या हम कोई ऐसी समानांतर प्रतियोगिता का आयोजन नियमित रूप से कर सकते हैं जहां उभरती
प्रतिभाओं को विश्व मंच पर आने का मौका मिले? क्या यह संभव है कि सभी देशों के नए प्रतिभावान
खिलाडि़यों को विश्व की अन्य टीमों के साथ खेलने का मौका लगातार मिले? जीत और हार छोटी बात है, बड़ी
बात यह है कि क्या हम इस मैच से यह सबक सीख सकते हैं कि चुने गए कुछ लोगों के अलावा भी ऐसे लोग
हो सकते हैं जिनमें प्रतिभा है, लगन है, धीरज है, संयम है, अनुशासन है और जीतने की अदम्य इच्छा है।
अगर हम ऐसा कर सके तो यह जीत सार्थक हो जाएगी वरना एक ऐतिहासिक घटना होने के बावजूद इसका
प्रभाव सीमित होगा। इस जीत ने इतिहास रचा है, पर अगर हम प्रतिभाओं के चयन का एक और नया
सिलसिला शुरू कर दें तो हम भी एक और इतिहास रच सकेंगे।


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