संयोग गुप्ता
निःसंदेह कोविड-19 की चुनौतियों के बीच इस समय जब देश की अर्थव्यवस्था में सुधार का परिदृश्य दिखाई दे रहा
है, तब अर्थव्यवस्था को नई मांग और नए निवेश की ताकत से गतिशील करने के लिए एक और आर्थिक पैकेज
आवश्यक दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर शक्तिकांत दास ने 21 अक्तूबर को कहा
है कि देश की अर्थव्यवस्था में नई मांग के निर्माण हेतु रिजर्व बैंक ने मौद्रिक विस्तार की नीति अपनाई हुई है।
इसी तरह 19 अक्तूबर को केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ावा देने के
लिए एक और आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज लाने का विकल्प खुला हुआ है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि सरकार के
द्वारा एक के बाद एक रणनीतिक कदम उठाकर मांग बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। पिछले दिनों 12 अक्तूबर
को केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पूंजीगत व्यय और त्योहारों के दौरान उपभोक्ता मांग बढ़ाने के मकसद से
जिन दो तरह के प्रोत्साहन पैकेज का ऐलान किया है, उनसे चालू वित्त वर्ष 2020-21 के अंत तक करीब
73000 करोड़ रुपए की मांग पैदा हो सकती है।
अगर निजी क्षेत्र ने भी अपने कर्मचारियों को राहत दी तो इकोनॉमी में कुल मांग एक लाख करोड़ रुपए के पार हो
सकती है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार कैश वाउचर्स और फेस्टिवल एडवांस स्कीम के तहत अर्थव्यवस्था में तेजी
लाने के लिए अपने प्रत्येक कर्मचारी को 10 हजार रुपए एडवांस में देगी। इसके अलावा सरकार 12 फीसदी या
इससे ज्यादा जीएसटी वाले सामान खरीदने के लिए अपने कर्मचारियों को एलटीसी टिकट फेयर के बदले कैश देगी।
इस पर केंद्र सरकार 5675 करोड़ रुपए खर्च करेगी। इसके अलावा इस मद में 1900 करोड़ रुपए पीएसयू और
बैंक खर्च करेंगे। इससे अर्थव्यवस्था में 19 हजार करोड़ रुपए आएंगे। यदि राज्य भी इसी दिशा में कदम उठाते हैं
तो बाजार में नौ हजार करोड़ रुपए और अतिरिक्त आएंगे। इसके साथ ही पूंजीगत व्यय में सीमित वृद्घि और
परियोजना के वित्तपोषण के लिए राज्यों को आंशिक तौर पर ब्याज मुक्त कर्ज देने की घोषणा की गई है। सरकार
सड़क, रक्षा, बुनियादी ढांचा, जलापूर्ति, शहरी विकास पर मार्च 2021 तक 25000 करोड़ रुपए पूंजीगत व्यय
करेगी। यह राशि बजट में निर्धारित 4.13 लाख करोड़ रुपए पूंजीगत व्यय के अतिरिक्त होगी। इसके अलावा
सरकार राज्यों को 50 साल के लिए पूंजीगत व्यय के मद्देनजर 12000 करोड़ रुपए ब्याजमुक्त कर्ज देगी।
गौरतलब है कि सरकार की ओर से जून 2020 के बाद अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोलने की रणनीति के साथ
राजकोषीय और नीतिगत कदमों का अर्थव्यवस्था पर अनुकूल असर पड़ा है। सरकार के द्वारा 12 अक्तूबर को
प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है कि जहां अगस्त 2020 में औद्योगिक उत्पादन में संकुचन आठ फीसदी ही रहा
है, जो कि जुलाई 2020 के 10.4 फीसदी और जून 2020 के 15.7 फीसदी संकुचन से बहुत कुछ बेहतर
स्थिति में है। ऐसे में उपभोक्ता मांग एवं निवेश गतिविधि को प्रोत्साहित करके अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकी जा
सकती है। ज्ञातव्य है कि देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की तस्वीर बताने वाले पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई)
ने उम्मीद की किरणें प्रस्तुत की हैं। सितंबर 2020 में पीएमआई साढ़े आठ साल के उच्च स्तर 56.8 पर पहुंच
गया, जो अगस्त में 52 पर था। 50 से कम पीएमआई मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के संकुचन की स्थिति बताता है
और इससे ऊपर का पीएमआई मैन्युफैक्चरिंग विस्तार की प्रवृत्ति को दिखाता है। इसी तरह सितंबर 2020 में
प्रस्तुत भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के कारोबारी विश्वास सूचकांक (बीसीआई) से पता चलता है कि
आर्थिक गतिविधियां सामान्य की ओर बढ़ने से कारोबारी धारणा में सुधार हुआ है।
स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि लॉकडाउन के छह माह के बाद देश का ऑटोमोबाइल सेक्टर, बिजली सेक्टर, रेलवे माल
ढुलाई सेक्टर सुधार के संकेत दे रहा है। दूरसंचार, ई-कॉमर्स, आईटी और फार्मास्युटिकल्स जैसे क्षेत्रों में मांग बढ़ने
लगी है। निर्यात बढ़ने की प्रवृत्ति के साथ-साथ शेयर बाजार भी अच्छी बढ़त दर्ज कर रहा है। वस्तु एवं सेवा कर
(जीएसटी) संग्रह में लगातार छह महीने गिरावट के बाद सितंबर 2020 में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। जीएसटी संग्रह
सितंबर में 95480 करोड़ रुपए रहा, जो कि अगस्त में 86449 करोड़ रुपए रहा था। लेकिन आर्थिक बहाली की
राह लंबी बनी हुई है। कोरोना वायरस अभी भी सुधार की राह में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। ऐसे में कोविड-19
की चुनौतियों के बीच देश की जीडीपी बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए नई मांग के निर्माण,
उपभोग बढ़ाने, रोजगार बढ़ाने तथा कारोबार व वित्तीय प्रोत्साहन के नए रणनीतिक कदम जरूरी दिखाई दे रहे हैं।
सरकार के द्वारा नई मांग के निर्माण के लिए उन क्षेत्रों पर व्यय बढ़ाना होगा जो निवेश और वृद्धि को तत्काल
गतिशील कर सकें। आम आदमी की क्रयशक्ति बढ़ाने के साथ-साथ कोविड-19 के कारण खोए हुए रोजगार अवसरों
को लौटाया जाना जरूरी है। इस समय कोविड-19 की वजह से पैदा हुए रोजगार संकट को दूर करने के लिए
सरकार के द्वारा बड़े स्तर पर रोजगार पैदा कर सकने वाली परियोजनाओं के बारे में नए सिरे से सोचने की जरूरत
है।
निश्चित रूप से देश में मनरेगा की तर्ज पर शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम लागू करने की जरूरत है। यहां यह
उल्लेखनीय है कि मनरेगा पर चालू वित्त वर्ष 2020-21 के अप्रैल से अगस्त तक के पिछले पांच महीनों में कुल
आबंटित रकम 101500 करोड़ रुपए का करीब 60 फीसदी खर्च हो चुका है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इसका लाभ
भी दिखाई दे रहा है। ऐसे में चालू वित्त वर्ष के सात महीनों के लिए मनरेगा के लिए अतिरिक्त धनराशि के आबंटन
से रोजगार अवसर के साथ-साथ जीडीपी भी बढ़ते हुए दिखाई देगी। यद्यपि सरकार ने एमएसएमई की इकाइयों के
लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत बैंकों के जरिए बगैर किसी जमानत के आसान ऋण सहित कई राहतों
का पैकेज घोषित किया है, लेकिन अधिकांश बैंक ऋण डूबने की आशंका के मद्देनजर ऋण देने में उत्साह नहीं
दिखा रहे है। चूंकि देश में कार्यरत एमएसएमई में से अधिकांश सूक्ष्म श्रेणी में हैं और उनमें से अधिकांश
औपचारिक बैंकिंग व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, अतएव उन्हें सरकारी राहतों के मिलने में कठिनाई आ रही है। ऐसे
में शीघ्रतापूर्वक ऐसी व्यवस्था बनाई जानी होगी जिससे सूक्ष्म औद्योगिक इकाइयों सहित सभी एमएसएमई को
वित्तीय समर्थन मिल सके। चूंकि इस समय घरेलू मांग कमजोर बनी हुई है, इसलिए देश में विकास को गति देने
के लिए निर्यात बढ़ाने पर जोर देना होगा। आर्थिक सुधारों के तहत स्वास्थ्य, श्रम, भूमि, कौशल और वित्तीय क्षेत्रों
में घोषित किए गए सुधारों को आगे बढ़ाना होगा।