अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाओं से युक्त होगी नई संसद

asiakhabar.com | January 15, 2021 | 5:53 pm IST
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राजीव गोयल

सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’ को हरी झंडी दिए जाने के बाद नई संसद के निर्माण का रास्ता साफ
हो गया है। हालांकि केवल शिलान्यास के लिए अदालत की मंजूरी के बाद 10 दिसम्बर 2020 को संसद की
नई इमारत का शिलान्यास कर दिया गया था लेकिन उसके बाद से नए भवन का निर्माण रूका हुआ था। चूंकि
तीन मंजिला नई संसद के निर्माण का मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित था, इसलिए सभी की नजरें
अदालत के फैसले पर टिकी थी। दरअसल केन्द्र सरकार के इस सेंट्रल विस्टा ड्रीम प्रोजेक्ट को कई
याचिकाकर्ताओं ने यह कहते हुए अदालत में चुनौती दी थी कि बगैर उचित कानून पारित किए सरकार द्वारा
इस परियोजना को शुरू किया गया और इसके लिए पर्यावरणीय मंजूरी लेने की प्रक्रिया में भी कई खामियां हैं।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि संसद और उसके आसपास की ऐतिहासिक इमारतों को इस परियोजना से
नुकसान पहुंचने की आशंका है और हजारों करोड़ रुपये की यह योजना केवल सरकारी धन की बर्बादी ही है।
सरकार का याचिकाओं के जवाब में कहना था कि बदलती जरूरतों के हिसाब से मौजूदा संसद भवन और
मंत्रालय अपर्याप्त साबित हो रहे हैं और नए सेंट्रल विस्टा का निर्माण करते हुए पर्यावरण के साथ यह भी
ध्यान रखा जाएगा कि हेरिटेज इमारतों को कोई नुकसान नहीं पहुंचे। अदालत में सरकार की ओर से तर्क दिया
गया था कि फिलहाल सभी मंत्रालय कई अलग-अलग इमारतों में हैं और अधिकारियों को एक मंत्रालय से दूसरे
में जाने के लिए वाहनों का इस्तेमाल करना पड़ता है तथा कुछ मंत्रालयों का किराया देने में ही प्रतिवर्ष करोड़ों
रुपये खर्च हो जाते हैं, इसलिए यह कहना सही नहीं है कि सेंट्रल विस्टा के निर्माण में सरकारी धन की बर्बादी
हो रही है बल्कि धन की बर्बादी रोकने के लिए यह परियोजना जरूरी है। फिलहाल ये मंत्रालय एक-दूसरे से दूर
47 इमारतों से चल रहे हैं जबकि सेंट्रल विस्टा में एक दूसरे से जुड़ी 10 इमारतों में ही 51 मंत्रालय बनाए
जाएंगे और इन्हें नजदीकी मैट्रो स्टेशन से जोड़ने के लिए भूमिगत मार्ग भी बनाया जाएगा।
अदालत ने प्रोजेक्ट को चुनौती देती याचिकाओं पर 5 नवंबर को फैसला सुरक्षित रखा था, साथ ही कहा था कि
अदालत इस दलील को खारिज करती है कि सेंट्रल विस्टा में कोई नया निर्माण नहीं हो सकता। अदालत का
कहना था कि विचार इस पहलू पर किया जाएगा कि क्या प्रोजेक्ट के लिए सभी कानूनी जरूरतों का पालन
किया गया है। अब 5 जनवरी को देश की सर्वोच्च अदालत के तीन जजों की बेंच के 2:1 के बहुमत के फैसले

के साथ ही नए संसद भवन के निर्माण को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मिल गई है। न्यायमूर्ति खानविलकर और
न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने बहुमत में फैसला सुनाया जबकि अल्पमत के फैसले में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने ‘लैंड
यूज’ बदलने की प्रक्रिया को कानूनन गलत बताया। अदालत ने अपने फैसले में निर्देश दिया है कि संसद के नए
भवन के निर्माण से पहले हेरिटेज कमेटी की मंजूरी ली जाए और निर्माण के दौरान प्रदूषण रोकने के लिए
स्मॉग टावर लगाए जाएं।
वर्ष 2026 में देश में लोकसभा सीटों के परिसीमन का कार्य होना है, जिसके बाद लोकसभा और राज्यसभा की
सीटें बढ़ जाएंगी। परिसीमन का कार्य होने के बाद लोकसभा में सांसदों की संख्या 545 से बढ़कर 700 से
ज्यादा हो सकती है। इसी प्रकार राज्यसभा की सीटें भी बढ़ सकती हैं। मौजूदा लोकसभा में इतने सांसदों के
बैठने की व्यवस्था किया जाना असंभव है, ऐसे में समझा जा सकता है कि भविष्य की इन जरूरतों को पूरा
करने के लिए नया संसद भवन कितना जरूरी है। संसद की नई इमारत में राज्यसभा का आकार पहले के
मुकाबले बढ़ेगा तथा लोकसभा का आकार भी मौजूदा से तीन गुना ज्यादा होगा। नए संसद परिसर में 888
सीट वाली लोकसभा, 384 सीट वाली राज्यसभा और 1224 सीट वाला सेंट्रल हॉल बनाया जाएगा। ऐसे में
संसद की संयुक्त बैठक के दौरान सांसदों को अलग से कुर्सी लगाकर बैठाने की जरूरत खत्म हो जाएगी। अभी
प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति के निवास स्थान राष्ट्रपति भवन से दूर हैं लेकिन नए प्रोजेक्ट में इनके नए निवास
भी राष्ट्रपति भवन के नजदीक ही बनाए जाएंगे।
सर्वोच्च न्यायालय की हरी झंडी मिलने के बाद अब बहुत जल्द सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नए संसद
परिसर का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा और उम्मीद है कि नया संसद भवन अक्तूबर 2022 तक बनकर
तैयार हो जाएगा, जिसके बाद संसद का पुराना भवन प्राचीन धरोहर का हिस्सा बन जाएगा और इसका
इस्तेमाल संसदीय आयोजनों के लिए किया जाएगा। संसद की नई इमारत का कार्य करीब 22 माह की अवधि
में पूरा होने का अनुमान है और संभावना है कि नवम्बर 2022 से नई संसद में ही लोकसभा तथा राज्यसभा
के सत्रों का आयोजन होगा। लोकसभाध्यक्ष ओम बिड़ला के मुताबिक नई इमारत बनाने के लिए परिसर के अंदर
ही 8822 वर्ग मीटर खाली जगह उपलब्ध है, ऐसे में नया भवन बनाने के लिए बाहर के किसी भवन को
गिराए जाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। नया संसद भवन वर्तमान संसद भवन के पास ही बनना प्रस्तावित है, जो
पुरानी इमारत से करीब 17 हजार वर्गमीटर ज्यादा बड़ा होगा और इसके निर्माण कार्य पर करीब 971 करोड़
रुपये खर्च होने का अनुमान है। 64500 वर्गमीटर क्षेत्र में बनने वाले नए संसद भवन में एक बेसमेंट सहित
तीन फ्लोर होंगे और इसकी ऊंचाई संसद के मौजूदा भवन के बराबर ही होगी।
मौजूदा संसद भवन में सांसदों की जरूरतों के हिसाब से व्यवस्थाएं नहीं हैं, न ही संसद भवन में उनके
कार्यालय हैं। नई संसद में प्रत्येक सांसद को कार्यालय के लिए 40 वर्ग मीटर स्थान उपलब्ध कराया जाएगा
और हर ऑफिस सभी आधुनिक डिजिटल तकनीकों से लैस होगा। नई संसद में सांसदों के कार्यालयों को
पेपरलेस ऑफिस बनाने के लिए नवीनतम डिजिटल इंटरफेस से लैस किया जाएगा और इन दफ्तरों को
अंडरग्राउंड टनल से जोड़ा जाएगा। सदन में प्रत्येक बेंच पर दो सदस्य बैठ सकेंगे और हर सीट डिजिटल प्रणाली
तथा टचस्क्रीन से सुसज्जित होगी। नए भवन में कॉन्स्टीट्यूशन हॉल, सांसद लॉज, लाइब्रेरी, कमेटी रूम,
भोजनालय और पार्किंग की व्यवस्था होगी और भवन में करीब 1400 सांसदों के बैठने की व्यवस्था की
जाएगी।
अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाओं से युक्त नए संसद भवन का निर्माण पूर्ण वैदिक रीति से वास्तु के अनुसार
किया जाएगा, जो त्रिकोणीय आकार का होगा। भूकम्परोधी तकनीक से बनाया जाने वाला संसद का नया भवन
ऊर्जा कुशल होगा, जिसमें सौर प्रणाली से ऊर्जा की बचत होगी। नई संसद वायु और ध्वनि प्रदूषण से पूरी तरह

मुक्त होगी और इसमें रेन हार्वेस्टिंग प्रणाली तथा वाटर रिसाइकलिंग प्रणाली भी होगी। नई संसद में राज्यसभा
कक्ष का डिजाइन राष्ट्रीय पुष्प कमल जैसा तथा लोकसभा कक्ष का डिजाइन राष्ट्रीय पक्षी मयूर जैसा होगा।
लोकसभा सचिवालय के मुताबिक नया संसद भवन भारत के लोकतंत्र और भारतवासियों के गौरव का प्रतीक
होगा, जो न सिर्फ देश के गौरवशाली इतिहास बल्कि इसकी एकता और विविधता का भी परिचय देगा। नए
संसद भवन में छह समिति कक्ष होंगे और इस भवन के निर्माण कार्य में दो हजार मजदूर तथा इंजीनियर
प्रत्यक्ष तौर पर शामिल होंगे जबकि परोक्ष रूप से नौ हजार से भी ज्यादा लोग जुड़ेंगे। लोकसभाध्यक्ष का कहना
है कि संसद का नया भवन केवल ईंट-पत्थर का भवन नहीं होगा बल्कि यह देश के एक सौ तीस करोड़ लोगों
की आकांक्षाओं का भवन होगा, जिसके निर्माण में आगामी सौ वर्षों से अधिक की जरूरतों पर ध्यान दिया जा
रहा है।


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