अर्पित गुप्ता
बिहार, मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों में चुनाव परिणाम आने के साथ ही ईवीएम पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब ईवीएम पर सवाल उठाए गए हों, ऐसा हर चुनाव के बाद होता हैै। मगर इस
बार ऐसा पहली बार हुआ है, जब चुनाव आयोग को बीच मतगणना में यह कहना पड़ा हो कि ईवीएम में कोई
गड़बड़ी नहीं हुई है। पूरी चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी है और सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए। मंगलवार को मतगणना
शुरू होने के बाद सबसे पहले मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने सवाल उठाए। फिर उदित राज और देखते-
देखते बिहार से एक के बाद एक नेता ने ईवीएम का रोना शुरू कर दिया। आधे-अधूरे तथ्यों और अफवाहों के आधार
पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को संदिग्ध बताने के इस अभियान पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कुछ राजनीतिक
दलों और ईवीएम के बैरी बन बैठे लोगों का यह पुराना शगल है। कभी-कभी तो लगता है कि कुछ लोगों ने ईवीएम
को बदनाम करने का ठेका ले रखा है और शायद यही कारण है कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से भी संतुष्ट नहीं
होते। समस्या केवल यह नहीं है कि समय-समय पर कुछ राजनीतिक दल ईवीएम के खिलाफ शिकायतें लेकर
सामने आ जाते हैं। समस्या यह भी है कि अफवाह आधारित इन शिकायतों को मीडिया का एक हिस्सा हवा देता
है। इसी कारण रह-रहकर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि ईवीएम का कोई भी बटन दबाने पर वोट किसी एक ही दल
को जाता दिखा। कई बार ईवीएम में खराबी को इस रूप में पेश किया जाता है कि उसमें छेड़छाड़ संभव है। दुनिया
की कोई भी मशीन खराब हो सकती है और मतदान के दौरान ईवीएम में खराबी आने की समस्या का समाधान
खोजने की जरूरत है, लेकिन इस जरूरत पर बल देने के बहाने मतपत्र से चुनाव कराने की मांग वैसी ही है, जैसे
ट्रेन दुर्घटना के बाद कोई बैलगाड़ी से यात्रा को आवश्यक बताए। आज भाजपा की जीत पर विपक्ष जिस तरह
ईवीएम का रोना रो रहा है, क्या वह किसी और प्रक्रिया से चुनाव जीतता है। विपक्ष ने कई राज्यों में भाजपा से
सत्ता हासिल की। तब भी चुनाव ईवीएम से कराए गए थे। आज जो लोग ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं, वे भी
ईवीएम के जरिए हुए मतदान से ही सांसद या विधायक बने हैं। तब क्या ईवीएम सही थी और अब गलत। परिणाम
स्वीकार करने के बजाए ईवीएम को दोष देने से पूरी प्रक्रिया सवालों के घेरे में आएगी। जनता का लोकतंत्र से
भरोसा उठ सकता है। यह राजनीतिक दल क्यों नहीं समझते। चुनाव में हार के बाद राजनीतिक दलों को अपने
प्रदर्शन की समीक्षा करनी चाहिए और सुधार कर आगे बढऩा चाहिए। इस तरह ईवीएम पर संदेह करने का मतलब
जनादेश का अपमान करना भी है। हर बार नेता यही करेंगे तो फिर जनता उन्हें खारिज करने लगेगी और उनके
वादों को गंभीरता से नहीं लेगी।
यह पहली बार नहीं जब विपक्षी दलों की ओर से ईवीएम को संदिग्ध बताने का अभियान छेड़ा गया हो। बीते तीन-
चार सालों से देश में यही हो रहा है और इसके बावजूद हो रहा है कि इस दौरान इन्हीं दलों ने पंजाब, केरल के
साथ-साथ मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में जीत हासिल की है। इन राज्यों में चुनाव जीतने के
पहले दिल्ली एवं बिहार के नतीजे भी ईवीएम से ही निकले थे और कई लोकसभा एवं विधानसभा सीटों के
उपचुनावों के भी।
विपक्षी दलों की ओर से ईवीएम पर संदेह जताने के साथ ही निर्वाचन आयोग पर जिस तरह हमले किए जा रहे हैं,
वह उनकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा जान पड़ता है। गौरतलब है कि ये वही दल हैं, जो देश में संस्थाओं के
क्षरण का भी रोना रो रहे हैं। बेहतर होगा वे यह देखें कि वास्तव में निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा से कौन खेल रहा
है?