दिल्ली की कम होती सांसे?

asiakhabar.com | October 29, 2020 | 4:31 pm IST

सुरेंदर कुमार चोपड़ा

फसलों का अवशिष्ट यानी पराली अब सियासत का मसला बन गया है। केंद्र और राज्य सरकारें समाधान खोजने के
बजाय इस पर राजनीति करती हैं। राज्य सरकारें केंद्र पर तो केंद्र राज्यों पर दोषारोपण करतीं हैं। लेकिन समस्या
का समाधान नहीँ निकालता। नवम्बर में ठंड जैसे ही दस्तक देती है दिल्ली में स्मोग यानी धुंवा और धुंध आसमान
पर छा जाता है। हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। आम जीवन अस्त- व्यस्त हो जाता है। इस बार तो कोरोना

का संक्रमण चल रहा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी भी दिया है कि अगर दिल्ली में वायु प्रदूषण पर रोक नहीँ लगी तो
कोरोना संक्रमण का खतरा और अधिक बढ़ सकता है। यह सभी के लिए चिंता का विषय है। सरकारें पराली के लिए
सिर्फ किसानों को जिम्मेदार ठहरा कर अपने दायित्व से नहीँ बच सकती हैं। उसके लिए वैकल्पिक समाधान खोजना
होगा।
दिल्ली की आबोहवा दमघोंटू हो चुकी है। सांस लेना भी मुश्किल हो चला है। सुप्रीम कोर्ट पराली को लेकर
बार-बार सरकारों और प्रशासन को चेतावनी दे रहा है। दिल्ली में ऑड-ईवन का फार्मूला भी लागू किया जाता है।
लेकिन फिर भी सांसों पर संकट है। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 24 घंटे में 20 से 25 सिगरेट से जितना जहरीला
धुआं निकला है उतना एक नवजात निगल रहा है। जरा सोचिए, हमने दिल्ली को किस स्थिति में लाकर खड़ा कर
दिया है। दुनिया के प्रदूषित शहरों में दिल्ली-एनसीआर अव्वल है। भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन हो रहा है। हम
पराली पर सवाल उठा रहे हैं और किसानों को सुविधाएं देने की बजाय सारा दोष किसानों पर मढ़ रहे हैं।
दिल्ली में तकरीबन 60 लाख से अधिक दोपहिया वाहन पंजीकृत हैं। प्रदूषण में इनकी भागीदारी 30 फीसदी है।
कारों से 20 फीसदी प्रदूषण फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 13 भारतीय शहरों
को रखा है, जिसमें दिल्ली चार प्रमुख शहरों में शामिल है। दिल्ली में 85 लाख से अधिक गाड़ियां हर रोज सड़कों
पर दौड़ती हैं। इसमें 1400 से अधिक नई कारें शामिल होती हैं। इसके अलावा दिल्ली में निर्माण कार्यों और इंडस्ट्री
से भी भारी प्रदूषण फैल रहा है। दिल्ली में आबादी का आंकड़ा एक करोड़ 60 लाख से अधिक हो चला है। ऐसे में
दिल्ली में वैकल्पिक ऊर्जा का उपयोग अधिक बढ़ाना होगा। शहर में स्थापित प्रदूषण फैलाने वाले प्लांटों के लिए
ठोस नीति बनानी होगी। दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स बहुत खतरनाक
स्तर तक पहुंच जाता है। इस साल तो कोरोना की वजह से स्कूलों को बंद कर दिया गया है। जब वायु प्रदूषण
अधिक बढ़ जाता है तो दिल्ली के अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है।
दिल्ली में कुछ वर्ष पूर्व वाहनों से प्रतिदिन 649 टन कार्बन मोनोऑक्साइड और 290 टन हाइड्रोकार्बन निकलता था,
जबकि 926 टन नाइट्रोजन और 6.16 टन से अधिक सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा थी। जिसमें 10 टन धूल
शामिल है। इस तरह प्रतिदिन तकरीबन 1050 टन प्रदूषण फैल रहा था। आज उसकी भयावहता समझ में आ रही
है। उस दौरान देश के दूसरे महानगरों की स्थिति मुंबई में 650, बेंगलुरू में 304, कोलकाता में करीब 300,
अहमदाबाद में 290, पुणे में 340, चेन्नई में 227 और हैदराबाद में 200 टन से अधिक प्रदूषण की मात्रा थी।
दुनियाभर में 30 करोड़ से अधिक बच्चे वायु प्रदूषण से प्रभावित हैं। 2017 में बढ़ते प्रदूषण की वजह से 12 लाख
लोगों की मौत हुई थी। आज की स्थिति और भी भयावह है। सरकारों और संबंधित एजेंसियों का दावा है कि
किसानों द्वारा पराली जलाए जाने से स्थिति गंभीर हुई है। पराली हजारों सालों से जल रही है, फिर इतना कोहराम
क्यों नहीं मचा।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार के साथ पंजाब, हरियाणा की भी सरकारें इस पर काम कर रहीं है। दिल्ली सरकार
पूसा के एक शोध पर केमिकल का छिड़काव कर पराली से खाद बनाने पर विचार कर रहीं है। सबसे उम्मीद भरी
ख़बर करनाल से आई है जहाँ पराली से सीएनजी गैस बनाने का काम शुरू हुआ है। उसके बदले में किसानों को
पैसा भी दिया जा रहा है। पंजाब में पराली से कोयला बनाया जा रहा है। केजरीवाल ने ख़ुद कहा है कि वहां सात
फैक्ट्रियां चल रहीं हैं। यह अच्छी और सुखद ख़बर है। किसान इससे संवृद्ध होगा और उसकी आय बढ़ेगी। उत्तर
प्रदेश सरकार को भी इस तरह के विकल्पों पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए।
पराली सिर्फ़ दिल्ली की नहीँ पूरे उत्तर भारत की समस्या है। जिसमें दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और पश्चमी उत्तर
प्रदेश शामिल हैं। केंद्र और राज्य सरकारों की यह नैतिक जवाबदेही बनती है कि वह पराली समस्या पर मिलकर

काम करें। किसानों को पराली नष्ट करने के लिए आधुनिक कृषियंत्र और सुविधाएं बेहद कम दाम या मुफ़्त में
उपलब्ध कराएं जाएं। इसके अलावा खेती में अधिक से अधिक मशीनों के बजाय मजदूरों का उपयोग किया जाय।
क्योंकि पराली की समस्या अभी पूर्वी उत्तर प्रदेश में नहीँ है। फसल कटाई की यह विधि पंजाब, हरियाणा और
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी अपनाई जानी चाहिए। केंद्र सरकार को इस विषय में गम्भीर पहल करनी चाहिए। दूसरों
राज्यों में इस तरह की समस्या नहीँ है उस पर भी शोध होने चाहिए। सरकार को अतिरिक्त फंड उपलब्ध करना
चाहिए। क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है जब उसकी सेहत गड़बड़ रहेगी तो फ़िर दिक्कत होगी।


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