संयोग गुप्ता
पूरे देश में शनिवार से टीकाकरण शुरू होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत
करेंगे। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दी है कि हर टीकाकरण सत्र में टीका
लगवाने वालों की संख्या 100 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। 10 प्रतिशत टीकों को आरक्षित रखा जाए क्योंकि
इतने डोज का नुकसान हो सकता है। मंत्रालय ने कहा है कि जैसे-जैसे टीकाकरण आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे केंद्रों की
संख्या भी बढ़ाई जाएगी। पहले चरण में एक करोड़ स्वास्थ्य कर्मियों और पहली पंक्ति में खड़े दो करोड़ कर्मियों
को मुफ्त में टीका लगाया जाएगा। इसके बाद 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों और गंभीर बीमारियों से जूझ
रहे 50 साल से कम उम्र के लोगों को टीका लगाया जाएगा। इस तरह लगभग 27 करोड़ लोगों को टीका
लगाया जाएगा। भारत में टीकाकरण अभियान के लिए 2360 लोगों को राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण शिविर में
प्रशिक्षण दिया गया है। इनमें राज्य टीकाकरण अधिकारी, प्रशीतन श्रृंखला अधिकारी, आईईसी अधिकारी तथा
अन्य भागीदार शामिल हैं। इसके अलावा 61 हजार से ज्यादा कार्यक्रम प्रबंधन, दो लाख टीकाकरण कर्मी तथा
तीन लाख 70 हजार अन्य कर्मियों को राज्य, जिला और खंड स्तर पर प्रशिक्षित किया जा चुका है। अब
अच्छी बात है कि इस दौरान कोरोना संक्रमण की रफ्तार काफी धीमी पड़ गई है। इस तरह टीकाकरण संबंधी
आगे की चुनौतियों से पार पाना कठिन नहीं होगा। यह भारत जैसी विशाल आबादी वाले देश में अब तक का
सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान होगा। पहले तो टीके की उपलब्धता, सभी जगह उसकी पहुंच और उसके उचित
रखरखाव आदि को लेकर आशंकाएं जताई जा रही थीं, पर इन सारे पहलुओं की पहले से रूपरेखा तैयार कर ली
गई है। पहले चरण के टीकाकरण से इस दिशा में आने वाली अन्य कठिनाइयों से पार पाने का रास्ता भी
निकल आएगा। यह दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान होगा, इसलिए इसे चुनौतियों से परे नहीं माना
जा सकता। पर भारत के लिए टीकाकरण का यह नया अनुभव नहीं है। यहां के चिकित्साकर्मियों के लिए
खसरा, डिप्थीरिया, पोलियो आदि के देशव्यापी टीकाकरण का लंबा अनुभव है। बेशक यह टीकाकरण उन सारे
टीकों से कुछ अलग तरह का है और इसमें विशेष एहतियात की जरूरत है, मगर इसे लेकर देशव्यापी तैयारियां
आश्वस्त करती हैं कि मुश्किलें बहुत नहीं आएंगी।
कुछ लोग अवश्य इस टीके के प्रभाव को लेकर सशंकित हैं और कुछ राजनीतिक दल इसे सियासी रंग देने का
प्रयास करते देखे जा रहे हैं। सवाल उठाए जा रहे हैं कि दो चरणों में ही इसका परीक्षण पूरा होने के बाद इसे
आम लोगों को नहीं लगाया जाना चाहिए। कायदे से टीकों का तीन तरण में परीक्षण किया जाता है और उनके
प्रभावों का अध्ययन करने के बाद ही आगे की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
इसका विरोध करने वाले कुछ उदाहरण भी पेश कर रहे हैं, जिनमें इन टीकों का दुष्प्रभाव देखा गया। मगर इस
तरह के जटिल और संवेदनशील टीकों के परीक्षण में हमेशा सौ फीसद एक समान नतीजे कभी नहीं आते,
इसलिए फिलहाल इसे लेकर आशंका व्यक्त करना उचित नहीं। ये टीके मनुष्य के शरीर में कोरोना विषाणु से
लडऩे संबंधी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए लगाए जाने हैं। और हर व्यक्ति के शरीर की क्षमता और प्रकृति
अलग-अलग होती है, उसमें पहले से चले आ रहे कुछ रोग भी बाधा उपस्थित कर सकते हैं। इसलिए बिना
नतीजे सामने आए, अभी से इन टीकों को लेकर परेशान होने की तुक नहीं बनती। इसे भारत की बड़ी उपलब्धि
माना जा रहा है कि इतने कम समय में उसके वैज्ञानिकों ने टीका तैयार कर लिया और अब टीकाकरण की
प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। दुनिया के कुछ ही देश हैं, जो खुद कोरोना के टीके तैयार कर व्यापक टीकाकरण
अभियान चलाने लगे हैं, भारत उनमें से एक है।
फिलहाल दो टीके अंतिम रूप से तैयार हो पाए हैं, अभी चार टीके और आने वाले हैं। इस तरह भारत सस्ती दर
पर और वातावरण के हिसाब से अधिक उपयुक्त टीका बनाने वाला शायद पहला देश है। इस मामले में अगर
राज्यों का भी अपेक्षित और उत्साहजनक सहयोग मिलेगा तो निस्संदेह जल्दी इसके बेहतर नतीजे देखने को
मिलेंगे।