शिशिर गुप्ता
किसान आंदोलन को लेकर सरकार का अब तक जो रवैया देखने को मिला, उस पर अदालत ने सोमवार को
गहरी नाराजगी व्यक्त की थी और साफ कर दिया था कि वह इन कानूनों के अमल पर रोक लगा सकती है।
मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसए बोबडे की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ ने आदेश जारी
कर इन विवादित कानूनों पर अमल रोक दिया। पीठ ने एक कमेटी भी बना दी है जो किसानों की समस्याओं
और कानूनों को लेकर उत्पन्न आशंकाओं को सुनेगी और फिर अदालत को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। अदालत का
यह कदम स्वागतयोग्य है। इसे न तो किसानों की जीत और न सरकार को झुकाने के प्रयास के रूप में देखे
जाने की जरूरत है। अदालत ने किसान संगठनों से साफ-साफ कहा है कि गतिरोध दूर करने के लिए उन्हें भी
कमेटी के समक्ष आना ही होगा। बिना उनके सहयोग के किसी भी तरह के हल की कोई गुंजाइश नहीं बनेगी।
किसान संगठनों को यह बात गंभीरता से समझने की जरूरत है।
केंद्र सरकार और किसान संगठन अगर पहले ही अडिय़ल रुख छोड़ कर कोई उचित और तार्किक समाधान
निकलने का प्रयास करते तो गतिरोध इतना नहीं खिंचता। लेकिन किसान कानूनों की वापसी और न्यूनतम
समर्थन मूल्य को कानूनी जामा पहनाने की मांग पर अड़े रहे और सरकार किसी भी सूरत में इन्हें वापस नहीं
लेने की बात दोहराती रही। ऐसी हठधर्मिता को कहीं से भी विवेकशीलता का परिचायक नहीं कहा जा सकता।
वार्ता के नाम पर केंद्र सरकार जिस तरह मामले को खींचने में अपनी होशियारी समझती रही और नई-नई
तारीखें देकर किसानों के धैर्य की परीक्षा लेती रही, किसी भी संवेदनशील सरकार से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा
सकती। आखिरकार सर्वोच्च अदालत को कड़ा रुख अख्तियार करते हुए यह कहने को मजबूर होना ही पड़ा कि
किसानों की समस्या का हल निकालने में सरकार नाकाम रही है।
कोई भी समाधान तभी निकल पाता है जब दोनों पक्ष एक दूसरे की मजबूरी को समझते हुए लचीला रुख
अपनाएं। किसान संगठनों ने अभी भी यही संकेत दिया है कि कानून वापसी से कम पर वे मानने वाले नहीं हैं।
अगर ऐसा होता है तो कैसे समाधान निकलेगा! बल्कि बेहतर यह होगा कि अदालत पर भरोसा करते हुए
किसान संगठन अब आंदोलन खत्म करने के बारे में सोचें। अब तो मामला अदालत के पास है और कमेटी की
रिपोर्ट के आधार पर अदालत जो फैसला दे, संबंधित पक्षों को उसका सम्मान करना चाहिए।
अदालत की यह चिंता वाजिब है कि कड़ाके की ठंड और बारिश जैसे प्रतिकूल हालात में भी दिल्ली की सीमाओं
पर लाखों किसान मोर्चे पर डटे हैं। 60 से ज्यादा किसान ठंड से दम तोड़ चुके हैं। नए कृषि कानूनों के विरोध
में खुदकुशी की घटनाएं भी सामने आई हैं। केंद्र सरकार के रुख से खफा किसानों ने गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर
मार्च निकालने का एलान कर दिया है।
पंजाब और हरियाणा में किसानों के हिंसा पर उतरने की घटनाओं ने भी चिंता पैदा कर दी। राजस्थान में भी
किसानों ने दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग को कई दिनों से बंद कर रखा है। कई राज्य सरकारें भी इन कानूनों
के खिलाफ हैं, इसलिए अदालत को दखल देना पड़ा है। उचित और सर्वमान्य समाधान निकले, इसके लिए
अदालत के प्रयासों को सफल बनाने की जिम्मेदारी सरकार और किसान संगठनों की है।