पाकिस्तान की हो रही अंतरराष्ट्रीय बेइज्जती

asiakhabar.com | December 2, 2020 | 5:24 pm IST

विकास गुप्ता

इमरान खान और उनकी पूरी सरकार ने भरसक छाती पीटी दुनिया में भारत को बदनाम करने के लिए किंतु किसी
ने उसकी नहीं सुनी। पाकिस्तान से गुजर रहे अपने रोड प्रोजेक्ट के कारणों से चीन को उसका साथ देना पड़ा किंतु
उतना ही जितना एक बिलखते बच्चे को झुनझुना देकर चुप कराने की कोशिश की जाती है।अमेरिका कभी झुनझुना
देता हैं तो कभी डंडा दिखाता हैं। वे स्वयं भ्रमित हैं कि उन्हें करना क्या है? जब भारत का साथ देना था तो
इमरान को डांटकर बोल दिया कि विलाप बंद करो और अपने आंतकियों को लगाम दो और जब उन्हें
अफगानिस्तान में पाकिस्तान की मदद चाहिए तो मध्यस्थता का प्रस्ताव दे दिया। बस उस प्रस्ताव को लेकर
पाकिस्तान झुनझुना बजाने लगा।रूस और जापान के सामने हाथ फैलाना मतलब अपना सिर दीवार पर फोड़ना था
अत: पाकिस्तान ने रूस और जापान की तरफ तो देखा भी नहीं। फ्रांस के साथ उसने जरूर कोशिश की किंतु उलटे
फ्रांस ने तो संयुक्त राष्ट्र संघ की रक्षा समिति के बंद दरवाजा बैठक में पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया। फ्रांस
समेत सभी देशों ने तो उसका ऐसा बुरा हाल किया कि अब पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ में आवाज उठाने की
बातें करना भी बंद कर दीं।
भारत लगातार पाक प्रायोजित आतंकवाद का दंश झेल रहा है लेकिन पाकिस्तान को अब कश्मीर और आतंकवाद के
मोर्चे पर लगातार नाकामी मिल रही है। इस्लामी फोबिया के जरिए पाकिस्तान हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कश्मीर का
राग अलापने लगता है और हर बार उसे मुंह की खानी पड़ रही है।जिन देशों से उसकी गहरी मैत्री रही है, वह भी
अब उससे दूर खड़े नजर आते हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर
हाईलाइट करने की भरपूर कोशिशें कर रहे हैं। 57 मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी में इमरान के विदेश मंत्री
शाह महमूद कुरैशी ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के मुद्दे पर भारत को घेरने की कोशिश की लेकिन
संगठन ने इस मुद्दे को अपने एजैंडे में ही शामिल करने से इन्कार कर दिया।ओआईसी ने अपनी थीम आतंकवाद
के खिलाफ एकजुटता, शांति और विकास रखा था। संगठन ने स्पष्ट कर दिया कि विदेश मंत्रियों की बैठक में सिर्फ
मुस्लिम देशों के सामूहिक मुद्दों पर विचार किया जाएगा। ओआईसी में पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर चर्चा कराना
चाहता था लेकिन संगठन के सबसे ताकतवर देश सऊदी अरब ने वीटो लगा दिया।
कश्मीर मसले पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने ओआईसी की बैठक बुलाने की धमकी दी थी लेकिन यह
धमकी भी काम नहीं आई। दूसरे ही दिन पाकिस्तान को अपना स्टैंड वापस लेना पड़ा था।अब पाकिस्तान के सऊदी
अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य मुस्लिम देशों से संबंधों पर संकट छा गया है। सऊदी अरब ने पाकिस्तान
को तेल की आपूर्ति करने और ऋण देने से इन्कार कर दिया है। सऊदी अरब ने पाकिस्तान के लिए अपने खजाने
का मुंह एक तरह से बंद कर दिया है। संयुक्त अरब अमीरात भी पाकिस्तान को मुंह नहीं लगा रहा।
संयुक्त अरब अमीरात ने पाकिस्तान समेत 12 देशों के यात्रियों को वीजा देने पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है।
इन देशों में भारत का नाम नहीं है। संयुक्त अरब अमीरात के इस फैसले को भले ही पाकिस्तानी अधिकारी कोरोना
की दूसरी लहर से जोड़कर देख रहे हैं लेकिन राजनीति के जानकार इसे हाल के दिनों में दोनों देशों के तलख हुए

रिश्तों के नतीजों के तौर पर देख रहे हैं।जिन देशों के यात्रियों पर संयुक्त अरब अमीरात ने रोक लगाई है, लगभग
उन सभी देशों में किसी न किसी रूप में आतंकवाद मौजूद है। अफगानिस्तान के कंधार में 2017 में हुए बम
धमाके में संयुक्त अरब अमीरात के पांच कूटनीतिक अधिकारियों की मौत हो गई थी।
जब इस धमाके की जांच की गई तो पता चला कि इसमें हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी
आई.एस.आई. का हाथ था। पाकिस्तान अब तुर्की को ज्यादा प्राथमिकता दे रहा है। कश्मीर मुद्दे पर सऊदी अरब
का भारत को समर्थन या उम्मीद के मुताबिक पाकिस्तान के पक्ष में समर्थन नहीं करना बहुत कुछ कहता है। भारत
के संयुक्त अरब अमीरात से संबंध काफी अच्छे हैं।यही कारण है कि उसने पाकिस्तान के कश्मीर पर ब्लैक डे
मनाने के प्रस्ताव को भी अमीरात ने मानने से इन्कार कर दिया। यद्यपि ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक में
पारित प्रस्ताव में कश्मीर का जिक्र रस्म अदायगी भर है और यह भारत को हैरान कर देने वाला नहीं है।
भारत ने इस पर हमेशा की तरह कड़ा प्रोटैस्ट किया है। अलग-थलग पड़ते जा रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान
खान ने ओआईसी के समानांतर तुर्की, ईरान और मलेशिया को मिलाकर एक संगठन खड़ा करने की कोशिश की थी
लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली। अमेरिका ने पाकिस्तान से काफी दूरी बना ली है। आर्थिक संकट से घिरने
पर इमरान खान ने खाड़ी देशों से मदद की गुहार लगाई थी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मजबूरन पाकिस्तान को
चीन की गोद में बैठना पड़ा। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद पहली बार हो रहे जिला विकास
परिषद के चुनाव में जिस उत्साह के साथ मतदाताओं ने वोट डाले उसे देखकर भी पाकिस्तान का हैरान होना
स्वाभाविक है।


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