सुरेंदर कुमार चोपड़ा
उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी के निर्माण के लिये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक सराहनीय एवं साहसिक शुरुआत
करते हुए यमुना एक्सप्रेस के पास एक हजार एकड़ भूमि उपलब्ध कराने के साथ आगे की कार्रवाई में जुट गये हैं।
भले ही राजनीति में उनकी इस अनूठी पहल को लेकर आलोचनाएं हो रही हों, लेकिन यह उनके कुशल शासक एवं
प्रदेश के समग्र विकास के लिये उनकी जिजीविषा को उजागर करता है। निश्चित ही उनके इस उपक्रम से न केवल
उत्तर प्रदेश को बल्कि आसपास के प्रांतों एवं क्षेत्रों को आर्थिक विकास के साथ संस्कृति विकास का नया परिवेश
मिलेगा। अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के दरवाजे खुलेंगे, रोजगार बढ़ेगा और समृद्धि आयेगी। प्रदेश के कलाकार,
संगीतकार, लेखक, फिल्मकार आदि लोगों का कॅरियर संवरेगा। इस सन्दर्भ में भी आग्रह एवं दुराग्रह पल रहे हैं।
यह दुर्भाग्य है कि पूर्वाग्रह के बिना कोई विचार अभिव्यक्ति नहीं और निजी एवं राजनीतिक स्वार्थों के लिये दुराग्रही
हो जाना राष्ट्र-निर्माण की बड़ी बाधा है।
योगी आदित्यनाथ एक धार्मिक नेता होने के साथ-साथ सफल राजनेता भी हैं। एक आदर्श राजनेता की भांति उनमें
सभी विशेषताएं एवं विलक्षण समाये हुये हैं। फिर वे फिल्म सिटी बनाने से परहेज क्यों करें? अपने शासन एवं
शासक की परिधि में आने वाली सभी जिम्मेदारियों का वे सफलतापूर्वक निर्वाह कर रहे हैं, जिससे विभिन्न
राजनीतिक दलों एवं नेताओं की नींद उड़ी हुई है। फिल्म सिटी के ऐलान के सन्दर्भ में उनकी मुंबई यात्रा एवं
बॉलीवुड हस्तियों से मुलाकात से भले ही एक नया विवाद छिड़ गया है लेकिन यह उत्तर प्रदेश के विकास की दृष्टि
से मील का पत्थर साबित होगा। महाराष्ट्र के राजनेताओं एवं अन्य दलों के नेताओं की बयानबाजी से ऐसा लगने
लगा है जैसे हिंदी फिल्मी इंडस्ट्री को मुंबई से निकालने और उसको वहीं बनाए रखने वाली शक्तियों के बीच
रस्साकशी शुरू हो गयी है। इस तरह की बयानबाजी हास्यास्पद एवं बौखलाहट ही कही जाएगी, लेकिन राजनीति की
अपनी अलग लय होती है जो उसके अपने तकाजों से बनती है। इसलिए उससे हटकर इस पूरे प्रकरण को देखा जाए
तो कोई मुख्यमंत्री अपने प्रदेश में फिल्म निर्माण उद्योग का नया केंद्र बनाना चाहे, इसमें आपत्ति करने लायक तो
कोई बात ही नहीं है।
भारत के आधुनिक इतिहास के हर चरण के साथ हिंदी सिनेमा बदला। अब अगर हिन्दी सिनेमा निर्माण की प्रक्रिया
से जुड़ा फिल्म सिटी के एकाधिकार में बदलाव एवं आधुनिकीकरण आ रहा है, तो इसे एक लोकतांत्रिक उपक्रम ही
मानेंगे। दरअसल पूरी फिल्मी दुनिया धीरे-धीरे और एक चरणबद्ध प्रक्रिया से आधुनिक हुई। आधुनिक होने की
अपनी इस यात्रा में उसने साहित्य, विज्ञान, कला और विचार के विविध रूपों की रचना की और उनकी रोशनी में
उसने खुद को पीढ़ी दर पीढ़ी बनाया, ढाला है, गढ़ा है। दुर्भाग्य से फिल्म सिटी में ऐसी कोई चरणबद्ध प्रक्रिया नहीं
हुई। ऐसे में यदि उत्तर प्रदेश ने तेजी से फिल्म सिटी के नए मायने तलाशने की राहें तय कीं तो उसका स्वागत
होना चाहिए। योगी सरकार ने फिल्म इंडस्ट्री के लिए हर तरह की विश्वस्तरीय तकनीकी सुविधाएं एवं साधन मुहैया
कराने का इरादा व्यक्त किया है। इस महत्वाकांक्षी योजना और इस पर काम शुरू करने की तत्परता के लिए योगी
सरकार की तारीफ करते हुए भी एक बार यह देख लेना उचित होगा कि जो काम हाथ में लिया गया है, उसे
अंजाम तक पहुंचाया जाये। निश्चित ही इस नये प्रस्थान से हिन्दी सिनेमा और उसके निर्माण को नया परिवेश एवं
क्षेत्र से नयी ऊर्जा मिलेगी, नये सफलता के कीर्तिमान स्थापित होंगे। साहित्य, कला, विचार, मनोरंजन सब कुछ
नये बदलाव के साथ नये मूल्यों एवं मानकों को स्थापित करेगा। फिल्मों की शूटिंग तो किसी भी उपयुक्त लोकेशन
पर होती है। अलग-अलग भाषाओं की फिल्में भी देश के विभिन्न राज्यों में बनती हैं, लेकिन बात फिल्म इंडस्ट्री
की हो तो महाराष्ट्र के अलावा पंजाब, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश तीन राज्य ही ऐसे हैं जिन्हें बाकायदा आत्मनिर्भर
फिल्म इंडस्ट्री विकसित करने का श्रेय दिया जा सकता है। आजादी के सात दशकों के दौरान यदि हमने अन्य प्रांतों
में फिल्म सिटी बनाने में सफलता प्राप्त नहीं कर पाये तो इस स्थिति के कारणों पर मंथन जरूरी है।
हिंदी सिनेमा बनाने की यह दास्तान भारत के कस्बों, शहरों ने अपने मन के किन्हीं कोनों में बहुत संजो कर सुनी
और जी है। अब भाव वह नहीं है, जो वह कल तक था। और आने वाले कल में वह कुछ और ही होने जा रहा है।
समय के इस मुकाम पर योगी सरकार की यह अनूठी पहल सचमुच थोड़ी रोचक और थोड़ी शिक्षाप्रद भी होगी
अतीत और वर्तमान के इस सिनेमाई संसार की तमाम प्रतिभाओं एवं प्रक्रियाओं को यादों की निगाहें से तो विश्लेषण
के नजरिए से या फिर खुद को जांचने की भावना से देखना। यह तय है कि फिल्म सिटी निर्माण का यह उपक्रम
राजनीति नफे-नुकसान से जुड़ा होकर भी भारत की संस्कृति, कला, साहित्य, संगीत, मनोरंजन का एक अभिन्न
हिस्सा है। उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी का काम शुरू होना ही कोई बड़ा काम नहीं है, बड़ा काम तो तब होगा जब
इससे जुड़ी कठिनाइयों एवं समस्याओं से पार पाते हुए सफलतापूर्वक फिल्म निर्माण एवं उससे जुड़ी तमाम
गतिविधियों का संचालन कर सकेंगे। फिल्म बनाने से लेकर उसके रिलीज होने तक की प्रक्रिया में एकदम अलग
अलग तरह की दक्षता वाले तरह-तरह के पेशों से जुड़े लोगों की जरूरत होती है कि गिनाना मुश्किल है। इन तमाम
प्रतिभाओं को किसी एक जगह एकत्र करना और उनके फलने-फूलने लायक माहौल देना, इतना ही नहीं, ऐसे माहौल
को लगातार बनाए रखना एक चुनौती है।
उत्तर प्रदेश में दुनिया की सबसे खूबसूरत ‘फिल्म सिटी’ बनाने की प्रतिबद्धता ‘सबका साथ-सबका विकास’ की
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा का प्रतीक है। यह जबरन किसी प्रांत की फिल्मी सिटी को हथियाने का मामला
कैसे हो सकता है? यह एक नयी फिल्म सिटी के निर्माण का मामला है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे एवं
शिवसेना के संजय राउत के सामने यह खुली प्रतिस्पर्धा है और जो प्रतिभा को उभरने के लिए सही माहौल और
सुरक्षा दे सकेगा, उसे निवेश मिलेगा, पनपने का अवसर मिलेगा। हर व्यक्ति को बड़ा बनना पड़ेगा, बड़ी सोच पैदा
करनी होगी और बेहतर सुविधाएं देनी होंगी। जो सुविधाएं दे पाएगा, लोग वहां जाएंगे और उत्तर प्रदेश इसके लिए
तैयार है तो महाराष्ट्र सरकार उससे बेहतर सुविधाएं देने को तत्पर क्यों नहीं होती?
उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी के ऐलान पर हाल ही में प्रदर्शित मिर्जापुर वेब सिरीज को जोड़ना उचित नहीं है, घटिया
सोच है। मुंबई के गैंगवाद, गुंडागर्दी, आतंकवाद, नशा माफिया, भू-माफिया, आर्थिक अपराधों, महिला-शोषण पर
तो सैंकड़ों फिल्में बनी है। ज्यादातर उत्तर प्रदेश की अवस्था मिर्जापुर जैसी होने का आरोप लगाने वाले अधिकांश
उत्तर प्रदेश के विपक्षी राजनेता हैं, इस वेब सिरीज में दिखाया गयी आपराधिक सच्चाई एवं कानून व्यवस्था भले ही
उत्तर प्रदेश की हो, लेकिन वो उत्तर प्रदेश आज का उत्तर प्रदेश नहीं है, इस सच्चाई को स्वीकारना होगा। वैसे भी
फिल्में पूरे यथार्थ पर नहीं होती हैं। आलोचना स्वस्थ हो, तभी प्रभावी होती है। हमें आग्रह, पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह से
मुक्त होकर राष्ट्रीय जीवन की शुभता को समृद्धता प्रदान करने वाले नयी फिल्म सिटी निर्माण के उपक्रमों एवं
प्रयासों का स्वागत करना चाहिए।