अंतरिक्ष कंसल
नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान, विशेष तौर पर पंजाब और हरियाणा के
किसान सड़कों पर उतर आए हैं। उन्हें आशंका है कि इन कानूनों के चलते उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य
(एमएसपी) खत्म हो जाएगा और कृषि उपज मंडियां खत्म होने से उनकी उपज का बाजार व्यापारियों के रहमो-करम
पर छोड़ दिया जाएगा। किसानों के दिल्ली कूच को लेकर राजनीतिक उठापटक जारी है। इस संबंध में पेश हैं केंद्र में
सत्तारूढ़ राजग के प्रमुख घटक दल जनता दल यूनाइटेड (जद-यू) के नेता के सी त्यागी से भाषा के पांच सवाल और
उनके जवाब… सवाल: किसानों के ‘दिल्ली कूच’ आंदोलन को आप किस तरह से देखते हैं? जवाब: विपक्षी दलों
द्वारा किसानों के बीच भ्रम पैदा किया जा रहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था समाप्त हो
जाएगी और किसानों को भारी नुकसान होगा, जबकि यह सच नहीं है। नए कृषि कानूनों में किसानों के लिए नए
मौके खुले हैं और तभी राजग के सहयोगी के तौर पर हमने इन कानूनों को पारित करने में सरकार का सहयोग
किया था। हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा का स्वागत करते हैं और हमें विश्वास है कि एमएसपी व्यवस्था
समाप्त नहीं की जाएगी। सवाल: किसानों की बहुत सी मांगें और शिकायतें हैं, आपका क्या कहना है? जवाब:
देखिए, सरकार की ओर से किसानों की स्थिति को बेहतर बनाने की तमाम पहल हो रही हैं। लेकिन यह भी सही है
कि अधिकतर बिक्री केन्द्रों पर सरकार की ओर से घोषित एमएसपी उचित रूप से किसानों को नहीं मिल पा रहा है
और इस बात को लेकर किसानों में गुस्सा है। जद-यू ने इन कानूनों में किसान हित की मंशा को देखते हुए इन्हें
पारित करने में सरकार की मदद की थी लेकिन किसानों की इस मांग को हमारे दल का समर्थन और सहानुभूति
प्राप्त है कि सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन प्रभावित नहीं होना चाहिए। एमएसपी किसानों को अनिवार्य रूप
में मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार को उपाय करना चाहिए। इस संबंध में सरकार यदि कोई नया कानून
बनाए या अध्यादेश लाए, तो हमारी पार्टी इसका समर्थन करेगी। सवाल: एमएसपी खत्म होने की किसानों की
आशंका कहां तक उचित है? जवाब- एमएसपी खत्म करने की बात सरकार की ओर से नहीं की गई है। इन कानूनों
के पारित होने के बाद अभी पूरे देश में धान, मक्का, सरसों जैसी फसलों की खरीद सरकार द्वारा घोषित एमएसपी
पर ही हुई है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा धान की रिकॉर्ड खरीद की गई है। इसलिए एमएसपी
समाप्त होने के संबंध में आशंकाएं एकदम गलत हैं। सवाल: किसानों के ‘दिल्ली कूच’ को जगह-जगह प्रशासन की
ओर से बल प्रयोग से रोका गया, लाठीचार्ज किया गया। क्या किसानों को अपनी मांग उठाने का लोकतांत्रिक
अधिकार नहीं होना चाहिए? जवाब: किसानों के साथ किसी भी तरह का बल प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। हम
इसके खिलाफ हैं। मेरा मानना है कि किसानों को अपने से जोड़ने का प्रयास होना चाहिए और उनकी समस्याओं पर
उनके साथ वार्ता की जानी चाहिए। बल प्रयोग की ‘भाषा’, पुरानी सरकारों की ‘भाषा’ रही है। मेरठ में महेन्द्र सिंह
टिकैत या महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन के शरद जोशी जैसे किसान नेताओं के साथ जिस तरह का व्यवहार होता
रहा, उसे सभी जानते हैं। हम राजग सरकार से ऐसी अपेक्षा नहीं करते। दिल्ली में सर्दी है, कोरोना वायरस का
प्रकोप भी है। किसान दिल्ली आ गए हैं और मेरा मानना है कि किसानों से वार्ता के लिए तीन दिसंबर का इंतजार
न कर, उनके साथ तत्काल वार्ता शुरू की जानी चाहिए। सवाल: कुछ ऐसे आरोप भी हैं कि आंदोलनकारी किसानों
के बीच कुछ खालिस्तान समर्थक भी हैं? जवाब: किसान देश या सरकार के दुश्मन नहीं हैं। कोविड-19 महामारी के
दौरान अकेला कृषि क्षेत्र ही फला-फूला है। प्रधानमंत्री के आह्वान पर पिछले छह महीनों से गरीब योजना के तहत
कई करोड़ लोगों को मुफ्त खाना दिया जा रहा है जिसे संभवत: आगे भी छह महीने तक और बढ़ाया जा सकता है।
यह धन कहां से आया? इन्हीं (किसानों) के पसीने की उपज है। हर आंदोलन में कुछ उपद्रवी तत्व रहते हैं जिनसे
किसानों को अलग रहने की आवश्यकता है ताकि आंदोलन के दौरान कोई हिंसक घटना न हो। किसानों को दुश्मन
नहीं समझा जाना चाहिए और इनके ठहरने, खाने-पीने के अलावा उनकी सहूलियत के जरूरी इंतजाम किए जाने
चाहिए।