विकास गुप्ता
अभी चंद दिनों की ही तो बात है जब हमारे "यशस्वी प्रधानमंत्री " बिहार में अपना लोकलुभावन चुनावी भाषण देते
हुए राज्य की महिलाओं से मुख़ातिब होकर कह रहे थे कि-' किसी मां को यह चिंता करने की ज़रुरत नहीं है कि
छठ पूजा को कैसे मनाएंगे. अरे मेरी मां – आपने अपने बेटे को दिल्ली में बैठाया है तो क्या वह छठ की चिंता नहीं
करेगा ? मां,तुम छठ की तैयारी करो. दिल्ली में तुम्हारा बेटा बैठा है'। हालाँकि उनका यह संबोधन मुफ़्त राशन
बाँटने के सन्दर्भ में था,परन्तु वास्तव में एक मां की मुफ़्त राशन मिलने से भी अधिक चिंता इस बात को लेकर
होती है कि किसी तरह त्यौहार में उसका लाडला बेटा अपने घर आकर अपने ही आँगन में त्यौहार मनाए। एक मां
त्यौहार के दिनों में भूखी रहकर भी अपने होनहार को अपनी नज़रों के सामने देखना चाहती हैं। ख़ासतौर पर बिहार
के छठ जैसे अतिमहत्वपूर्ण त्यौहार में, जिसे बिहारवासी दीपावली से भी अधिक महत्व देते हैं। अनेकानेक बिहारी
कामगार जो यदि किसी कारणवश दीपावली में अपने घर गांव नहीं भी पहुँच पाते वे छठ के दिनों में अपने परिवार
के बीच ज़रूर पहुँचने की कोशिश करते हैं।
ज़ाहिर है आम लोगों की इन्हीं आकांक्षाओं के मद्देनज़र यात्रियों की सुविधा हेतु सरकार त्योहारों व छुट्टियों के
दौरान विशेष रेल गाड़ियों का परिचालन करती है। इस बार भी सरकार द्वारा कोरोना काल जैसे महामारी के
संकटकालीन दौर में अनेक त्यौहारी विशेष रेलगाड़ियों को परिचालित करने की घोषणा की गयी। परन्तु प्रत्येक वर्ष
व इस वर्ष की त्यौहारी विशेष रेलगाड़ियों में अंतर यह था कि हमेशा तो त्यौहारी विशेष ट्रेन्स के किराये सामान्य
रेलगाड़ियों के किराए जितने ही होते थे जबकि इस वर्ष की त्यौहारी स्पेशल रेलगाड़ियों के किराये 20 से लेकर 35
प्रतिशत तक अधिक थे। त्योहारी ट्रेनों का निर्धारण भी कुछ इस तरह किया गया था गोया यात्रियों को मूर्ख बनाकर
मजबूरी में उनकी जेबों से ज़बरदस्ती पैसे झटके जा रहे हों। उदाहरण के तौर पर अमृतसर से बिहार के जयनगर
को जाने वाली सरयू यमुना एक्सप्रेस जिसका नंबर 14650 है,इसे आधिकारिक रूप से अनिश्चितकाल के लिए रद्द
किये जाने की घोषणा कर दी गई। पहले यह ट्रेन लंबे समय से कोविड महामारी में हुए लॉक डाउन के चलते रद्द
की गयी थी। जबकि इन दिनों पंजाब के किसान आंदोलन के चलते यह गाड़ी रद्द है। परन्तु इसका परिचालन
अंबाला-जयनगर के बीच इसी सरयू यमुना एक्सप्रेस के नाम से ही हो रहा है। पूर्व निर्धारित समय पर चलने व पूर्व
निर्धारित स्टॉपेज पर रुकने वाली इस ट्रेन के नंबर में मामूली सा फेर बदल कर इसका नंबर 14650 की जगह
04650 कर दिया गया है और इसे स्पेशल ट्रेन का नाम देकर यात्रियों से अतिरिक्त किराया भी वसूल किया जा
रहा है।
परन्तु यात्रियों के साथ होने वाले इस अन्याय व ज़्यादती के बावजूद भी बिहार व पूर्वांचल के हज़ारों लोगों का छठ
के अवसर पर अपने घर पहुँच पाने का सपना धराशाई होकर रह गया। 18 नवंबर (बुधवार ) को सायं 5 बजे
अंबाला छावनी से जयनगर को जाने वाली इसी 04650 विशेष ट्रेन के यात्रियों को एक दिन पहले यानी17 नवंबर
को रेलवे की तरफ़ से अचानक यह सन्देश भेजे गए कि 18/11 /2020 को जाने वाली यह ट्रेन अपरिहार्य कारणों
से रद्द कर दी गयी है। माना जा सकता है कि आम दिनों में तो इस सन्देश का उतना महत्व न भी हो, परन्तु
जब बिहार के सबसे महत्वपूर्ण समझे जाने वाले छठ जैसे त्यौहार का अवसर हो इतना ही नहीं बल्कि अपने
परिजनों की आस में कई पारिवारिक कार्यक्रम इसी लिए छठ तक स्थगित कर दिए जाते हैं कि छठ के अवसर पर
जब परिवार का रोज़ी रोटी कमाने वाला सदस्य घर गांव को आएगा तो उसके आगमन पर ही अमुक शुभ कार्य
अंजाम दिया जाएगा। ज़रा सोचिये ऐसे में जब ट्रेन रद्द होने का समाचार उस व्यक्ति को मिलता होगा जिसने
छुट्टी भी ले रखी हो और सामान भी ख़रीदे हों व पैक कर रखे हों,ट्रेन रद्द होने के समाचार से उसपर आख़िर
कैसा वज्रपात होता होगा?
बात यहीं ख़त्म नहीं होती। अब अगर ट्रेन स्थगित होने के बावजूद भी कोई जाना चाहे तो उसे बस यात्रा का सहारा
लेना पड़ता है। और इस मार्ग पर त्यौहार के दिनों चलने वाली बसों में किराये भी दो तीन गुने वसूल किये जाते हैं।
यदि सवारियां ज़्यादा हों तो बस मिलने की भी कोई गारंटी नहीं। यदि सामान ज़्यादा हो तो उनके सवारी जैसे ही
पैसे अतिरिक्त वसूल किये जाते हैं। अंबाला-पानीपत-करनाल व सोनीपत आदि की 04650 की सवारियों को बस
पकड़ने के लिए दिल्ली जाना पड़ेगा। इतने सामन के साथ दिल्ली पहुंचना और बस स्टॉप तक पहुंचना भी अपने
आप में किसी बड़े मोर्चे से कम नहीं कम नहीं। एक युवक व जेब में पर्याप्त पैसे रखने वाला तो किसी तरह इन
परिस्थितियों का सामना कर भी लेगा। परन्तु यदि कोई वृद्ध व्यक्ति है,सामन भी ज़्यादा है,या पैसों की कमी है
फिर तो उसकी क़िस्मत में छठ पर आंसू बहाने के सिवा और कोई चारा नहीं।
कहाँ तो रेल मंत्रालय द्वारा अपनी लोकलुभावन घोषणाओं में यह घोषणा की गयी थी कि यात्रियों की सुविधा के
लिए प्रतीक्षा सूची लंबी होने की स्थिति में क्लोन ट्रेन्स चलाई जाएंगी और कहाँ वास्तविक ट्रेन चलानी भी बंद कर
दी गयी? सरकार इस मुग़ालते में है कि जनता को उसका समर्थन उसकी जन विरोधी नीतियों के बावजूद मिल रहा
है। सरकार ने रेल का निजीकरण करने की दिशा में जो क़दम उठाए, साथ ही वरिष्ठ नागरिकों को किराए में
मिलने वाली छूट को भी समाप्त कर दिया,इसी से साफ ज़ाहिर है कि यह सरकार कॉर्पोरेट घरानों की हमदर्द तथा
आम लोगों के लिए अहितकारी निर्णय लेने वाली सरकार है। छठ के अवसर पर बिहार की ट्रेनों के रद्द बड़ा
वज्रपात पूर्वांचल के लोगों व बिहारियों पर आख़िर और क्या हो सकता है?