देश की सड़कों पर मौत का तांडव

asiakhabar.com | January 19, 2021 | 5:07 pm IST

सुरेंदर कुमार चोपड़ा

बेशक प्रतिवर्ष की तरह 11 जनवरी से 20 जनवरी 2021 तक पूरे भारतवर्ष में सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जा
रहा है।मगर ऐसे आयोजन औपचारिकता भर रह गए हैं। 2021 में मनाए जा रहे राष्टीय सड़क सुरक्षा सप्ताह
का थीम युवाओं के जरिये बदलाव रखा गया है।आज युवा लापरवाही के कारण जान गंवा रहे है।युवा देश के
कर्णधार है जो देश का भविष्य है।प्रतिवर्ष लाखों युवा हादसों में बेमौत मारे जा रहे है।इकलौते चिराग अस्त हो
रहे है। कोखें उजड़ रही है।माताओं व बहनों का सिंदूर मिट रहा हेैं।बच्चे अनाथ हो रहे है।युवाओं को जागरुक
करना होगा क्योकि युवा ही विकराल हो रही सड़क हादसों की समस्या को रोक सकते है। लॉकडाउन में सड़क
हादसों पर लगाम लग गई थी। नववर्ष 2021 के पहले सप्ताह से ही लोग सड़क हादसों में मारे जा रहें है। देश
में हर रोज इतने भीषण हादसे हो रहे है कि पूरे के पूरे परिवार मौत की नीद सो रहे हैं। कोहरे के कारण हजारों
सड़क हादसे हो रहे है। प्रतिदिन लोग मारे जा रहे है। यातायात के नियमों का पालन न करने पर ही इन हादसों
में निरंतर वृद्धि हो रही है। सड़क सुरक्षा सप्ताह पर लाखों रुपया बहाया जाता है मगर फिर भी सुधार नहीं
होता।जब तक लोग यातायात के नियमों का उल्लंघन करते रहेंगे तब तक इन हादसों में लोग बेमौत मरतें
रहेंगें। देश में 22 मार्च 2020 को जब लॉकडाउन लगा था तब हादसे पूरी तरह रुक गए थे। लॉकडाउन के
खुलते ही सड़क हादसों में अप्रत्याशित वृद्वि हो गई।कोरोना महामारी में हादसे कम हो गए थे।लॉकडाउन में
जगली जानवर सड़कों पर विचरण करते थे।परिवहन पूरी तरह बंद था।प्रदूषण भी शून्य हो गया था।साल 2020
के अप्रैल व मई माह में यातायात के साधन बंद हो गए थे। जून माह में ज्यों ही लॉकडाउन खुल गया तो फिर
से करोडों वाहन सड़कों पर दौड़ पड़े। जून 2020 से ही सड़क हादसों की रफ्तार बढ़ गई है। प्रतिवर्ष डेढ़ लाख
लोग सड़क हादसों में मारे जाते है। क्योकि प्रशासन द्वारा लोगों को इन सात दिनों में यातायात नियमों के बारे
में बताया जाता है फिर पूरा वर्ष लोग अपनी मनमानी करते है और यातयात नियमों का उल्लंघन करते है ओैेर
मौत के मुंह में समाते जा रहे है। लापरवाही से सड़कें रक्तरंजित हो रही हैं। चिराग बुझ रहें हैं। बच्चे अनाथ हो
रहे हैं। साल 2019 में भी सड़क हादसों का सिलसिला पूरी साल अनवरत चलता रहा था और लोग लाखो लोग
हादसों का शिकार होते रहे थे।

प्रतिदिन हो रही दुर्घटनाओं में हजारों लोग अपंग हो गए जो ताउम्र हादसों का दंश झेलते रहेगें। देश में हर चार
मिनट में एक व्यक्ति सड़क हादसे में मारा जाता है। प्रतिदिन देश की सडकें रक्तरजित हो रही है नौजवानों से
लेकर बुजुर्ग काल का ग्रास बन रहे हैं। आंकडें बताते है कि सड़क दुर्घटनाओं में भारत अन्य देशों से शीर्ष पर
हैं। शराब पीकर वाहन चलाना तथा चलते वाहनों में मोबाइल का प्रयोग ही हादसों का मुख्य कारण माना जा
रहा है। इसके कारण ही लाखो लोग सड़क हादसों में मौत का शिकार हुए।2021 में भी सडक हादसे थमने का
नाम नहीं ले रहे हैं तथा प्रतिदिन दुर्घटनाओं का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। इसे सरकारों की लापरवाहीे की
संज्ञा देना गलत नहीं होगा। प्रतिवर्ष सड़क सुरक्षा हेतू करोड़ों रुपया बहाया जाता है मगर नतीजा वही ढाक के
तीन पात ही निकलता है अगर सही तरीके से पैसा खर्चा किया जाए तो इन हादसो पर विराम लग सकता है
मगर ऐसा नहीं हो रहा है। हर वर्ष लाखों लोग मारे जा रहे है। ज्यादातर सड़क हादसे सर्दियों में होते है।
लापरवाही के कारण हजारों सड़क हादसे हो रहे हैं। सड़क हादसे अभिशाप बनते जा रहे हैं। धुंध के कारण
आपसी टक्कर में दुर्घटनाएं होती हैं। देश के प्रत्येक राज्यों में हादसों की दर बढ़ती जा रही है। दुर्घटना के बाद
मुआवजे की राशि बांटने में व समाचार पत्रों में सुखिर्यों में रहने में प्रशासन व नेता लोग आगे रहते हैं नेताओं
द्वारा घडिय़ाली आंसू बहाए जातें हैंै। सड़क हादसों को रोकने के लिए एक नीति बनानी होगी। जागरुकता
अभियान चलाने होंगे। देश की सड़कों पर लाशों के चिथड़े बिखर रहे हैं। पंजाब, दिल्ली व उत्तप्रदेश व हिमाचल
प्रदेश में धुंध के कारण दर्जनों हादसों में सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं, मगर राज्यों की सरकारों को इससे कोई
सरोकार नहीं है। सरकारों को लोगों को यातयात नियमों से संबधित शिविरों का आयोजन करना चाहिए।आज
करोडों के हिसाब से वाहन पंजीकृत है मगर सही ढंग से वाहन चलाने वालो की संख्या कम है क्योंकि आधे से
ज्यादा लोगों को यातायात के नियमों का ज्ञान तक नहीं होता। पुलिस प्रशासन चालान काटकर अपना कर्तव्य
निभा रहे हंै, मगर चालान इसका हल नहीं है। इसका स्थायी समाधान ढूंढना होगा। बिना हैलमैट के नाबालिग
से लेकर अधेड़ उम्र के लोग वाहनो को हवा में चलाते हैं और दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं।
जानबूझकर व नशे की हालत में दुर्घटना करने वाले चालकों के लाईसैस रदद करने चाहिए। ज्यादातर हादसे में
नाबालिग चालक ही मारे जाते हैं। प्रशासन की लापरवाही भी इसमें साफ झलकती है। आज ज्यादातर युवा व
लोग शराब पीकर व अन्य प्रकार का नशा करकेेे वाहन चलाते है नतीजन खुद ही मौत को दावत देते हैं भले ही
पुलिस यन्त्रों के माध्यम से शराब पीकर वाहन चलाने वालों पर शिकंजा कस रही है मगर फिर भी लोग नियमों
का उल्लघन करने से बाज नहीं आ रहे हैं। राज्यों की सरकारों द्वारा पुलिस को दी गई हाईवे पैट्रोलिंग की
गाडिय़ां भी यातायात को कम करने में नाकाम साबित हो रही हैं। बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के अनेक कारण है।
सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि 80 प्रतिशत हादसे मानवीय लापरवाही के कारण होते हैं।लापरवाह लोग
सीट बैल्ट तक नहीं लगाते और तेज रफतार में वाहन चलाते हैं।देश में सड़क हादसों में स्कूली बच्चों के मारे
जाने के हादसे भी समय-समय पर होते रहते हैं मगर कुछ दिन चैक रखा जाता है फिर वही परिपाटी चलती
रहती है, जबकि होना तो यह चाहिए कि इन लापरवाह चालकों को सजा देनी चाहिए ताकि मासूम बेमौत न
मारे जा सके। अक्सर देखा गया है कि वाहन चालकों के पास प्राथमिक चिकित्सा बाकस तक नहीं होतें ताकि
आपातकालीन स्थिति में प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवाई जा सके । प्रत्येक साल नवरात्रों में श्रद्धालु मंदिरों
में ट्रकों में जाते हैं और गाडिय़ां दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है तथा मारे जाते हैं। केन्द्र सरकार को इस पर गौर
करना होगा तथा देश में बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं पर रोक के लिए कारगर कदम उठाने होगें नहीतो देश के
प्रत्येक महानगरों व शहरों से लेकर गांवों तक हर रोज लाशें बिछती रहेगी, लोग मरते रहेंगें। दुर्घटनाओं का
कहर बरपता रहेगा। यदि सरकारे ऐसे ही सोती रहेगी तो देश की सड़कें खून से लाल होती रहेगी। मानव जीवन
को बचाना होगा क्योकि मानव जीवन दुर्लभ है।बेलगाम हो रहे यातायात पर लगाम लगाना सरकार व प्रशासन
का कर्तव्य है। लोगों को भी इसमें सहयोग करना होगा तभी इस समस्या का स्थायी हल हो सकता है। यदि

लोग सही तरीके से यातायात नियमों का पालन करते है तो सड़कों पर हो रहे मौत के तांडव को रोका जा
सकता है तभी सड़क सुरक्षा सप्ताह की सार्थकता होगी।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *