विधानसभा चुनाव : माय समीकरण में उलझे साहेबपुर कमाल से आसान नहीं है पटना की राह

asiakhabar.com | October 29, 2020 | 4:56 pm IST

संजय चौधरी

बेगूसराय। गंगा और बूढ़ी गंडक नदी के बीच बसा तथा बेगूसराय में जनसंघ को पहली बार
विजय दिलाने वाला साहेबपुर कमाल विधानसभा क्षेत्र इस बार फिर सुर्खियों में है। माय (मुस्लिम+यादव) समीकरण
के इस गढ़ को ध्वस्त करने के लिए एनडीए ने तीर देकर अमर कुमार को लालटेन बुझाने की जिम्मेवारी दी है।
जदयू को जीतने नहीं देने और राजद विधायक श्रीनारायण यादव के पुत्र सतानंद संबुद्ध उर्फ ललन यादव को हराने
के लिए लोजपा ने सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र विवेक को मैदान में उतार दिया है जिसके कारण मुकाबला काफी
दिलचस्प और त्रिकोणीय हो गया है। 1977 में जनसंघ के चंद्रचूड़ देव, 2005 में जदयू के जमशेद असरफ और
2010 में जदयू के प्रवीण अमानुल्लाह को छोड़कर इस विधानसभा सीट पर लगातार राजद के श्रीनारायण यादव
का कब्जा रहा है। जातीय समीकरण के हिसाब से देखें तो यहां यादव वोटर सबसे अधिक हैं, उसके बाद मुस्लिम,
फिर धानुक और कुर्मी, पंचपौनिया मतदाताओं को भी नकारा नहीं जा सकता है। सवर्ण मतदाताओं की कुल संख्या
भी करीब 35 हजार है। इसके कारण यह सीट राजद के माय (मुस्लिम+यादव) के मुफीद बैठता है। इसी समीकरण
के कारण इस सीट पर दो बार को छोड़ हमेशा श्रीनारायण यादव का कब्जा रहा है। 2005 और 2010 के चुनाव
में माय समीकरण के दरकने का कारण मुस्लिम उम्मीदवार का होना था, जिनके साथ यादव को छोड़ अन्य
मतदाता शिफ्ट कर गए थे। पिछले चुनाव में जीतने के बाद जब श्रीनारायण यादव अस्वस्थ हुए तो उनके प्रतिनिधि
के रूप में ललन यादव की सक्रियता बढ़ गई। कुर्मी जाति के अमर कुमार चुनाव से पहले भाजपा में सक्रिय थे।
लेकिन जब यह सीट जदयू में चला गया तो भाजपा नेता अमर कुमार जदयू में शामिल होकर मैदान में हैं। अमर
कुमार का इतिहास भी जदयू का ही रहा है। जदयू से भाजपा में आकर 2014 में उम्मीदवार बने फिर भाजपा से
जदयू में जाकर इस साल उम्मीदवार हैं। भूमिहार समुदाय के सुरेन्द्र विवेक पिछले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय
उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे, लेकिन चुनाव के बाद लोजपा में शामिल हो गए और तब से बतौर लोजपा नेता
और सामाजिक कार्यकर्ता क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे हैं। राजनीति और समाज नीति पर लगातार चर्चा करने वाले
डॉ. अभिषेक कुमार कहते हैं कि इस चुनाव में मुस्लिम और यादव मतदाता राजद उम्मीदवार ललन यादव के पक्ष
में जाते दिख रहे हैं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भले ही गोरेलाल यादव को अपना उम्मीदवार
बनाया है, लेकिन उनका जादू चलेगा यह कहना मुश्किल है। यादव मतदाता लालू यादव और तेजस्वी में जातीय
अस्मिता देखते हैं तो मुस्लिम मतदाता धारा 370, सीएए एवं एनआरसी और राममंदिर के छद्मदंश से अभी तक
उबरते नहीं दिख रहे। तेजस्वी की परिपक्वता और शिक्षकों के प्रति नीतीश कुमार की निष्ठुरता भी इस चुनाव में
स्पष्ट महसूस की जा सकती है। एनडीए गठबंधन रहने के बाद भी अमर कुमार के समर्थन में सवर्णों का आंशिक
भाग ही वोकल हो रहा है। कारण बना सुरेन्द्र विवेक की उम्मीदवारी। सुरेन्द्र विवेक के साथ सभी वर्ग पार्टी की
राजनीति से ऊपर उठकर वोकल हैं। उन्हें विभिन्न वैसे व्यक्तियों का भी समर्थन मिल रहा है जिनकी व्यक्तिगत
स्तर पर मदद की है। फिलहाल चाहे महागठबंधन के घटक दल हों या एनडीए के, इन दलों के नेताओं के अंदर
दलगत निष्ठा पर जातीय निष्ठा हावी होती महसूस हो रही है।चुनावी रेस के ट्रैक पर सभी उम्मीदवार अभी
फिनिशिंग लाइन से काफी दूर हैं और किस उम्मीदवार का दम फूलेगा, कौन अपनी सारी ताकत को सहेजकर
फिनिशिंग लाइन को छुएगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।


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