लाखों घरेलू नौकरों को कानूनी दर्जा और न्यूनतम मजदूरी दिलाएगी सरकार

asiakhabar.com | October 17, 2017 | 3:30 pm IST

नई दिल्ली। श्रम और रोजगार मंत्रालय देश में घरेलू कामगारों को कानूनी स्थिति मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय नीति तैयार करने जा रही है। इससे भारत में करीब 30 लाख महिलाओं सहित 47.5 लाख घरेलू श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी और समान वेतन की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकेगी।

मंत्रालय ने इस नीति पर जनता से सुझाव मांगे गए हैं। मंत्रालय की ओर से जारी किए गए एक नोटिस में कहा गया है कि इस नीति का मकसद घरेलू श्रमिकों को उनके अधिकारों को प्रदान करने के लिए कानूनों, नीतियों और योजनाओं के दायरे को स्पष्ट रूप से और प्रभावशाली रूप से विस्तारित करना है, जो अन्य श्रमिकों के लिए कानूनों में निहित हैं।

नोटिस के मुताबिक, एक राष्ट्रीय नीति में घरेलू नौकरों को ‘श्रमिकों’ के रूप में मान्यता दी जाएगी। इसके तहत उन्हें राज्य श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन करने का अधिकार होगा। श्रम और रोजगार मंत्रालय घरेलू श्रमिकों के लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार करने पर विचार कर रहा है, जिसके तहत अंशकालिक, पूर्णकालिक और लिव-इन श्रमिक, नियोक्ता, निजी प्लेसमेंट एजेंसियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाएगा।

सामाजिक सुरक्षा कवर, रोजगार के उचित तरीके, शिकायत निवारण और घरेलू कामगारों के लिए विवाद समाधान प्रदान करने के लिए एक संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाएगा। इसके अलावा, इस नीति से किसी भी नौकर को उत्पीड़न से बचने के लिए भर्ती और प्लेसमेंट एजेंसियों को रेगुलेट करने की कोशिश की जाएगी।

प्लेसमेंट एजेंसियां ​​घरेलू श्रमिकों के वेतन से हर महीने एक निश्चित अनुपात में चार्ज लेती हैं। इसके अलावा वे नियोक्ताओं से वन टाइम फीस भी लेती हैं, जो कई बार घरेलू नौकरों के एक महीने के वेतन के बराबर या इससे अधिक होती है। हालांकि, नई नीति में प्लेसमेंट एजेंसियों के लिए यह अनिवार्य किया जाएगा कि वे घरेलू नौकरों से एक बार 15 दिन का वेतन ही लें और बदले में उन्हें मेडिकल और स्वास्थ्य बीमा सहित सामाजिक सुरक्षा कवर मुहैया कराएं।

नोटिस में कहा गया है कि इस नीति का उद्देश्य न्यूनतम मजदूरी को तय करना, दुरुपयोग/ उत्पीड़न और हिंसा से कर्मचारियों की सुरक्षा करना, स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ और बुढ़ापे के पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ घरेलू नौकरों को पहुंचाना है। इसके साथ ही कर्मचारियों को उचित रोजगार के अधिकार को बढ़ावा देना है जैसा कि केंद्र और राज्य सरकारों की मौजूदा और आगामी योजनाओं के अनुसार प्रदान किया जाता है।


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