-प्रभुनाथ शुक्ल -अमृतसर में आयोजित हार्ट आफ एशिया सम्मेलन भारत के लिए उपलब्धियों भरा रहा। एशियाई देशों के साथ दुनिया में बढ़ता आतंकवाद चिंता का विषय बना है। आतंकवाद पर अमृतसर घोषणापत्र पर सभी देशों ने आम सहमति जतायी यह भारत की आतंकवाद और पाकिस्तान पर कूटनीतिक जीत साबित हुई है। सम्मेलन में शामिल देशों ने आतंकवाद के समूल खात्में के लिए संकल्प लिया साथ ही भारत और अफगानिस्तान के विचारों पर सहमति जतायी है। इस सम्मेलन में पाक अलग-थलग पड़ गया। हमारे लिए अपने आप में यह बड़ी उपलब्धि है। आतंकवाद से पूरी दुनिया परेशान है। आधे से अधिक मुल्कों पर आतंकवाद का राज है। वह अरब देश हो या दक्षिण एशिया के साथ यूरोपियन मुल्क आतंकवाद सभी की पीड़ा है। बाकि देशों ने आतंकवाद के खिलाफ जमकर वकालत किया। पाकिस्तान की मौजूदगी में भारत ने अपनी पीड़ा व्यक्त की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सामने बगैर पाक का नाम लिए आतंकवाद और उसे पालने पोषने वाले पाकिस्तान को घेरा। वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती ताकत से पाकिस्तान बखौला गया है। भारत ने जब जहां मौका पाया आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की काली करतूत दुनिया के सामने की कोशिश की और कामयाब रहा। अमेरिकी सीनेट हो या दूसरा मुल्क सभी ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की तरफ से दमदारी से रखी गयी बात का वैश्विक स्तर पर भारी समर्थन किया। लेकिन सवाल है पाकिस्तना को शर्म कब आएगी। आतंकवाद और उसकी विचाराधारा से वह कब मुंह मोड़ेगा यह बड़ा सवाल है। हार्ट आफ एशिया सम्मेलन के माध्यम से भारत ने साफ कर दिया कि आतंकवाद अच्छा और बुरा नहीं होता। आतंकवाद सिर्फ आतंकवाद है और वह मानवीयता और इंसानियत के खिलाफ है।
भारत आतंकवाद से कोई हमदर्दी नहीं रखता। पीएम मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ संकल्प दुहराते हुए साफ किया कि हम दहशतगर्दी के खिलाफ हैं। तालिबान, आईएसआई, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा सरीखे सभी आतंकी संगठनों का भारत सफाया चाहते हैं। अफगानिस्तान में आतंकी हिंसा और बढ़ती दहशतगर्दी पर भारत ने गहरी चिंता जतायी। भारत ने साफ कहा कि एशिया सहित दुनिया भर में शांति, स्थिरता और एक दुसरे के सहयोग के लिए आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा है। भारत ने अपनी बात रखते हुए कहा कि दुनिया के देश संयुक्तराष्ट वैश्विक आतंकवाद नीति 2006 को अमल में लाएं और आतंक के खिलाफ एक मंच पर एक साथ आएं। पीएम ने साफ किया कि बगैर ठोस और दृढ़ इच्छा शक्ति के दक्षिण एशिया में आतंकवाद से जंग नहीं लड़ी जा सकती। आतंकवाद को फडिंग करने वाले मुल्कों को इस पर विचार करना होगा। पीएम का साफ इशारा पाकिस्तान की तरफ था। आपको याद होगा जब 16 नवम्बर 2014 को पाकिस्तान के पेशावर आर्मी स्कूल में आतंकी हमला हुआ था तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा था कि अच्छे और बुरे तालिबान में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी जब तक की अंतिम आतंकवादी नहीं मारा जाता। लेकिन उसका क्या हुआ। इस हमले से पाक इतना बौखलया कि पाकिस्तान में बंद सजा-ए-मौत यानी फांसी सजा को पुनः बहाल कर दिया। काफी संख्या में पाकिस्तानी जेलों में बंद आतंकवादियों को फांसी पर लटकाया गया। लेकिन फिर क्या हुआ यह सिकी से छुपा नहीं है।
पाकिस्तान अपने घर में आतंकी नर्सरी पैदा कर रहा है लेकिन उसका घर भी इस आग में जल रहा है लेकिन उसे इसकी तनिक भी चिंता नहीं है। पाकिस्तान आतंकवाद के मसले पर जहां कल था वहीं आज भी खड़ा है। उस समय उसकी यह कार्रवाई सिर्फ पाक फौज की चोट पर मरहम लगाना था। लेकिन भारत का आतंक पर नजरिया साफ है। हम भारी आतंकी तबाही झेलते हुए भी आतंक के सफाए के लिए दुनिया के सामने खड़े हैं। पंजाब से लेकर कश्मीर तक हम मुकाबला कर रहे हैं। इस जंग में हमारे हजारों जवान शहीद हो चुके हैं लेकिन हमारी नीति में कोई बदलाव नहीं आया। पठानकोट से लेकर उड़ी और नगरोटा तक हमारी लड़ाई आतंक के ख्लिाफ जारी है। भारत ही नहीं अफगानिस्तान ने तो सीधे पाकिस्तान का नाम लेकर एशियाई देशों के सामने आतंकवाद की फसल उगाने और आतंकी जहर फैलाने के लिए पाकिस्तान को गुनाहगार ठहराया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति असरफ गनी ने सीधे पाक पर हमला बोलते हुए यहां तक कह दिया कि पाकिस्तान तालिबान और दूसरे आतंकी समूहों को समर्थन और सुरिक्षत ठिकाने उपलब्ध करा अफगानिस्तान के खिलाफ अघोषित युद्ध छेड़ रखा है।
हम आपको जानकारी के लिए बताना चाहेंगे कि हार्ट आफ एशिया का गठन 2011 में अफगानिस्तान और इसके पड़ोसी मुल्कों के बीच आर्थिक, राजनैतिक और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए किया गया था। इसमें भारत, चीन, पाकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, रुस, सउदी अरब, तजाकिस्तान, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात जैसे 14 देश शामिल हैं। इसके अलावा अमृतसर में आयोजित सम्मेलन में 40 देशों के साथ यूरोपिय यूनियन जैसे मुल्कों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। इससे आतंकवाद के लिहाज से यह सम्मेलन काफी खास रहा। लेकिन सवाल उठता है कि एशियाई मंच पर बेनकाब पाकिस्तान आतंकवाद पर अपनी रणनीति में कोई बदलाव लाएगा। सवाल उठता है कि सिर्फ सम्मेलनों, घोषणाओं और संकल्पों भर से आतंकवाद का सफाया होने वाला नहीं। इसके लिए आतंकवाद से जुझ रहे सभी देशों और समुदायों को एक साथ एक मंच पर आना होगा। इसके अलावा दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देना होगा। मेरा हाथ नहीं जला उसका जल रहा है यह तमाशा और नीति बंद करनी होगी। आतंकवाद के सफाए के लिए एक वैश्विक सेना का गठन होना चाहिए। जिन मुल्कों की तरफ से आतंकवाद को खाद पानी दिया जा रहा है उन पर आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध लगने चाहिए। अमेरिका जैसे देशों को पाकिस्तान को आतंकवाद सफाए के लिए दी जा रही मदद बंद होनी चाहिए। पाकिस्तान उसका उपयोग भारत में आतंकवाद फैलाने पर कर रहा है।
भारत में आतंकी साजिश रचने वाले वहां खुले आम घूम रहे और पाकिस्तान की आतंरिक राजनीति का हिस्सा बने हैं लेकिन दुनिया के देश और पाकिस्तान भारत के लाख सबूत के बाद भी उन्हें बाहर का रास्ता नहीं दिखा रहा है। इस स्थिति में सिर्फ मंचीय संकल्पों से आतंकवाद का सफाया होने वाला नहीं है। इसके लिए रीति से हट कर अलग रणनीति बनाने की आवश्यकता है। वैश्विक सेना गठित कर आतंक और उनके आकांओ के खिलाफ सफाई अभियान चलाना चाहिए। तभी हम दुनिया में फैले और बढ़ते आतंकवाद का सफाया करने में कामयाब हो सकते हैं।