विनय गुप्ता
दुनिया को संकट में डालने वाला चीन इस समय खाद्य संकट से गुजर रहा है। पिछले कुछ समय से चीन तमाम
देशों से खाद्यान्न सौदे रद्द कर रहा है, जिसमें अधिकतर सौदों में कई देशों से आदान-प्रदान दोनों तरह का करार
है। पूर्ण रूप से कानूनी एग्रीमेंट के बावजूद वह कोई सौदा लेने व देने को तैयार नहीं हो रहा है जिस वजह से चीन
में नये तरह का संकट पैदा हो गया है। चीन की जनता में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रति अविश्वास पैदा होने लगा
है।
पूरी दुनिया को परेशान करने वाले इस नेता से उसके देश की जनता भी त्रस्त नजर आ रही है। आंकड़ों के अनुसार
लगातार बढ़ रही खाद्य पदार्थ की जरूरत करीब चौदह प्रतिशत बढ़ी है, जिसे पूरा करने में चीन सरकार विफल
दिखती नजर आ रही है। कुछ खाद्य पदार्थों को लेकर चीन पूर्ण रूप से आयात पर निर्भर है।इसमें अनाज व मीट
मुख्य रूप से शामिल है। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार चीन में सबसे ज्यादा खपत वाला मांस, पोर्क है और
इसमें लगभग नब्बे प्रतिशत की वृद्धि आई है यानि दो गुना बढ़ गया। इसे पूरा करना चीन को भारी पड़ रहा है।
आयात करना मजबूरी है लेकिन जिस तरह चीन करार तोड़ रहा है, उससे बड़ा संकट पैदा हो रहा है।
दरअसल मामला यह है कि जिन देशों से आयात व निर्यात दोनों होते हैं उनसे करार तोड़ना किसी भी देश को भारी
पड़ता है चूंकि आप कोई भी खाद्य पदार्थ या वस्तु लेते हैं तभी देते हैं। जब बात खाद्य पदार्थ से जुड़ी हो तो
परेशानी बहुत बढ़ जाती है। कपडा, क्रॉकरी, जूते या अन्य किसी भी वस्तु का आयात-निर्यात इतना प्रभावित नहीं
करता लेकिन खाने-पीने की चीजों से अचानक परेशानी आ जाती है। चीन दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला
देश है और इतनी बड़ी तादाद में जनता को संभालना बेहद चुनौतीपूर्ण है। इसलिए जिनसे खाद्य पदार्थ का आयात
है चीन केवल उनसे ही अपना करार पूरे करने का प्रयास कर रहा है। उसकी कार्यशैली में बेईमानी देख ऐसे देश भी
दूरी बना रहे हैं।
यदि अनाज के मामले में देखा जाए तो कोरोना संकट की वजह से चीन की स्वयं की क्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ा
है जिससे करीब तेईस प्रतिशत की वृद्धि हुई व आज की स्थिति में कुल आयात 75 मिलियन टन पहुंच गया।
पिछले कुछ वर्षों में चीन सोयाबीन किंग रहा है, पूरी दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक माना जाता है लेकिन आज
स्थिति है यह है कि अपने सबसे बड़े दुश्मन यूएस से सोयाबीन मांग रहा है। हालात व परिस्थितियों को देखकर
यूएस इस तरह का कोई करार करने के मूड में नहीं दिख रहा चूंकि पहले जिन चीजों का पहले से ही करार है वही
आपस में पूरे नहीं हो रहे।
कम उत्पादन के अलावा यांग्त्ज़ी बेसिन में बाढ़ भी चीन के लिए बहुत बड़ा संकट साबित हो रही है। बाढ़ में कई
हजार एकड़ फसलें बेकार हो गई। चीनी मीडिया के अनुसार लगभग 55 मिलियन लोगों की जिंदगी पर इसका
असर पड़ा है और इक्कीस बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है। चीन में भी टिड्डी दल ने बड़े स्तर पर
नुकसान पहुंचाया व स्वाइन फ्लू बुखार भी कृषि को क्षति पहुंचा रहा है। हालांकि इसके लिए आबादी वाले इलाकों में
सुअरों को मारा जा रहा है लेकिन इसके विपरीत इस वजह से मांस की कमी आ रही है।
अन्य देशों की अपेक्षा चीन में संकट इसलिए ज्यादा है क्योंकि पिछले चार वर्षों से यहां खेती योग्य जमीन का
घटना लगातार जारी है। चीन के प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार चार वर्षों में 1 लाख 60 हजार
हेक्टेयर भूमि बंजर हो गई। इस घटना को लेकर चीन कंबोडिया, जिम्मेबावे, लांस के अलावा लगभग अन्य
दर्जनभर देशों से उपजाऊ भूमि को खरीदना व पट्टे पर लेना शुरू कर दिया। इसके लिए चीन अलग बजट बनाते
हुए करीब सौ बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करेगा। जैसा पाकिस्तान भी आर्थिक संकट से जूझ रहा है लेकिन चीन
से हमेशा किसी न किसी सहयोग व एहसान तले रहता है जिस वजह से पाकिस्तान के साथ कृषि सहयोग समझौता
किया है। चीन पहले से ही ‘प्रदर्शन परियोजना’ के चलते पाकिस्तान में कई हजार एकड़ भूमि पर अपना कब्जा कर
चुका है।
बहरहाल, दुनिया को आंखें दिखाने वाले या यूं कहें कि अपने को सुप्रीम शक्ति मानने वाले अमेरिका व चीन जैसे
देशों की हालत आज क्या हो गई है यह सबके सामने है। चीन पर तो मानव जीवन की सबसे पहली व बुनियादी
जरूरत, खाद्यान्न पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यह समय का पहिया है कि चीन उन देशों से सहयोग मांग
रहा है जिसका वह कोई वजूद नहीं समझता था।